नई दिल्ली: दिल्ली में बुधवार को कई दिनों से तापमान बढ़ने के साथ घना कोहरा भी देखने को मिला आपको बता दें, इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा पर सुबह के समय विजिबिलिटी सिर्फ 50 मीटर तक केवल 50 मीटर की दूरी पर है। कम दृश्यता के कारण 7 उड़ानों को डायवर्ट किया गया, जबकि कुछ […]
नई दिल्ली: दिल्ली में बुधवार को कई दिनों से तापमान बढ़ने के साथ घना कोहरा भी देखने को मिला आपको बता दें, इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा पर सुबह के समय विजिबिलिटी सिर्फ 50 मीटर तक केवल 50 मीटर की दूरी पर है। कम दृश्यता के कारण 7 उड़ानों को डायवर्ट किया गया, जबकि कुछ में देरी हुई। आपको बता दें, कम दृश्यता के कारण हवाई अड्डे के अधिकारियों ने सुबह 6:30 बजे यात्रियों को इस बारे में बताया। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने इसे रेडिएशन फॉग बताया है। विभाग का कहना है कि न्यूनतम तापमान में आई गिरावट के कारण बुधवार को अन्य दिनों की तुलना में ऐसे हालात बने। रेडिएशन फॉग का असर दिल्ली के कई हिस्सों में भी देखा गया। जानिए ये रेडिएशन फॉग क्या है और हकीकत में कितना खतरनाक है।
जब सूर्य अस्त हो जाता है तो पृथ्वी का तापमान कम होने लगता है। धीरे-धीरे तापमान घटता है और ठंडक बढ़ती है। जैसे-जैसे पृथ्वी ठंडी होती जाती है, हवा ठंडी होने लगती है। यहीं से इसकी शुरुआत होती है। वेदर डॉट कॉम के अनुसार, रात में जब हवा ठंडी होती है तो रेडिएशन फॉग बनता है। एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार, यह अन्य फॉग से अलग है जो केवल जमीन से थोड़ी ऊपर तक ही देखने को मिलता है। कुछ खास इलाकों में इसका असर देखने को मिल रहा है। अब जानते हैं कि रेडिएशन फॉग कैसे बनता हैं।
आपको बता दें, रेडिएशन के कारण हवाओं का रुख बदलता है। इस वजह से हवा कभी-कभी ठंडी हो जाती है। जब ये ठंडी हवाएँ गर्म हवा से मिलती हैं जिसमें आकाश में पानी होता है, तो झंझावात बनते हैं। इसे ही रेडिएशन कहा जाता है, यह देर शाम को बनना होना शुरू होता है और सुबह के समय इसका असर साफ दिखाई देता है। यह फॉग तब रहता है जब सूरज की किरणें जमीन पर नहीं पड़नी शुरू होती हैं। यही इस कोहरे की खासियत है।
आपको बता दें, रेडिएशन फॉग कई तरह से प्रभावित करता है। दृश्यता कम होने से दुर्घटना का खतरा बढ़ जाता है। ट्रैफिक बढ़ रहा है। बादल जितना घना होगा, लोगों पर उसका उतना ही ज़्यादा असर पड़ेगा। ऐसे में साँस के मरीजों पर इसका काफी बुरा असर पड़ता है। साँस और हृदय रोग विकसित होने का खतरा बढ़ जाता है। इसलिए यह सलाह दी जाती है कि हृदय रोगी और साँस की समस्या वाले लोग तेज हवा में बाहर न निकलें।
अब ऐसा क्यों हो रहा है, आइए इसे समझते हैं। दरअसल, कोहरे का असर दो तरीके से होता है। सबसे पहले, साँस के दौरान तरल हवा फेफड़ों तक पहुँचती है। इससे खाँसी, जुकाम, जुकाम फेफड़ों पर बुरा असर छोड़ता है। कमजोर इम्युनिटी वाले लोग इसके प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं। दूसरा, बादल में सल्फर डाइऑक्साइड का फेफड़ों के स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जो अस्थमा का कारण भी बन सकता है। बादल जितना घना होगा, नुकसान भी उतना ही ज्यादा होगा।