प्रदूषण से जहरीला होता हमारा देश!

दिल्ली विश्व की सबसे जहरीली राजधानी का तमगा चिपकाये है। देश के सबसे बड़े सूबे यूपी की हवा जीवन के लिए खतरनाक हो चुकी है। जिम्मेदार लोग इसे स्वच्छ और निर्मल बनाने के बजाय और अधिक जहर घोलने में लगे हैं।

Advertisement
प्रदूषण से जहरीला होता हमारा देश!

Aanchal Pandey

  • March 20, 2021 4:44 pm Asia/KolkataIST, Updated 4 years ago

एक वक्त था हम कहते थे, “सारे जहां से अच्छा, हिंदोस्तां हमारा”। अब हालात इतर हैं। देश की आवोहवा बेहद जहरीली हो चुकी है। जो हमें तिल तिल कर मार रही है। दिल्ली पर विश्व की सबसे जहरीली राजधानी होने का तमगा लग गया है। सबसे बड़े सूबे यूपी की हवा जीवन के लिए खतरनाक हो चुकी है। हमारे जिम्मेदार लोग इसे स्वच्छ और निर्मल बनाने के बजाय, अधिक जहरीला बनाने में लगे हैं। बीते सप्ताह वायु प्रदूषण पर स्विटजरलैंड की वैश्विक संस्था की रिपोर्ट से यह तथ्य सामने आया। विश्व के सबसे अधिक प्रदूषित 50 शहरों में 35 सिर्फ भारत के हैं। वर्ल्ड एयर क्वालिटी रिपोर्ट 2020 में 106 देशों के प्रदूषण स्तर का डेटा जांचा गया, जिससे पता चला कि हमारी हवा में इतना जहर घुल चुका है कि अधिक देर तक इसके संपर्क में रहने पर हम दर्जनों गंभीर बीमारियों का शिकार बन सकते हैं। सिर्फ हवा ही प्रदूषित होती, तो शायद उसका समाधान कर लेते, मगर हमारा खाना-पानी भी प्रदूषित हो चुका है। हाल यह हैं कि अब जहरीली हवा के अलावा कुछ अन्य जहर समाज, राजनीति और देश में भी फैला रहा है, जो हमारे जीवन को जहरीला बनाने के लिए काफी है। एनसीआरबी का डेटा बताता है कि देश में “हेट क्राइम” इस हद तक बढ़ा है कि कहीं जाति, तो कहीं धर्म और लिंग के आधार पर लोगों में जहर बांटा जा रहा है। हम इसमें भी वैश्विक रिकॉर्ड बना रहे हैं। जहरीलापन हमारे विचारों, घर-परिवार से लेकर सामाजिक जीवन तक में नजर आने लगा है। ताजा उदाहरण, देश के सम्मानित इलाहाबाद विश्वविद्यालय का है, जहां की कुलपति संगीता श्रीवास्तव ने पुलिस के जरिए वर्षों से मस्जिद में होने वाली अजान को यह कहकर बंद करवा दिया, कि उनकी नींद खराब होती है।

हम जब भी वैश्विक स्तर पर स्वतंत्र संस्थाओं के आंकड़े देखते हैं, तो अपने देश को शर्मनाक हालात पर खड़ा पाकर दुखी होते हैं। कुछ आंकड़े सामने हैं। भुखमरी की वैश्विक सूची में भारत अपने सभी पड़ोसी देशों को मात देकर 102वें स्थान पर खड़ा है। वजह, नाकाफी सरकारी उपाय और भ्रष्टाचार। व्यक्तिगत स्वतंत्रता हो या फिर प्रेस की स्वतंत्रता, दोनों में ही हम वैश्विक स्तर पर बदहाल हैं। हाल के आंकड़ों में प्रेस की स्वतंत्रता में हम 142वें स्थान पर पहुंच गये हैं, तो व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मामले में 111वें पायदान आ गिरे हैं। नागरिक अधिकारों की स्वतंत्रता के मामले में पिछले चंद सालों से हमारा देश लगातार नीचे गया है। अब हम 67वें स्थान पर पहुंच गये हैं, जो हमें विश्व में लज्जित करता है। वैश्विक मानव विकास के इंडेक्स में भी भारत 131वें स्थान पर शर्मिंदा हो रहा है। आर्थिक स्वतंत्रता की वैश्विक सूची में भी हमारा देश बेहद खराब होकर 121वें स्थान पर है। सामाजिक सुरक्षा के मामले में भी हम अपने पड़ोसी देशों से भी बुरे हाल में हैं। शिक्षा के हालात बद से बदतर हुए हैं। इसमें हमारा वैश्विक स्थान 135वां है। खुशहाली की वैश्विक सूची में भी हमारा देश 139वें स्थान गिर गया है। लोकतंत्र के इंडेक्स में भी भारत लगातार बदतर हो रहा है और हम 53वें पायदान पर आ गये हैं। हालत यह है कि हम न कानून का शासन स्थापित कर पा रहे हैं और न ही न्यायिक विश्वसनीयता। कानून और न्यायिक स्वतंत्रता के वैश्विक इंडेक्स में भी देश शर्मनाक स्थिति में पहुंच गया है। आखिर ऐसा क्या हो गया कि हम पिछले कुछ वर्षों में हर मामले में गर्त में जा रहे हैं? इसका चिंतन हम सभी को करना होगा, क्योंकि यह न सिर्फ हमारे राष्ट्रीय सम्मान का विषय है बल्कि हमारी भावी पीढ़ी के भविष्य का भी सवाल है।

हमारी सरकार के कर्ताधर्ता देश को विश्व गुरु बनाने की बात करते हैं मगर हालात बिल्कुल उलट हैं। जब हमारी हवा, पानी से लेकर सभी जगह जहर घुला होगा, तो जीवन मुश्किल हो जाएगा। वैश्विक आंकड़े यह साबित करते हैं कि पिछले कुछ वर्षों में हम आगे बढ़ने के बजाय पीछे खिसके हैं। हमारे यहां ज्ञान-विज्ञान को प्रोत्साहन देने के बजाय उनकी राह में रोड़े अटकाये जा रहे हैं। नतीजतन, शोध संस्थाओं से कुछ बेहतर नहीं निकल पा रहा। चार दिन पहले अशोका विश्वविद्यालय के स्कॉलर भानू प्रताप मेहता ने पद से इस्तीफा दे दिया। उनका मानना है कि स्वतंत्र विचारधारा पर पहरा लगाया जा रहा है। अब उसी विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्री और देश के आर्थिक सलाहकार रहे प्रोफेसर अरविंद सुब्रमण्यम ने भी पद से त्यागपत्र दे दिया है। यह शैक्षिक माहौल को स्पष्ट करने के लिए पर्याप्त है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक बच्चों के प्रति अपराध के मामले पिछले सालों में करीब 900 फीसदी बढ़े हैं। यही नहीं, हमारे देश में बेटियों के यौन उत्पीड़न-शोषण के अपराध वैश्विक मानदंड में सबसे अधिक 44 फीसदी बढ़े हैं। अमेरिका में राष्ट्रपति पद पर डोनाल्ड ट्रंप के रहते अल्पसंख्यकों के खिलाफ घृणा अपराधों में ‘​वृद्धि’ हुई थी। उसी तरह भारत में भी पिछले कुछ सालों में अल्पसंख्यकों और दलितों के प्रति घृणा अपराधों में बेतहाशा बढ़ोत्तरी हुई है। नफरत की यह आग, समाज के अलावा राजनीतिक और आर्थिक क्षेत्र में भी देखने को मिल रही है। अल्पसंख्यक और दलित समुदाय की बेटियों के साथ बलात्कार होने पर, उन्हें झूठा साबित करने की कोशिश राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर ही नहीं, बल्कि सरकारी स्तर पर भी होने लगी है। बहुसंख्यक समुदाय के किसी सदस्य के साथ जब वही अपराध होता है तो हालात अलग होते हैं। झूठ और अफवाहों के साथ मॉब लिंचिंग परोसी जा रही है।

गोदरेज समूह के चेयरमैन आदि गोदरेज ने इन हालात पर टिप्पणी करते हुए कहा था, कि अगर बढ़ती असहिष्णुता, सामाजिक अस्थिरता, घृणा अपराध, महिलाओं के खिलाफ हिंसा, मोरल पुलिसिंग, जाति-धर्म आधारित हिंसा जल्द दूर नहीं की गई, तो भारत का आर्थिक विकास रुकेगा। हम देख रहे हैं कि कमोबेश यह जहर हमारी व्यवस्था को लगातार खोखला करने में जुटा है, जो भावी पीढ़ी का जीवन खत्म कर देने के लिए काफी है। बेरोजगारी स्वतंत्र भारत के इतिहास में सबसे अधिक है। केंद्र और राज्य के विभागों, संस्थाओं और निगमों में करीब एक करोड़ पद खाली पड़े हैं मगर सरकार उन्हें भरने को तैयार नहीं। पिछले साढ़े तीन महीने से किसान देश की राजधानी की सीमाओं और देश के तमाम हिस्सों में आंदोलनरत है, मगर संवेदना के साथ उसकी बात, उसकी ही सरकार सुनने को तैयार नहीं है। सरकार की निजीकरण नीति के खिलाफ देश के 10 लाख बैंककर्मियों ने दो दिन की हड़ताल की। इसके पहले सरकार सार्वजनिक क्षेत्र की 100 से अधिक कंपनियों को निजी हाथों में कौड़ियों के भाव बेच देने का प्रस्ताव पास कर चुकी है। संवैधानिक संस्थाओं को गुलाम बना लेने का आरोप मौजूदा सरकार पर लग रहा है। इन सब के चलते रोजगार सृजन के बजाय विघटन हो रहा है, जो सामाजिक जहर को बढ़ाने का काम करता है। सत्तारूढ़ दल पर हर जगह सत्ता हासिल करने के लिए कुछ भी करने का आरोप लगातार लगता है।

हम उम्मीद करते हैं कि देश के सजग नागरिक, राजनीतिक और सामाजिक संगठन देश में फैले किसी भी तरह के प्रदूषण से जहरीली होती, आवोहवा को स्वच्छ बनाने के लिए गंभीर प्रयास करेंगे, जिससे भावी पीढ़ी इस जहर से बरबाद न हो और उसे विकास की राह पर आगे बढ़ाया जा सके।

जय हिंद!

(लेखक प्रधान संपादक हैं।)

ajay.shukla@itvnetwork.com 

AAP Government to Open Army School: केजरीवाल सरकार दिल्ली में खोलेगी पहला सैनिक स्कूल, एनडीए की तैयारी के लिए भी शुरू होगी एकेडमी

Unique Case in Punjab Haryana High Court: जेल में बंद है पति, बढ़ाना चाहती हूं वंश, पत्नी ने लगाई हाईकोर्ट से गुहार

Tags

Advertisement