नई दिल्ली: केंद्रीय कानून और न्याय मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि देश के लोग कॉलेजियम सिस्टम से नाखुश हैं और संविधान की भावना के अनुसार जजों की नियुक्ति करना सरकार का काम है। उन्होंने आगे कहा कि लोग नेताओं के बीच राजनीति तो देख सकते हैं लेकिन न्यायपालिका के अंदर चल रही राजनीति को वे जानते नहीं है। पिछले महीने उदयपुर में एक सम्मेलन में बयान के बाद रिजिजू की यह टिप्पणी आई है। बता दें, उस समय उन्होंने कहा था कि उच्च न्यायपालिका में नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली पर दोबारा विचार करने की जरुरत है।
किरेन रिजिजू ने आरएसएस द्वारा प्रकाशित साप्ताहिक पत्रिका ‘पांचजन्य’ द्वारा सोमवार को अहमदाबाद में आयोजित ‘साबरमती संवाद’ में कहा कि उन्होंने देखा है कि आधे समय तो न्यायाधीश नियुक्तियों को तय करने के लिए “व्यस्त” होते हैं, जिसके बजह से उनका प्राथमिक काम ‘पीड़ितों को न्याय देना’ प्रभावित होता है।किरेन रिजिजू की यह टिप्पणी पिछले महीने उदयपुर में एक सम्मेलन में कहने के बाद आई है। उन्होंने कहा उच्च न्यायपालिका में नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली पर दोबारा विचार करने की जरुरत है।
न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया पर एक सवाल के जवाब में रिजिजू कहते हैं, “भारत में 1993 तक भारत के मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से कानून मंत्रालय द्वारा प्रत्येक न्यायाधीश को नियुक्त किया जाता था। उस समय हमारे पास बहुत प्रतिष्ठित न्यायाधीश थे।
रिजिजू ने आगे कहा, “संविधान ये स्पष्ट करता है कि भारत के राष्ट्रपति न्यायाधीशों की नियुक्ति करेंगे, इसका अर्थ ये है कि कानून मंत्रालय भारत के मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से न्यायाधीशों की नियुक्ति करेगा। उन्होंने कहा कि 1998 में न्यायपालिका द्वारा कॉलेजियम प्रणाली का विस्तार किया गया था। जबकि इससे पहले 1993 में सुप्रीम कोर्ट ने परामर्श को सहमति के रूप में परिभाषित किया। किसी अन्य क्षेत्र में परामर्श को सहमति के रूप में नहीं बल्कि न्यायिक नियुक्तियों में परिभाषित किया गया है।
उन्होंने कहा, ‘मैं जानता हूं कि देश की जनता जजों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली से नाखुश है। अगर हम संविधान को ध्यान में रख कर चलते हैं तो जजों की नियुक्ति सरकार का काम है। “दूसरी बात है कि भारत को छोड़कर दुनिया में कहीं भी यह प्रथा नहीं है कि न्यायाधीश खुद न्यायाधीशों को नियुक्त करते हों। “तीसरा, कानून मंत्री के रूप में, मैंने देखा है कि न्यायाधीशों का आधा समय और दिमाग यह तय करने में लग जाता है कि अगला न्यायाधीश कौन होगा। उनका प्राथमिक काम न्याय देना है।
रिजिजू ने कहा, “न्यायाधीशों के चयन के लिए परामर्श की प्रक्रिया इतनी तेज है कि मुझे ऐसा कहते हुए खेद है इसमें समूहवाद विकसित होता है। लोग नेताओं के बीच राजनीति तो देख सकते हैं लेकिन न्यायपालिका में चल रही राजनीति को वे नहीं जानते है। रिजिजू ने कहा कि कानून मंत्रालय का काम यह देखना है जिस व्यक्ति की सिफारिश कॉलेजियम ने की है, वह सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट का जज बनने के लिए सक्षम है या नहीं? एक न्यायाधीश आलोचना से ऊपर तभी होगा यदि वह दूसरे न्यायाधीश के चयन में शामिल नहीं है। लेकिन अगर वह प्रशासनिक कार्यों में शामिल है तो वह आलोचना से कैसे बच सकेगा।
सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की अध्यक्षता भारत के मुख्य न्यायाधीश करते हैं और इसमें अदालत के चार वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल होते हैं। हालांकि सरकार कॉलेजियम की सिफारिशों के संबंध में आपत्तियां उठा सकती है या स्पष्टीकरण मांग सकती है। लेकिन पांच सदस्यीय निकाय अगर उन्हें दोहराता है तो नामों को मंजूरी देना प्रक्रिया से बाध्य है।
आपको बता दें, 2014 में एनडीए सरकार ने जजों की नियुक्ति के सिस्टम को बदलने की कोशिश की थी। 2014 में लाया गया राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) अधिनियम, उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति में कार्यपालिका को एक प्रमुख भूमिका प्रदान करता। हालांकि, 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया था।
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