नई दिल्ली. पेगासस जासूसी मामले की जांच अब एक कमेटी द्वारा की जाएगी। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल जवाब में केंद्र ने जासूसी के आरोपों को बेबुनियाद बताया है। लेकिन साथ ही यह भी कहा है कि वह सभी आशंकाओं को दूर करने के लिए निष्पक्ष विशेषज्ञों की एक कमिटी बनाने को तैयार है। केंद्र ने यह प्रस्ताव भी दिया है कि कमिटी किन-किन मुद्दों पर काम करेगी, यह सुप्रीम कोर्ट ही तय कर दे।
पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, जजों समेत दूसरे लोगों की जासूसी करवाने के आरोप का आज केंद्र सरकार ने जोरदार खंडन किया. सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय की तरफ से दाखिल हलफनामे में कोर्ट को यह बताया गया कि मामले में याचिका दाखिल करने वाले सभी लोगों ने कही-सुनी बातों के आधार पर याचिका दाखिल कर दी है। केंद्र की तरफ से जिरह करते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, “संसद का सत्र शुरू होने से पहले एक वेब पोर्टल ने सनसनी फैलाने के मकसद से इस तरह की खबर प्रकाशित की। बाद में विपक्ष ने उस पर हंगामा खड़ा कर दिया. जबकि इन आरोपों का असल में कोई आधार नहीं है।”
याचिकाकर्ताओं की तरफ से वरिष्ठ वकीलों कपिल सिब्बल, श्याम दीवान, राकेश द्विवेदी, दिनेश त्रिवेदी और मीनाक्षी अरोड़ा ने सरकार के हलफनामे को नाकाफी बताया। मुख्य दलीलें सिब्बल ने रखीं।
उन्होंने कहा, “सरकार को स्पष्ट रूप से बताना था कि उसने पेगासस स्पाइवेयर खरीदा या नहीं? उसका इस्तेमाल किया या नहीं? यह बात शपथ पत्र पर लिख कर देने के बजाय सरकार ने सिर्फ आरोपों का खंडन कर दिया है। 2019 में सरकार ने खुद माना था कि पेगासस के चलते भारत के कुछ व्हाट्सऐप यूजर्स की निजता प्रभावित होने की आशंका है। आज याचिकाओं को ही बेबुनियाद कैसे कह सकते हैं? सभी बातों को विस्तार से बताने की बजाय सिर्फ 2 पन्ने का जवाब दाखिल कर दिया गया है। कोर्ट सरकार को विस्तृत जवाब दाखिल करने को कहे।”
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