आम आदमी पार्टी के 20 विधायकों को चुनाव आयोग द्वारा अयोग्य ठहराया गया है. इस मामले में जया बच्चन के केस में सुप्रीम कोर्ट का फैसला नजीर बनेगा जो कि 1996 में दिया गया था. जया बच्चन vs UOI मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था की अगर किसी सांसद या विधायक ने 'लाभ का पद' लिया है, तो उसकी सदस्यता निरस्त हो जाएगी चाहे उसने वेतन या दूसरे भत्ते लिए हों या नहीं. उस वक्त जया बच्चन राज्यसभा सांसद थीं.
नई दिल्ली. चुनाव आयोग द्वारा अयोग्य करार दिए गए 20 विधायकों का कहना है कि उन्हें लाभ का पद तो मिला था लेकिन उन्होंने कभी भी इससे जुड़े वेतन या दूसरे भत्ते नही लिए थे, इसलिए उन्हें अयोग्य करार नही दिया जा सकता. आम आदमी पार्टी के ये विधायक भले ही वेतन या भत्ते नहीं लेने का दावा कर रहे हैं लेकिन उनकी राह में सबसे बड़ा रोड़ा सुप्रीम कोर्ट का वो आदेश है जिसने सदी के महानायक की पत्नी को जया बच्चन की राज्य सभा सदस्यता को रद्द कर दिया था.
8 मई 1996 को जया बच्चन vs UOI मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था की अगर किसी सांसद या विधायक ने ‘लाभ का पद’ लिया है, तो उसकी सदस्यता निरस्त हो जाएगी चाहे उसने वेतन या दूसरे भत्ते लिए हों या नहीं. उस वक्त जया बच्चन राज्यसभा सांसद थीं. इसके साथ ही वह उत्तर प्रदेश फिल्म विकास निगम की चेयरमैन भी थीं, जिसे ‘लाभ का पद’ करार दिया गया और चुनाव आयोग्य ने जया बच्चन को अयोग्य ठहराया था.
जया बच्चन ने इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गईं लेकिन उन्हें राहत नहीं मिली. इसकी वजह से जया बच्चन की संसद सदस्यता रद्द हो गई थी. संविधान के अनुच्छेद 102 (1) A के तहत सांसद या विधायक ऐसे किसी अन्य पद पर नहीं हो सकते जहां वेतन, भत्ते या अन्य दूसरी तरह के फायदे मिलते हों. इसके अलावा संविधान के अनुच्छेद 191 (1) (A) और जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 9 (A) के तहत भी सांसदों और विधायकों को अन्य पद लेने से रोकने का प्रावधान है.
बता दें कि अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी के 20 विधायकों के निलंबन के चुनाव आयोग के फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट पहुंचे आप के तीन विधायक मदन लाल, नितिन त्यागी और राजेश गुप्ता की याचिका को हाई कोर्ट ने नामंजूर कर दिया है. हाई कोर्ट ने विधायकों के निलंबन पर रोक लगाने से साफ इनकार कर दिया है. आम आदमी पार्टी की तरफ से पेश हुए तीनों विधायकों को कड़ी फटकार भी सुनने को मिली है.