पद्मावती को लेकर फिल्म वालों पर भरोसा नहीं: राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ

फिल्म पद्मावती को लेकर विवाद थमता नहीं दिख रहा है. रानी पद्मावती को लेकर ये कार्यक्रम दिल्ली यूनीवर्सिटी के दौलत राम कॉलेज में आयोजित की गई. दरअसल ये कार्यक्रम प्रबुद्ध नागरिकों की परिचर्चा थी, जिसका विषय था ऐतिहासिक और सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य में रानी पदमावती. इस कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के तौर पर बोलते हुए बालमुकुंद ने कहा कि, ‘’आज के फिल्मकारों की मानसिकता सही इतिहास दिखाने के बजाय ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाने की होती है.

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पद्मावती को लेकर फिल्म वालों पर भरोसा नहीं: राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ

Aanchal Pandey

  • November 29, 2017 11:16 pm Asia/KolkataIST, Updated 7 years ago

नई दिल्ली. पद्मावती को लेकर हुए विवाद में अब राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ भी कूद पड़ा है. कमान संभाली है इतिहास के क्षेत्र में काम करने वाले संघ के संगठन इतिहास संकलन समिति ने. आज दिल्ली यूनीवर्सिटी में चित्तौड़ की रानी पद्मावती पर एक कार्यक्रम आयोजित किया गया, जिसमें इतिहास संकलन समिति के राष्ट्रीय संगठन मंत्री बालमुकुंद ने साफ कह दिया कि उन्हें फिल्मकारों पर भरोसा नहीं है, जो फिल्मकार मंगल पांडेय को कोठे पर जाता हुआ दिखा सकते हैं, पद्मावती को लेकर उन पर आखिर कैसे भरोसा किया जा सकता है.

रानी पद्मावती को लेकर ये कार्यक्रम दिल्ली यूनीवर्सिटी के दौलत राम कॉलेज में आयोजित की गई. दरअसल ये कार्यक्रम प्रबुद्ध नागरिकों की परिचर्चा थी, जिसका विषय था ऐतिहासिक और सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य में रानी पदमावती. इस कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के तौर पर बोलते हुए बालमुकुंद ने कहा कि, ‘’आज के फिल्मकारों की मानसिकता सही इतिहास दिखाने के बजाय ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाने की होती है. वो लैफ्ट के लोगों का लिखा हुआ इतिहास पढ़ते हैं. अगर इतने लोग विरोध कर रहे हैं, तो क्या उनको संज्ञान मे नहीं लेना चाहिए?’’

बालमुकुंद ने आगे कहा- ‘’फिल्मकारों को चित्तोड़ जाकर देखना चाहिए हमारी सांस्कृतिक ऐतिहासिक धरोहरों को, जायसी ने ही नहीं कम से कम 20 जैन ग्रंथों में जो पद्मावत से पहले लिखे गए हैं, रानी पद्मावती का उल्लेख है. वो जैन संत जंगल में रहा करते थे, इसलिए उनके ग्रंथ बच गए, वरना इतिहास मिटाने की साजिश की गई थी. आज भी राजपूताने में जब महिलाएं त्याग की बात करती हैं तो पद्मावती के गीत गाती हैं. दुर्भाग्य से हमारा इतिहास दिल्ली सल्तनत और मुगलों के इर्दगिर्द ही लिखा गया और उसे ही पढ़ाया जाता है. हमें जरूरत है उस इतिहास की जिस पर हमें गर्व हो, ऐसे में हम संजय लीला भंसाली पर पूरा भरोसा नहीं कर सकते हैं. ये अस्मिता का सवाल है, इसलिए मुट्ठी भर लोगों को फिल्म दिखाने से मसला हल नहीं होगा.‘’

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