बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष विनय सहश्रबुद्धि ने फिर से वन नेशन वन इलेक्शन की मांग शुरू कर दी हैं, इससे देश, नेता और वोटर्स बार बार के चुनावों से बच जाएंगे. ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि विनय सहश्रबुद्धि के इस अभियान को बाकी पार्टियों का भी समर्थन मिलेगा. क्योंकि हर साल किसी ना किसी राज्य में चुनाव होने से कई दिक्कतें आती है. सभी नेता एक चुनाव खत्म होते ही दूसरे चुनाव की तैयारियों में मशरूफ हो जाते हैं. जिसकी वजह से विकास कार्य धीमा हो जाता हैं.
नई दिल्ली. यूं तो देश आजाद हो गया था, नेहरूजी की अगुवाई में सरकार भी बन गई थी. चूंकि वोट से चुनी हुई सरकार नहीं थी, इसलिए कांग्रेस ने डा. भीमराव अम्बेडकर और श्यामा प्रसाद मुखर्जी जैसे कांग्रेस के आलोचकों को भी सरकार में जगह दी. 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू होने के बाद तैयारी शुरू हुई देश में पहले आम चुनाव करवाने की. लोकसभा के लिए चुनाव हुए तो पूरे देश की विधानसभाओं के लिए भी एक साथ ही चुनाव हुए. ये चुनाव प्रकिया लम्बी चली अक्टूबर 1951 से मार्च 1952 तक. लेकिन फिर उसके बाद ऐसा क्या हुआ कि किसी राज्य के चुनाव किसी अलग साल में होते हैं, तो किसी और के किसी और साल में, कभी कभी लोकसभा के साथ भी राज्यों के चुनाव हो जाते हैं, लेकिन सभी के नहीं. अब बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष विनय सहश्रबुद्धि फिर से वन नेशन वन इलेक्शन की थ्यौरी के अभियान को शुरू कर रहे हैं, इससे देश, नेता और वोटर्स सभी हर साल के चुनावों से बच जाएंगे.
हर साल किसी ना किसी राज्य में चुनाव होने की कई दिक्कतें हैं, एक तो जीतने वाले और हारने वाले, सभी नेता एक चुनाव खत्म होते ही दूसरे चुनाव की तैयारियों में मशरूफ हो जाते हैं, इलेक्शन कमीशन और मीडिया भी. इसके चलते सरकार में मौजूद लोग ही नहीं विपक्ष के नेता भी चुनाव को ध्यान में रखकर ही काम करते हैं, या बयान देते हैं. इसके चलते जनता का नुकसान होता है, चुनावी मौसम में वैसे भी नेता काम कम, वायदे ज्यादा करते हैं. जनता के टैक्स का पैसा बर्बाद होता है सो अलग. तो ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि विनय सहश्रबुद्धि के इस अभियान को बाकी पार्टियों का भी समर्थन मिलेगा.
जब 1951-52 में आम चुनाव के साथ मौजूद जिन सभी राज्यों में चुनाव हुए थे, उनके नाम हैं उत्तर प्रदेश, हिमाचल, मध्य भारत, मध्य प्रदेश, कुर्ग, दिल्ली, बॉम्बे, हैदराबाद, मद्रास, मैसूर, उड़ीसा, पंजाब, सौराष्ट्र, वेस्ट बंगाल, विंध्य प्रदेश, भोपाल, बिहार, त्रावणकोर-कोचीन, राजस्थान, पटियाला एंड ईस्ट पंजाब यूनियन (पेप्सू) आदि. इनमें से कई नाम आपके लिए चौंकाने वाले हो सकते हैं. इनमें से कुछ का नाम बाद में बदल दिया गया, कई और राज्यों का हिस्सा बन गए, कई के टुकड़े हो गए और कई किसी ना किसी दूसरे राज्य में विलय हो गए. आज की तारीख में भोपाल, हैदराबाद या बॉम्बे महानगर हैं, राज्यों की राजधानी हैं लेकिन खुद में राज्य नहीं.
1954 में पटियाला एंड ईस्ट पंजाब यूनियन (पेप्सू) और त्रावणकोर-कोचीन राज्यों में दोबारा चुनाव हुए. 1956 में पेप्सू को पंजाब में मिला लिया गया और त्रावणकोर कोचीन को एक नए राज्य केरल का हिस्सा बना दिया गया. 1956 में हैदराबाद को एक नए तेलुगू भाषी राज्य हैदराबाद में मिला दिया गया, लेकिन 1955 में ही वहां इलेक्शन करवाए गए. जिससे ये सभी राज्य लोकसभा चुनावों के साथ करवाने वाले सिस्टम में निकल गए.फिर तो ये लगातार होता रहा, 1959 में केरला में इंदिरा गांधी ने वहां की वामपंथी सरकार को बर्खास्त कर दिया, तो वहां भी दोबारा चुनाव हुए, जिसमें कांग्रेस जीत कर आई। कई नए राज्य बने जैसे महाराष्ट्र, गुजरात, हरियाणा आदि तो कइयों को बाद में शामिल किया गया जैसे गोवा, पांडिचेरी आदि तो कुछ को किसी और में विलय से नए राज्य सामने आए जैसे कर्नाटक, तमिलनाडु आदि. कांग्रेस की केन्द्र सरकार ने भी कई राज्यों की सरकारों को कई बार बर्खास्त करके राष्ट्रपति शासन लगा दिया. तो कई जगह दलबदल आदि के चलते सरकारें संकट में आईं और नए चुनाव करवाने पड़ गए.
ऐसे में ये मुमकिन नहीं रह गया था कि पहले आम चुनावों की तरह राज्यों के विधानसभा चुनाव भी लोकसभा के आम चुनावों के साथ एक ही बार में हो सकें. लेकिन पिछले कुछ सालों से खासकर इलेक्ट्रोनिक और सोशल मीडिया के आने से लगता है चुनाव आधारित ही कुछ व्यवसाय खड़े हो गए हैं. उनका दाना पानी ही चुनाव से चल रहा है, दूसरे आम लोगों को ये लगता है कि हर वक्त कहीं ना कहीं देश में चुनाव चल रहे हैं. जिसके चलते देश के जनप्रतिनिधि चुनावी मोड़ में ही लापरवाही के साथ देश की सेवा कर रहे हैं. इसलिए विनय सहश्रबुद्धि का प्रयास अच्छा भले ही हो, लेकिन व्यवहारिक नहीं है. हालांकि दिल्ली में इस विषय वन नेशन, वन इलेक्शन को लेकर उनकी चिंता वैयक्तिक है, पार्टी की नहीं दरअसल वो मुंबई के पास एक ऐसा संस्थान चलाते हैं जिसमें बीजेपी के नेताओं को ट्रेनिंग दी जाती है, जिसका नाम है रामभाऊ म्हालिनी प्रबोधिनी और हाल ही में वो आसीएसएसआर के चेयरमेन भी चुने गए हैं. लेकिन उन्होंने पत्रकारों को जो प्रेस इन्वीटेशन भेजा है, उसमें बीजेपी में अपने पद और इस सरकारी पद का उल्लेख नहीं किया, बल्कि खुद को राज्य सभा सदस्य और रामभाऊ म्हालिनी प्रबोधिनी का वाइस चेयरमेन लिखा है. देखना होगा कि उनकी मेहनत क्या रंग लाती है.
ये भी पढ़े
जिग्नेश मेवाणी ने हटवाया रिपब्लिक टीवी का माइक तो पत्रकारों ने कर दिया प्रेस कांफ्रेंस का बहिष्कार