इस्लामाबाद. पाकिस्तान में 25 जुलाई को नेशनल असेंबली और चार राज्यों की प्रॉविंसियल असेंबली के लिए वोटिंग होनी है. पाक चुनाव में नेताओं और राजनीतिक दलों को कायदे से इस वक्त वोटरों की फिक्र होनी चाहिए, लेकिन उनकी चिंता पाक आर्मी है जो पाकिस्तान में सरकार बनवाने और गिराने का खेल खेलती रही है. इस बार भी पाक चुनाव में वहां की फौज के रोल को लेकर खुद आर्मी ने दुविधा बढ़ा दी है. पाक आर्मी के प्रवक्ता ने भरोसा दिया है कि चुनाव में पाक फौज का कोई डायरेक्ट रोल नहीं है.
चुनाव में पाक आर्मी का क्या काम ?
पाकिस्तान चुनाव में पाक आर्मी का क्या काम, ये सवाल उठना ही बहुत कुछ बयान कर देता है. इस बार पाकिस्तान चुनाव में नवाज़ शरीफ और उनकी पार्टी पीएमएल-एन के लिए मुश्किलें बहुत ज्यादा हैं. नवाज़ शरीफ खुलेआम आरोप लगा रहे हैं कि पाक आर्मी उनकी राजनीतिक हत्या करने पर आमादा है. पहले पनामा पेपर की जांच के नाम पर पाक आर्मी ने अपने चहेते अफसरों को काम पर लगाया. फिर जांच रिपोर्ट में दोषी बताकर नवाज शरीफ को कुर्सी से उतारा और अब जवाबदेही कोर्ट से नवाज़ शरीफ, उनकी राजनीतिक वारिस मानी जाने वाली बेटी मरियम और दामाद सलाखों के पीछे हैं. पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के को-चेयरमैन आसिफ अली जरदारी भी खुलेआम आरोप लगा चुके हैं कि पाक आर्मी सिर्फ इमरान खान की पाकिस्तान-तहरीक-ए-इंसाफ पर मेहरबान है. इमरान खान पर ये आरोप नया नहीं है. उन्होंने जरदारी से लेकर शरीफ तक के खिलाफ जब भी आंदोलन छेड़ा और कंटेनर लेकर सड़कों पर उतरे, तब यही कहा गया कि इमरान को मुखौटा बनाकर पाक फौज अपना खेल खेल रही है.
पाक आर्मी के दम पर इमरान की बल्ले-बल्ले !
इमरान खान की पार्टी का चुनाव निशान बल्ला है लेकिन आरोप लग रहा है कि चुनावी पिच पर बल्ले-बल्ले इमरान की बेशक हो, बल्लेबाज़ी पाक आर्मी ही कर रही है. नवाज़ शरीफ के जेल जाने के बाद सबसे ज्यादा फायदा इमरान खान को ही हुआ है. अब तक पाकिस्तान में इमरान खान तीसरे नंबर की पार्टी के नेता रहे हैं लेकिन पाकिस्तानी अखबार डॉन के ताजा सर्वे से साफ है कि इस बार टक्कर इमरान खान की पीटीआई और शरीफ की पीएमएल-एन के बीच ही है.
छुटभैय्ये और कट्टरपंथियों के हाथ में सत्ता की कुंजी !
पाकिस्तान में इमरान खान का पलड़ा चाहे जितना भारी हुआ हो लेकिन वहां किसी को भरोसा नहीं है कि इमरान खान को अपने दम पर बहुमत मिल पाएगा. पाक आर्मी और आईएसआई को भी ऐसा ही लग रहा है. बहुमत ना मिलने का प्लान भी पहले से तैयार है. पाकिस्तान में इस बार जमात-ए-इस्लामी, पासबान पार्टी के अलावा अल्लाह-हू-अकबर तहरीक नाम की पार्टी भी चुनाव मैदान में है. अल्लाह-हू-अकबर तहरीक को लश्कर के सरगना हाफिज सईद अपने राजनीतिक मुखौटे के तौर पर इस्तेमाल करके अपने बेटे, दामाद समेत पांच दर्जन से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ा रहा है. आतंकवादियों और कट्टरपंथियों की इन पार्टियों को भी पाक आर्मी की शह हासिल है. चुनाव में इन पार्टियों के जितने भी नेता जीतेंगे, बाद में पाक आर्मी के इशारे पर ही अपना पाला चुनेंगे.
नई पाक सरकार का भारत से रिश्ता
पाकिस्तान में सरकार किसी की भी बने, भारत से रिश्तों का भविष्य पाक आर्मी और आईएसआई ही तय करेगी. चूंकि आईएसआई और पाक आर्मी की कट्टरपंथियों से हमदर्दी कायम है. कट्टरपंथियों को पाक आर्मी और आईएसआई ने ही पाला-पोसा है. इसलिए भारत से रिश्तों की दशा और दिशा तय करने में पाकिस्तान के कट्टरपंथियों की भी बड़ी भूमिका रहेगी. इमरान खान की पार्टी को ये बात समझ में आ रही है. इसीलिए चुनाव प्रचार के आखिरी दौर में इमरान खान ने खुद मोदी से दोस्ती को लेकर नवाज़ शरीफ को जमकर लताड़ा. वहीं दूसरी ओर इमरान की पार्टी के बड़े नेता असद उमर चुनाव में समर्थन मांगने के लिए हरकत-उल-मुजाहिदीन के सरगना फजलुर रहमान खलील से मिलने जा पहुंचे. हरकत उल मुजाहिदीन आतंकी संगठन है. विवाद होने के बावजूद असद उमर ने सफाई दी कि चूंकि फजलुर रहमान ने पाकिस्तान में आतंकी हमलों की निंदा की है, इसलिए उससे मिलने और समर्थन मांगने में हर्ज क्या है?
पाकिस्तानी सोचते हैं इमरान खान दमदार शख्सियत वाले नेता, इसलिए बनेंगे प्रधानमंत्री
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