साल 2017 में एक रैली के दौरान भाजपा के प्रेसीडेंट अमित शाह ने गांधी जी को ‘चतुर बनियां’ कहा था, उसी रैली में शाह ने ये भी कहा कि महात्मा गांधी की आखिरी ख्वाहिश थी कि कांग्रेस को खत्म किया जाए. शाह का ये बयान नई पीढीं के आम युवाओं के अलावा कांग्रेस के युवा नेताओं को भी बड़बोला लगा.
2017 की एक रैली में बीजेपी प्रेसीडेंट अमित शाह ने गांधी जी ‘चतुर बनियां’ कहा था, उसी रैली में अमित शाह ने ये भी कहा कि गांधी जी की आखिरी ख्वाहिश थी कांग्रेस को खत्म करना. इससे नई पीढीं के आम युवा ही नहीं कांग्रेस के युवा नेताओं को भी लगा कि ये बड़बोला बयान है. गांधीजी भला ऐसा क्यों कहेंगे? वो क्यों कांग्रेस को खत्म करना चाहेंगे, आखिर उनका खून पसीना भी तो कांग्रेस को खड़ा करने में लगा था. वैसे भी बयान चूंकि विपक्षी पार्टी के नेता ने लगाया था तो उन्हें लगा इस बयान में दम नहीं है. हालांकि ऐसा नहीं है कि इससे पहले इस बात के बारे में कोई जानता ही नहीं था, या इस तरह का आरोप किसी और ने पहले नहीं लगाया. लेकिन सोशल मीडिया की पीढ़ी के लिए ये शायद नया था. ये बयान फौरन वायरल हो गया, जितने लोग चतुर बनियां को डिसकस कर रहे थे, उतने ही इस बारे में भी चर्चा कर रहे थे कि क्या वाकई में गांधीजी की आखिरी ख्वाहिश यही थी? और ये चर्चा देश की हर गली चौराहे पर हो रही थी.
आखिर गांधीजी की ये आखिरी ख्वाहिश वाली बात आई कहां से? किसी भी क्लास के कोर्स में गांधीजी की इस आखिरी ख्वाहिश के बारे में, इस बयान के बारे में पढ़ाया क्यों नहीं जाता? तमाम तरह के सवाल लोगों के दिमाग में उठे. कम से कम पढ़ने लिखने वाले लोग तो ये मान रहे थे कि बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष की कुर्सी तक पहुंचने वाला व्यक्ति इतनी हलकी बात भी नहीं कर सकता कि बिना जानकारी किए इतना बड़ा आरोप लगा दे. तो फिर सच आखिर क्या है? क्या वाकई में कांग्रेस को खत्म करने के बारे में कभी गांधीजी ने खुद कहा था और क्या ये उनकी आखिरी ख्वाहिश भी थी? इस सवालों के जवाब जानने के लिए आपको आपको एंथोनी जे परेल की एडिट की हुई किताब ‘हिंद स्वराज एंड अदर राइटिंग्स’ को पढ़ना पढ़ेगा. इसमें वो लेख हैं, जिनको खुद गांधीजी ने समय समय पर लिखा है.
इसी किताब में उनका वो लेख भी है जो उन्होंने अपनी हत्या से ठीक एक दिन पहले यानी 29 जनवरी 1948 को लिखा था, अगले दिन ही गांधीजी की हत्या हो गई थी. ये लेख इस किताब के पेज नंबर 191 पर छपा है. इस लेख में उन्होंने लिखा है कि हालांकि दो टुकड़ों में बंट गए लेकिन देश को राजनीतिक आजादी दिलाने के लिए कांग्रेस को श्रेय जाता है. लेकिन अभी भी देश के देश के सात लाख गांवों को कस्बों-शहरों से इकोनोमिक, मोरल और सोशल आजादी प्राप्त करनी है.“ गांधी जी ने आगे लिखा, “कांग्रेस को पॉलटिकल पार्टीज और कम्युनल बॉडीज के साथ अनहैल्दी कॉम्पटीशन से दूर रखा जाना चाहिए. इन वजहों या इन जैसी वजहों के चलते ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) को वर्तमान कांग्रेस संगठन को खत्म करने का संकल्प लेना चाहिए और एक लोकसेवक संघ (लोगों की सेवा के लिए संस्था या एनजीओ) के रूप में बदलना चाहिए.“
हालांकि गांधीजी चाहिए शब्द ना इस्तेमाल करके एक तरह से संकल्प के बारे में ही बता रहे हैं, अंग्रेजी में उन्होंने शुड की जगह मस्ट शब्द का इस्तेमाल किया है. इतना ही नहीं नए कांग्रेस लोक सेवक संघ के लिए उन्होंने कुछ नियम भी सुझाए. जिसमें उन्होंने बताया कि कैसे पांच लोगों की पंचायत हर गांव में होगी, कैसे बाद में पंचायतें मिलकर बड़ी संस्थाएं बनाएंगी आदि. दरअसल गांधीजी विचारों से राजनीतिक थे ही नहीं, और सत्ता से तो कोसों दूर रहते थे. लेकिन आजादी के आंदोलन में उन्होंने जिन तरीकों का इस्तेमाल लोगों को जोड़ने और उनमें चेतना जगाने के लिए किया था, कांग्रेस को वो उसी रास्ते पर रखना चाहते थे. ताकि सत्ता के कुचक्रों में फंसकर कांग्रेस का हाल अन्य देशों की राजनैतिक पार्टियों जैसा ना हो जाए. वैसे भी कांग्रेस वो रथ था, जिस पर सवार होकर गांधीजी ने देश की आजादी की विजय यात्रा पूरी की थी. उस पर वो कोई दाग नहीं चाहते थे.
कांग्रेस को एनजीओ में तब्दील करने के पीछे के विचार भी उनके आंदोलन चलाने की रणनीति से मेल खाते थे. इतिहासकार विपिन चंद्रा ने अपनी किताब ‘आधुनिक भारत का इतिहास’ में लिखा है कि गांधीजी संघर्ष विराम संघर्ष के सिद्धांत से अपना आंदोलन चलाते थे. पहले 1920-21 में असहयोग आंदोलन चलाया, फिर लम्बा ब्रेक लिया और सविनय अवज्ञा आंदोलन 1929-30 में शुरू किया और जो उनका आखिरी बड़ा आंदोलन था, वो था भारत छोड़ो आंदोलन, जोकि 1942 में हुआ. तो हर बड़े आंदोलन के बीच कई कई सालों का अंतर था. आखिर इस दौर में गांधीजी क्या करते थे? दरअसल उसी को विपिन चंद्रा ने विश्राम कहा है, उस समयांतराल में वो अछूत उद्धार, हरिजन मुक्ति, सफाई जागरूकता, खादी का प्रचार, ग्रामोत्थान जैसे छोटे छोटे कार्यक्रम चलाते थे, देश भर का दौरा करते थे. कुछ छोटे आंदोलन, धरने और अनशन भी किया करते थे. इन सबके जरिए वो देश के आम आदमी से जुड़ते थे और कांग्रेस के लिए जनसमर्थन जुटाते थे, जिसके चलते नए आंदोलन के लिए देश का भरोसा और ऊर्जा दोनों मिल जाती थीं. कांग्रेस को आजादी के बाद भी वो उसी तरह के कार्यक्रमों में संलिप्त देखना चाहते थे.
जिस रात उन्होंने कांग्रेस को लेकर ये लेख लिखा, ये उनकी हत्या से पहले की आखिरी रात थी, इसके बाद उन्होंने और कोई खत या लेख नहीं लिखा. इसलिए ये माना जाता है कि ये उनकी इच्छा थी. इससे साफ समझा जा सकता है कि गांधी कांग्रेस को उस फजीहत से बचाकर रखना चाहते थे, जिसका शिकार वो आजकल हो रही है. कांग्रेस के तमाम नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप हैं और पूरी सत्ता एक ही परिवार के हाथ में हैं, जबकि उनके वक्त की कांग्रेस में ऐसा नहीं था. वैसे भी आजादी से पहले की कांग्रेस एक आंदोलन था, उस कांग्रेस की और उस वक्त के कांग्रेस नेताओं की आज लोग बहुत इज्जत करते हैं, लेकिन ऐसा आज की कांग्रेस पार्टी के बारे में आप नहीं कह सकते. गांधीजी को पता था जब अंग्रेजों की बजाय अपने ही दुश्मन सामने होंगे, जमी-जमाई इज्जत गंवाना तय है. ऐसे में वाकई गांधीजी ने एक चतुर बनियां जैसा ही काम किया था कि कांग्रेस की इज्जत की फजीहत बनने से रोकने का उपाय सुझाया. ये अलग बात है अमित शाह ने उन शब्दों का इस्तेमाल राजनैतिक फायदे के लिए किया और इस बयान को लेकर विवाद भी बन गया. ऐसे में जब तक कांग्रेस रहेगी, उसके नेता गांधीजी के इस आखिरी लेख से पीछा नहीं छुड़ा पाएंगे और बार बार ये बात उठेगी कि कांग्रेस नेताओं ने गांधीजी की आखिरी ख्वाहिश भी पूरी नहीं की.
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