नई दिल्ली: देश में छात्रों के आत्महत्या के बढ़ते मामलों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी टिप्पणी की है. सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि स्टूडेंट्स की सुसाइड के लिए पेरेंट्स जिम्मेदार हैं. माता-पिता के दबाव की वजह सी ही बच्चे इतना बड़ा कदम उठा रहे हैं. इसके साथ ही बहुत ज्यादा कॉम्पिटिशन भी छात्रों […]
नई दिल्ली: देश में छात्रों के आत्महत्या के बढ़ते मामलों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी टिप्पणी की है. सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि स्टूडेंट्स की सुसाइड के लिए पेरेंट्स जिम्मेदार हैं. माता-पिता के दबाव की वजह सी ही बच्चे इतना बड़ा कदम उठा रहे हैं. इसके साथ ही बहुत ज्यादा कॉम्पिटिशन भी छात्रों के सुसाइड की बड़ी वजह है.
देश में तेजी से फैल रहे कोचिंग सेंटरों को रेगुलराइज करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस एसवीएन भट्टी की पीठ ने कोचिंग सेंटरों को निर्देश जारी करने से इनकार कर दिया. बता दें कि ये याचिका मुंबई के डॉ. अनिरुद्ध नारायण मालपानी ने लगाई थी. उनकी ओर से मोहनी प्रिया ने अदालत में दलील दी.
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि स्टूडेंट्स के आत्महत्या के बढ़ते मामलों के पीछे माता-पिता का दबाव है. कोचिंग सेंटर से ज्यादा बच्चों के माता-पिता उनके ऊपर दबाव डाल रहे हैं. ऐसे में अदालत कोचिंग सेंटरों को कैसे निर्देश जारी कर सकती है. ज्यादातर लोग कोचिंग सेंटर को इसके लिए जिम्मेदार बता रहे हैं, लेकिन आप स्कूलों की स्थिति को देखिए. प्रतिस्पर्धा के इस दौरान में छात्रों के पास कोचिंग सेंटरों में जाने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है.
वहीं, डॉ. मालपानी ने अपनी याचिका में कहा कि देश में इस वक्त लाभ के भूखे प्राइवेट कोचिंग सेंटरों का तेजी से विस्तार हो रहा है. अब इन्हें रेगुलराइज करने के लिए जरूरी दिशा-निर्देश देने की आवश्यकता है. याचिककर्ता ने कहा कि 14 साल की उम्र में बच्चे घर से दूर इन कोचिंग फैक्ट्रियों में जा रहे हैं. यहां उन्हें मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेजों में दाखिले के लिए बेहद कड़ी तैयारी कराई जाती है. जबकि वे मानसिक रूप में इसके लिए तैयार नहीं होते हैं. मालपानी ने कहा कि यह संविधान के अनुच्छेद-21 के खिलाफ है. बता दें कि अनुच्छेद 21 में नागरिकों को गरिमामय जीवन जीने का हक देने की बात करता है.