न्यूक्लियर सेंसर डिवाइस खो गई, गंगा किनारे के लोगों को खतरा !

भारत की दूसरी सबसे ऊंची चोटी नंदादेवी पर एक न्यूक्लियर सेंसर डिवाइस अरसे से लापता है और खतरा बना हुआ है उन लोगों को लिए जो उत्तराखंड के उन पहाड़ों पर रहते हैं या फिर ऋषि गंगा और गंगा नदी के किनारे किनारे के शहरों या गावों में रहते हैं.

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न्यूक्लियर सेंसर डिवाइस खो गई, गंगा किनारे के लोगों को खतरा !

Aanchal Pandey

  • August 10, 2018 3:25 pm Asia/KolkataIST, Updated 6 years ago

उत्तराखंड . ये मामला काफी चौंकाने वाला है और खतरनाक भी. भारत की दूसरी सबसे ऊंची चोटी नंदादेवी पर एक न्यूक्लियर सेंसर डिवाइस अरसे से लापता है और खतरा बना हुआ है उन लोगों को लिए जो उत्तराखंड के उन पहाड़ों पर रहते हैं या फिर ऋषि गंगा और गंगा नदी के किनारे किनारे के शहरों या गावों में रहते हैं. इस डिवाइस में प्लूटोनियम के सात कैप्सूल हैं और उनमे इतना प्लूटोनियम है, जिससे हीरोशिमा पर फेंके गए एटम बम की ताकत से आधी ताकत वाला बम बनाया जा सकता है.

दरअसल ये कहानी 1962 में तब शुरू हुई, जब चीन ने भारत पर आक्रमण किया और बिना तैयारी या आशंका के जी रहे भारतीय नेताओं को तगड़ा झटका लगा. तब भारत ने कई बड़े फैसले लिए, माउंटेनीयरिंग डिवीजन को मजबूत किया, पहाड़ों पर सेनाओं की संख्या 8 गुना तक बढ़ा दी. अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए से दोस्ती भी उन्हीं फैसलों में से एक था .उन्हीं दिनों 1964 में चीन ने अपना पहला परमाणु परीक्षण कर दिया, अमेरिकी नेताओं की पेशानी पर बल पड़ गए. उन्होंने फौरन सीआईए को काम पर लगाया, तय किया गया कि एक न्यूक्लियर सेंसर डिवाइस भारत की नंदादेवी चोटी पर लगाई जाए, जिससे अगर निकटवर्ती चीन में कोई न्यूक्लियर टेस्ट होता है तो उनकी ये डिवाइस इस तरफ आगाह कर दे.

इस डिवाइस को 25,000 फुट की ऊंचाई पर लगाने के लिए सीआईए की टीम तो भारत आई ही, भारत से एक ऐसे शख्स को चुना गया जिसने एवरेस्ट पर अपनी टीम ले जाकर भारत को एवरेस्ट पर चढ़ने वाला चौथा देश बना दिया था. इस शख्स का नाम था कैप्टन मनमोहन सिंह कोहलीइसके लिए पहले एक मॉक ड्रिल करनी थी, सो यूरोप के अलास्का को चुना गया, वहां उसी ऊंचाई के एक पहाड़ पर मॉक ड्रिल कामयाब रही. तब वो टीम भारत आई और 24000 फुट के चौथे बेस कैम्प तक ये ज्वॉइंट टीम पहुंच भी गई, ये घटना 18 अक्टूबर 1965 कूी है. अचानक से एक बड़ा वर्फीला तूफान आया और लगा कि या तो मशीन की जान बचा लो या खुद की.कोहली ने मशीन के ऊपर मैन को तरजीह दी और सबको बचाकर भाग गए.

बाद मे जब सब ठीक हो गया तो वो लोग वापस वहीं पहुंचे लेकिन वो न्यूक्लियर सेंसर डिवाइस तो गायब ही हो गई थी. वर्फ में कहीं दब गई थी, काफी खोजा गया लेकिन नहीं मिली. 1966 में जब एवरेस्ट पर चढ़ने की वजह से मनमोहन कोहली को अर्जुन पुरस्कार देने के लिए दिल्ली बुलाया गया तो उससे पहले ही उन्हें वापस नंदा देवी भेज दिया. ताकि वो सीआईए की टीम के साथ उस डिवाइस को ढूंढ सकें. पिछले 52 साल में कई बार उस डिवाइस को ढूंढने की कोशिश हो चुकी है. यहां तक कि अब उस पर एक हॉलीवुड फिल्म का भी ऐलान हो गया और मनमोहन कोहली के रोल के लिए एक मशहर भारतीय हीरो से भी बात हो गई है. कौन है वो भारतीय हीरो? कैसे हो सकता है गंगा किनारे वाले लोगों को खतरा? उस सेंसर डिवाइस में प्लूटोनियम की क्या जरुरत है? किस भारतीय नेता ने पीएम मोदी से इस डिवाइस को खोजे जाने की अपील की है? ऐसे सभी सवालों के जवाब आपको मिलेंगे विष्णु शर्मा के साथ इस वीडियो स्टोरी में—

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