नई दिल्ली, संगीत की दुनिया का एक और चमकता सितारा आज हमेशा के लिए बुझ गया है. दिग्गज म्यूजिशियन और संतूर प्लेयर पंडित शिव कुमार शर्मा का 84 साल की उम्र में निधन समग्र संगीत की दुनिया के लिए किसी सदमे से कम नहीं है. संतूर को ही अपनी पहचान बनाने वाले और आज की […]
नई दिल्ली, संगीत की दुनिया का एक और चमकता सितारा आज हमेशा के लिए बुझ गया है. दिग्गज म्यूजिशियन और संतूर प्लेयर पंडित शिव कुमार शर्मा का 84 साल की उम्र में निधन समग्र संगीत की दुनिया के लिए किसी सदमे से कम नहीं है. संतूर को ही अपनी पहचान बनाने वाले और आज की पीढ़ी से मिलवाने का पूरा श्रेय पंडित शिव कुमार शर्मा को जाता है. लेकिन इस सफर की शुरुआत आखिर हुई तो कहां से?
शिव कुमार जी जब 13 वर्ष के थे तभी से उन्होंने संतूर सीखना शुरू कर दिया था. 1938 में उनका जन्म हुआ. वह एक कश्मीरी परिवार का हिस्सा थे. बचपन से ही केवल संगीत उनकी दुनिया रही. इतनी छोटी सी उम्र में ही संतूर के वादन ने उन्हें इसमें महारथ दिलाई. लेकिन केवल संतूर ही एकमात्र वाद्य नहीं था जो वह इतनी शिद्दत के साथ बजाते थे. शिव कुमार जी को अच्छे तबले वादन के लिए भी जाना जाता रहेगा. उनके इसी हुनर को देखते हुए उन्होंने महज़ 15 साल की उम्र में जम्मू रेडियो में ब्रॉडकास्टर के तौर पर भी काम किया था, लेकिन केवल रेडियो ही कहां उनकी पहचान थी. उन्हें तो और ऊंची उड़ान भरनी थी.
इतना हुनर होने के बाद भी उन्हें संतूर बजाना ही सबसे ज़्यादा प्रिय था. उन्होंने अपना पैशन फॉलो किया और वो अपने सपनों को पूरा करने के लिए मुंबई आ गए. उन्होंने यहां के अपने सफर के बारे में एक इंटरव्यू में भी बताया है. जहां उन्होंने जाहिर किया था कि वह केवल 500 रूपए लेकर ही मुंबई आये थे. यह उनके जीवन का एक जुआं था. लेकिन दूसरा. पहला उनका तबला छोड़कर संतूर पर आना.
कोशिश करने वालों की आखिर हार कहां होती है. ये कहावत पंडित शिव कुमार की कहानी पर भी लागू होती है. उन्होंने अपने पैशन पर कड़ी मेहनत की और उन्हें कामयाबी भी मिली. लेकिन ये कामयाबी इतनी आसान भी नहीं थी. 1955 में आई फिल्म झनक-झनक पायल बजे के एक सीन के लिए शिव ने पहली बार बैकग्राउंड म्यूजिक कंपोज किया. किसी हिंदी फिल्म में पहली बार संतूर का इस्तेमाल किया गया था, जो हिट साबित हुआ. अपने संतूर के प्यार के कारण उन्होंने कई फिल्मों के ऑफर्स को ठुकरा दिया. वह कभी भी संतूर को कमर्शियलाइजेशन में नहीं आने देना चाहते थे. उन्होंने दूसरी ओर अपने शोध को भी जारी रखा. इस दौरान उन्हें कई बार आर्थिक तंगी का भी सामना करना पड़ा जिसमें वह अक्सर अपने पिता से झूठ बोला करते कि वह ठीक हैं.
एक समय में उनकी मेहनत रंग लानी ही थी. पंडित शिव कुमार शर्मा को उनके संतूर के लिए प्यार ने खूब शौहरत दिलाई. कई सालों की कड़ी मेहनत रंग लाइ. पंडित शिव कुमार को उनकी खास पहचान मिल ही गई. उन्होंने अपने इस सफर पर एक इंटरव्यू में बात करते हुए कहा था कि पीछे मुड़कर देखता हूँ तो मैंने काफी मुश्किल हालातों का सामना किया. यह ऐसा एहसास है जो बड़ा रिस्की था लेकिन अंत में मुझे कामयाबी मिली. उनका कहना अपने संगीत को लेकर सदैव रहा कि – मैं म्यूजिशियन नहीं हूं. मैं सिर्फ एक माध्यम हूं. अब जब वह नहीं है तो उन्हें सच में उनके संगीत के लिए ही याद किया जाएगा. वह माध्यम जो सदैव अमर है.
यह भी पढ़ें: