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Opinion On Hyderabad Rape Accused Encounter Case: हंगामा हैं क्यों बरपा, जब रेपिस्टों को गोली मार उन्हें किए की सजा दी है, फिर मानवाधिकार पर बहस क्यों, कब तक जजमेंटल बनेंगे लोग

नई दिल्ली. हाल के दिनों में भारत के सबसे भयानक बलात्कार के मामलों में से एक में आज सुबह आश्चर्यजनक और अप्रत्याशित रूप से नया मोड़ आया जब यह सामने आया कि पिछले सप्ताह गिरफ्तार चार युवकों को हैदराबाद क्षेत्र में पुलिस ने एनकाउंटर में मार गिराया. पुलिस ने बताया कि उन्होंने अपराध स्थल के पुनर्निर्माण की कोशिश की और वहां आरोपियों को ले गए. हालांकि आरोपियों ने भागने की कोशिश की और इसी मुठभेड़ में चारों मारे गए. परिवार के सदस्यों का कहना है कि वे खुश हैं कि महिला के बलात्कारी मारे गए हैं. हालांकि इस मामले में लोग अलग-अलग प्रक्रिया दे रहे हैं. कुछ का कहना है कि चारों आरोपियों- मोहम्मद (26), जोलू शिवा (20), जोलू नवीन (20) और चिंताकुंटा चेन्नेकशवुलु (20) को मार देना सही सजा थी तो कुछ का कहना है कि उन्हें कानून के जरिए सजा मिलनी चाहिए थी.

भारतीय पुलिस पर अक्सर अतिरिक्त न्यायिक हत्याओं का आरोप लगाए जाते रहे हैं, जिसे मुठभेड़ कहा जाता है. इस तरह की हत्याओं में शामिल शीर्ष पुलिस अधिकारियों को मुठभेड़ विशेषज्ञ कहा जाता था और कई फिल्मों का विषय भी यही रहा है. सबसे हालिया सरकारी आंकड़ों के अनुसार, भारतीय पुलिस ने 2017 में बलात्कार के 32,500 से अधिक मामले दर्ज किए. लेकिन अदालतों ने उस वर्ष बलात्कार से संबंधित केवल 18,300 मामलों का निपटारा किया, 2017 के अंत में लंबित 127,800 से अधिक मामलों को छोड़ दिया. 2012 में दिल्ली में एक महिला के साथ बलात्कार और हत्या के बाद लागू किए गए सख्त नए कानूनों के बावजूद महिलाओं के खिलाफ अपराध कम नहीं हुए थे, जिससे देश भर में गुस्सा फैल गया था. फास्ट ट्रैक कोर्ट की स्थापना के बावजूद, गवाहों की कमी और लंबी कानूनी प्रक्रिया से गुजरने में कई परिवारों की अक्षमता के लिए, मामले धीरे-धीरे आगे बढ़ गए हैं. कई भारतीयों ने शुक्रवार को आरोपियों के एनकाउंटर की सराहना की और पुलिस का समर्थन किया.

पीड़ित के परिवार, मंत्री और सोशल मीडिया पर लोग खुश हैं कि बलात्कारियों को अंत में वही सजा मिली जो सब चाहते थे. मृत्युदंड उन्हें वैसा ही मिला जैसा राष्ट्र चाहता था लेकिन जिस तरह से यह एक कथित मुठभेड़ में किया गया है वो ज्यादा सराहा जा रहा है. लोगों को भी जो चाहिए था, वह पारदर्शी, सार्वजनिक मुकदमा और मृत्युदंड था. ये फ्रंट पेज की सुर्खियां बनते हैं और लोगों को उम्मीद है कि ये अब समाज के उन हिस्सों में बलात्कारी, छेड़छाड़ करने वाले और अपराधियों तक ये नफरत पहुंचेगी जहां लिंग-अपराध और इसकी विचारधाराएं व्याप्त हैं. उम्मीद होती है कि यह बलात्कारियों को महिलाओं के खिलाफ जघन्य अपराध करने से रोक देगा. कह सकते हैं कि हैदराबाद हत्याकांड के आरोपियों के साथ जो हुआ वो एक डर का माहौल बनाने के लिए और ये बताने के लिए किया गया कि कानून अभी उनके (पुलिस, प्रशासन, कोर्ट) हाथ में हैं ना कि अपराधियों के.

इसे देखने का एक और तरीका है. बलात्कारियों को सजा होती है, समय दिया जाता है, कभी-कभी सजा बेहद छोटी होती है, कुछ को किशोर हिरासत में रखा जाता है और कुछ खतरनाक मामलों में क्लीन चिट दे दी गई है. जनता केवल खबरों में यही देखती है कि बलात्कारी निर्दोष साबित हुए या एक छोटी सजा के बाद जेल चले गए. लेकिन इससे अपराध रुक नहीं रहे और तेजी से बढ़ रहे हैं. न्यायिक प्रणाली में विश्वास दुर्लभ है और जब हम अस्थायी रूप से चार आरोपी बलात्कारियों से छुटकारा पा रहे हैं, तो हम कहीं भी न्यायाधीशों, वकीलों और पुलिस अधिकारियों के साथ मिलकर बलात्कारियों और हत्यारों को दंडित करने के लिए काम कर रहे हैं.

वर्तमान में होने वाले परिणामों से हम बहुत अधिक गंभीर हैं. अगर आज सुबह की कार्यवाही की सराहना की जाती है और बलात्कार के मामलों में न्याय पाने के लिए एक अच्छा उदाहरण के रूप में लिया जाता है, तो हम सब कुछ आरोपों पर छोड़ रहे हैं. हम क्रोध और भय के लिए सब कुछ छोड़ रहे हैं और आखिरकार, न्याय को इकट्ठा छोड़ रहे हैं और दिन के अंत में क्या वास्तव में अंतिम लक्ष्य यही है? क्या हमारे पास निष्पक्ष परीक्षण का कोई अच्छा उदाहरण है? या हम कानूनी कदमों को निर्देशित करने के लिए जनता की प्रतिक्रियाओं पर भरोसा कर रहे हैं? इन अपराधियों के खिलाफ जनता के प्रतिशोध ने जो न्याय का तरीका दिया था आज वो पुलिस ने कर दिखाया. इसे क्या बलात्कारी एक चेतावनी मानेंगे?

Disclaimer: इस लेख में लेखक के विचार पूरी तरह व्यक्तिगत हैं. इनमें Inkhabar.com की सहमति या असहमति का कोई वास्ता नहीं है.

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Aanchal Pandey

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