नई दिल्ली, खाने-पीने की चीजों के बढ़ते दाम आम आदमी की रसोई का बजट बिगाड़ रहे हैं. पिछले एक हफ्ते में खाने-पीने की चीजों की कीमतों में करीब 10 फीसदी तक की बढ़ोतरी देखी गई है, और इसके पीछे का कारण बताया जा रहा है कि बिना ब्रांड के आटा-चावल को जीएसटी के दायरे में लाने के बाद जमाखोरी शुरू हो गई है. खबरें हैं कि खाद्य चीज़ों की महंगाई से परेशान देश के 130 करोड़ लोगों की मुश्किलें 18 जुलाई से और बढ़ने वाली हैं, इसका कारण है कि थैली बंद (पैक्ड) अनब्रांडेड गेहूं-चावल-आटा, दालों को जीएसटी के दायरे में लाने की तैयारी की जा रही है. अब हर घर में रोजमर्रा के इस्तेमाल में आने वाले इन खाद्य चीज़ों पर पांच प्रतिशत जीएसटी चुकाना होगा. जीएसटी काउंसिल की बैठक में यह फैसला लिया गया था, अब इस फैसले के विरोध में व्यापारी आंदोलन कर रहे हैं.
खुदरा कारोबारियों के राष्ट्रीय संगठन कंफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने इस फैसले को टालने का अनुरोध किया है, ग्रेन राइस एंड ऑयल सीड्स मर्चेंट एसोसिएशन (ग्रोमा) ने इसे अवांछनीय फरमान करार दिया है. ग्रोमा अध्यक्ष (नवी मुंबई) शरद कुमार मारू ने कहा है कि वे इस फैसले को नहीं मानेंगे, उन्होंने कहा कि वहीं इस फैसले के खिलाफ देश की 6,500 से ज्यादा मंडियों में हड़ताल हो सकती है, इस दिशा में देश भर के व्यापारी मंथन कर रहे हैं.
इस फैसले के विरोध कर रहे व्यापारियों का कहना है कि इस मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हस्तक्षेप करना चाहिए. उन्होंने कहा कि पीएम ने भरोसा दिया था कि चावल, दाल, आटा, दूध-दही आदि पर जीएसटी नहीं लगेगा, लेकिन अब वो इससे पीछे हट रहे हैं. मारू ने कहा कि महंगाई ने पहले से आटा गीला कर रखा है, एक किलो पर एक रुपए की वृद्धि भी आम आदमी पर बहुत भारी पड़ती है.