नई दिल्ली। महिलाओं के पीरियड्स संबंधी दर्द की छुट्टी को लेकर इस मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई। याचिका में मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 की धारा 14 को प्रभावी तरीके से लागू करवाने की मांग की गई है .इस याचिका में भारत में छात्राओं और कामकाज़ी औरतों के लिए पीरियड पेन लीव का अनुरोध किया गया है। वकील शैलेंद्र मणि त्रिपाठी ने यह याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की है. इस याचिका में महिलाओं के लिए पीरियड पेन लीव नियम बनाने के लिए राज्य सरकारों को निर्देश जारी करने की मांग की गई है।
याचिका में मातृत्व लाभ अधिनियम 1961 की धारा 14 को प्रभावी ढंग से लागू करने के निर्देश भी मांगे गए हैं, जो इन प्रावधानों को लागू करने के लिए निरीक्षकों की नियुक्ति करती है। याचिका के अनुसार, 1992 की नीति के तहत दर्द अवकाश की विशेष अवधि देने वाला बिहार एकमात्र राज्य है। ऐसे में देश के अन्य राज्यों में महिलाओं को मासिक धर्म की पीड़ा या मासिक धर्म की छुट्टी से वंचित करना संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत उनके समानता के अधिकार का उल्लंघन है.
पीरियड लीव के लिए याचिका दायर
मासिक धर्म के दर्द के लिए छुट्टी मामलों पर दो प्राइवेट मेंबर बिल लोकसभा में पेश हो चुके हैं, लेकिन दोनों बिल एक्सपायर हो चुके हैं. याचिका के मुताबिक, कुछ भारतीय कंपनियां जैसे इविपन, जोमैटो, बायजूज, स्विगी, मातृभूमि, मैग्जटर, इंडस्ट्री, एआरसी, फ्लाईमाइबिज और गोजूप पेड लीव पीरियड की सहूलियतें प्रदान करती हैं। यूके, चीन, जापान, ताइवान, इंडोनेशिया, दक्षिण कोरिया, स्पेन और जाम्बिया पहले से ही किसी न किसी रूप में पीरियड पेन लीव ऑफर करते हैं. ऐसे में देश के तमाम राज्यों में औरतों को यह सहूलियतें दी जानी चाहिए।
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