Opinion On Hyderabad Doctor Rape Murder: लापता होने के एक दिन बाद गुरुवार को 26 वर्षीय जानवरों की डॉक्टर का शव हैदराबाद में एक पुलिया के नीचे मिला. डॉक्टर से दो व्यक्तियों द्वारा बलात्कार करने और उसकी हत्या करने का संदेह है. लेकिन इसी के बाद फिर एक बार सवाल खड़ा हो गया है कि क्या यही है हर शहर की कहानी? दिल्ली को रेप कैपिटल कहा जाता है. कहते हैं वहां लड़कियां असुरक्षित हैं. लेकिन फिर हैदराबाद का क्या? या फिर राजस्थान या बिहार? कौन सा शहर है जहां आज तक रेप के केस ना सामने आए हों? रेप के बाद हत्या. बेहद आसान हो गया है या लोगों की जान बेहद सस्ती हो गई है. लेकिन इसका खामियाजा हर बार एक नए शहर में एक नई लड़की को क्यों भुगतना पड़ रहा है? क्या कोई लड़की कभी ये सोचकर अपने घर से निकल पाएगी की आज में सुरक्षित घर आ जाउंगी? या कभी घर वाले लड़की को ये सोचकर बाहर भेज पाएंगे कि आज हमारी बेटी घर जिंदा लौटेगी?
नई दिल्ली. एक बार फिर एक नया किस्सा, लेकिन कहानी वही पुरानी है. रेप के बाद हत्या. कहानी वही है- एक लड़की रात में घर से बाहर अकेली मिली तो उसका रेप करके हत्या कर दी और सड़क किनारे फेंक दिया. ये कहानी या किस्से बदलेंगे नहीं. चाहे आज हैदराबाद हो या दिल्ली या देश का वो कोई भी कोना जहां एक लड़की रहती है. गुनेहगार वो नहीं जिसने रेप या हत्या की. गुनेहगार वो है जो रात में अकेले बाहर निकली. चलिए दिल्ली वाली निर्भया की गलती थी कि रात में एक लड़के के साथ जिसे वो दोस्त कहती है अकेले घूम रही थी. लेकिन हैदराबाद वाली की क्या गलती जो अपने काम से वापस घर जा रही थी और अपनी स्कूटी खराब होने के कारण बस गलत लोगों के बीच फंस गई. या उस 3 साल की बच्ची की क्या गलती जिसे उसकी मां के पास से उठाकर उसका रेप करके मरने के लिए फेंक दिया जाता है.
आज फिर एक महिला पत्रकार रेप की एक घटना पर कुछ शब्दों में अपना गुस्सा इस पेज पर निकाल रही है. लेकिन क्यों? क्यों और कब तक ये दिन देखने होंगे? आज भी एक डर मेरे मन में है कि मैं रात में बाहर अकेले ना रह जाउं. एक पत्रकार जिसे रात में निकलने का डर हो वो पत्रकार कैसे हो सकती है? क्योंकि पत्रकार तो दिन-रात कहीं भी किसी भी इलाके में रिपोर्टिंग करने जाते हैं. शायद यही कारण है कि डेस्क जॉब लड़कियों के लिए और रिपोर्टिंग लड़कों के लिए रखी जाती है. या ऑफिस आजकर लड़कियों को नाइट रिपोर्टिंग नहीं देते. ये लोग कौन हैं जिनसे लड़कियों को बचाना है? ये लोग कैसे पहचाने जाते हैं? कौन देगा इसका जवाब? एक लड़की काम से घर लौट रही है अनजान लोग सड़क पर दिखे वो सहम गई, काम पर अनजान लोगों के बीच किसी का हाथ जांघ पर या चलो कंधे पर भी पड़ा वो सहम गई, घर में किसी काम से बिजली वाले या प्लम्बर को बुलाया तो एक डर मन में लिए काम करवाया.
ये डर लड़कियों के मन में कब तक रहेगा? देश के किसी भी शहर में ये क्यों है कि लड़कियों को बाहर नहीं निकलना चाहिए. क्यों एक लड़की को अकेले देखकर उसे अवसर समझा जाता है. हर रेप की घटना के बाद लोग ज्ञान देते हैं लड़की को अवसर नहीं जिम्मेदारी समझो. लेकिन सच ये है कि अगर लड़की को बस इंसान भी समझ लो वही काफी है. जैसे एक लड़के को अपनी आजादी और अपनी जान प्यारी है वैसे ही एक लड़की भी बस यही इच्छा रखती है. ये मानसिकता बदलने के लिए कोई जादुई छड़ी नहीं आएगी. केवल लोगों को समझाना है. लेकिन कुछ कहने का भी क्या फायदा है. हर रेप की घटना के बाद लोग जागरुक होते हैं. दूसरों को समझाने के लिए अभियान चलाते हैं. फिर शांत हो जाते हैं. फिर देश के एक नए शहर में एक नई लड़की के रेप और हत्या की खबर आती है. और फिर वहीं शुरू होता है.
तो क्या असल में लोग जागरुक हो रहे हैं? लोग मूक दर्शक बने रहते हैं. गाड़ी रोककर किसी घटना को देखते रहेंगे लेकिन मदद के लिए आगे नहीं आएंगे. यही कारण है कि कुछ लोग आज भी अपनी मनमानी कर रहे हैं. क्योंकि डर एक लड़की के मन में है. रेप करने वालों के मन में फांसी का भी डर नहीं. सोशल मीडिया पर कई टिप्पणीकारों ने सुझाव दिया कि महिलाएं बलात्कार से बचने के लिए क्या कर सकती हैं- आत्मरक्षा सीखें, काली मिर्च का स्प्रे साथ रखें, दोस्तों या घरवालों को बताएं कि वे एक जगह से दूसरी जगह के लिए कब निकलेंगी. महिलाओं में बलात्कार रोकने की शक्ति नहीं है. किसी के दबोचने पर ना काली मिर्च का स्प्रे निकालने का समय मिलता है ना किसी को फोन करने का. हम केवल अपनी चुप्पी को तोड़कर या अचानक कोई कड़े कदम उठाकर इसे बदल नहीं सकते हैं. हमें चाहिए की लोग इसके खिलाफ सार्वजनिक और निजी स्थानों पर साहसपूर्वक बोलें. हमें चाहिए की लड़कियों को हवस मिटाने का जरिया मानने की जगह उन्हें अपनी ही तरह एक इंसान मानना चाहिए.
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