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Patna High Court: बिहार में 10 साल पहले हुई शादी पर पटना हाई कोर्ट ने सुनाया फैसला

नई दिल्लीः बिहार में 10 साल पहले हुई जबरदस्ती एक शादी पर पटना हाई कोर्ट(Patna High Court) का आया अहम फैसला। बता दें कि पटना उच्च न्यायालय ने भारतीय सेना के एक हवलदार की शादी को रद्द कर दिया। क्योंकि 10 साल पहले बिहार में बंदूक की नोक पर एक महिला के साथ उनकी जबरन […]

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Patna High Court gives verdict on marriage that took place 10 years ago in Bihar
  • November 24, 2023 9:23 pm Asia/KolkataIST, Updated 1 year ago

नई दिल्लीः बिहार में 10 साल पहले हुई जबरदस्ती एक शादी पर पटना हाई कोर्ट(Patna High Court) का आया अहम फैसला। बता दें कि पटना उच्च न्यायालय ने भारतीय सेना के एक हवलदार की शादी को रद्द कर दिया। क्योंकि 10 साल पहले बिहार में बंदूक की नोक पर एक महिला के साथ उनकी जबरन शादी कर दी गई थी।याचिकाकर्ता और नवादा जिले के रविकांत को लखीसराय के एक मंदिर में प्रार्थना करते वक्त 30 जून 2013 को दुल्हन के परिवार ने अगवा कर लिया था

जाने क्या है पूरा मामला?

यह मामला बिहार के जबरदस्ती हुई शादी का एक उदाहरण है। इस विषय पर कुछ फिल्में भी बन चुकी हैं। याचिकाकर्ता सभी रीतियों के संपन्न होने से पहले दुल्हन के घर से भाग गया और ड्यूटी पर फिर से लौटने के लिए जम्मू-कश्मीर चला गया था। छुट्टी पर लौटने पर शादी को रद्द करने की मांग करते हुए लखीसराय परिवार अदालत में एक याचिका दायर की थी।

हालांकि परिवार अदालत ने 27 जनवरी, 2020 को उनकी याचिका खारिज कर दी जिसके बाद उन्होंने पटना उच्च न्यायालय(Patna High Court) में अपील दायर की थी। न्यायमूर्ति पी बी बजंथरी और न्यायमूर्ति अरुण कुमार झा की खंडपीठ ने यह कहते हुए निचली अदालत के आदेश को रद्द कर दिया कि पारिवारिक अदालत ने अजीब दृष्टिकोण अपनाया कि याचिकाकर्ता का मामला अविश्वसनीय हो गया क्योंकि उसने विवाह को रद्द करने के लिए तत्काल मुकदमा दायर नहीं किया था। खंडपीठ ने कहा,याचिकाकर्ता ने स्थिति स्पष्ट कर दी है और कोई अनुचित देरी भी नहीं हुई है।

उच्च न्यायालय ने सुनाया फैसला

बेंच ने इस महीने की शुरुआत में अपने आदेश में इस बात पर जोर देने के लिए उच्चतम न्यायालय के फैसले का भी हवाला दिया कि हिंदू परंपराओं के अनुसार कोई भी शादी तब तक मान्य नहीं हो सकती जब तक कि सतफेरे नहीं हो जाते। उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया, विद्वान परिवार अदालत का यह निष्कर्ष कि सतफेरे का आचरण नहीं करने का मतलब यह नहीं है कि विवाह नहीं किया गया है, किसी भी योग्यता से विहीन है।

 

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