नई दिल्ली. जिसने जॉन अब्राहम की हालिया रिलीज फिल्म ‘परमाणु’ को नहीं देखा, उसे ये ढंग से अंदाजा नहीं हो सकता कि अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने परमाणु परीक्षणों का जो काम किया था, वो वाकई में कितना बड़ा था, उसके चलते आज देश किसी भी परमाणु खतरे के खिलाफ एक प्रतिरोधी क्षमता पा गया है। आम तौर पर लोग ये मानकर चलते हैं कि जो इंदिरा गांधी ने किया, वही अटल जी ने कर दिया, इसमें क्या बड़ी बात हो गई। आज आप जानेंगे कि वो कितनी बड़ी बात थी और उस बड़ी बात या बड़े मिशन को अंजाम देने में पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव की उस ‘पर्ची’ ने क्या रोल प्ले किया, जो राव ने अटल बिहारी बाजपेयी के शपथ ग्रहण के दौरान दी थी।
इंदिरा गांधी ने जो परमाणु परीक्षण 1974 में किया था, वो शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए परमाणु ऊर्जा का उत्पादन करने के लिए किया गया था। लेकिन चीन तब तक एटम बम बना चुका था, पाकिस्तान की चीन से बढ़ती दोस्ती लगातार भारत की परेशानी का सबब बनती जा रही थी। ऐसे में भारत को एटम बम की जरूरत थी, अलग अलग मंचों पर इस बात की मांग की जा रही थी। अगर आपके पास परमाणु बम होता है, तो बाकी देश आपके ऊपर किसी भी तरह के बड़े हमले से बचते हैं और इस तरह से प्रतिरोधी क्षमता के चलते देश बड़े युद्ध के खतरे से बचा रह सकता है।
पीवी नरसिम्हा राव ने इसी सोच के चलते देश में परमाणु बम का परीक्षण करने की सोची, सारी तैयारियां कर ली गई थीं, लेकिन ऐन वक्त पर अमेरिकी एजेंसीज को खबर लग गई और दवाब में राव को ये इरादा बदलना पड़ा। इससे ये बात भी तय हो गई कि अमेरिकी जासूसों के लोग भारत के एडमिनिस्ट्रेशन में भी हैं, और उसके बाद से अमेरिका ने एक उपग्रह पोखरण के ऊपर ही निगरानी के लिए लगा दिया। ये वाकया 1995 का है, फिर 1996 में अटलजी की सरकार आई, लेकिन किसी को यकीन नहीं था कि इसे बहुमत हासिल होगा, 13 दिन में ही सरकार गिर गई। दूसरी बार फिर अटलजी को 1998 में ये मौका मिला, ये सरकार 13 महीने चली, लेकिन शुरू में लग रहा था कि लम्बी चलेगी तो अटलजी के शपथ ग्रहण समारोह में राव ने अटलजी को धीरे से एक पर्ची उनके हाथ में दी।
अब आप सोचिए कि एक पूर्व प्रधानमंत्री एक वर्तमान प्रधानमंत्री को कोई सीक्रेट सलाह पर्ची लिखकर दे रहा है, यानी उसे लगता था कि ये बात लीक हो सकती है। अटलजी के मीडिया सलाहकार रहे अशोक टंडन बताते हैं कि, ‘’उस पर्ची में लिखा था कि मेरा वो मिशन अधूरा रह गया था, उसे आपको पूरा करना है’’। अशोकजी के मुताबिक वो मिशन था भारत के लिए परमाणु बम बनाना। अटलजी ने कोई प्रतिक्रिया इस मुद्दे पर सार्वजनिक रूप से कभी नहीं दी, लेकिन उन्होंने मन में ठान लिया था कि देश को बड़े युद्धों से बचाना है, देश का सर गर्व से हमेशा ऊंचा रखना है तो देश को परमाणु बम बनाना ही होगा।
जॉन अब्राहम की फिल्म ‘परमाणु’ में इस पर्ची वाली बात को तो नहीं दिखाया गया, लेकिन थोड़े नाटकीय ढंग से दिखाया गया है कि कैसे भारत के परमाणु परीक्षणों पर पहले अमेरिकी रोक लगती है और कैसे बाद में अटलजी चुपचाप अमेरिका के उपग्रह और जासूसों को धता बताते हुए, पाक सरहद पर तनाव पैदा करके मीडिया और अमेरिका का ध्यान उस तरफ कर देते हैं और फिर 1998 में 13 अप्रैल को पोखरण में होते हैं एक के बाद एक धमाके। पूरी दुनियां चौंक जाती है, अमेरिका भारत पर प्रतिबंध भी लगा देता है, लेकिन रूस और फ्रांस भारत का साथ देते हैं और इस तरह अटलजी ने भावी पीढियों को शांतिपूर्वक जीने के लिए भारत को दुनियां की सबसे मजबूत प्रतिरोधक शक्ति से लैस करने के मिशन को अंजाम दे दिया।
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