नोएडा : 28 अगस्त, 2022 के दिन नोएडा स्थित सुपरटेक ग्रुप के प्रोजेक्ट एमराल्ड कोर्ट के 2 निर्माणाधीन टावर्स गिरा दिए जाएंगे. हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद ऐसा किया जा रहा है. जहां कोर्ट ने बायर्स की शिकायत पर एपेक्स और सियाने टावर्स को गिराने का आदेश दिया. घर को खरीदने वालों के लिए इस टावर का निर्माण एक बड़ा धोखा तो था ही इसे गिराने की प्रक्रिया भी काफी कष्टदायी रहने वाली है. बात करें घरों को होने वाले संभावित नुकसान की या फिर विस्फोट से उड़ने वाली धूल की तो उस ओर से भी यहां रहने वालों के लिए हर कदम पर खतरा है. चलिए जानते हैं आखिर क्यों गिराया जा रहा है ये सुपरटेक ट्विन टावर और कब हुई इस लड़ाई की शुरुआत.
सुपरटेक ट्विन टावर को लेकर ये विवाद करीब डेढ़ दशक पुराना है. जहां दिल्ली से सटे नोएडा के सेक्टर 93-A में सुपरटेक एमराल्ड कोर्ट के लिए जमीन विभाजन 23 नवंबर 2004 को हुआ. इस प्रोजेक्ट को बनाने के लिए नोएडा अथॉरिटी ने सुपरटेक को 84,273 वर्गमीटर जमीन दी थी. करीब एक साल बाद 16 मार्च 2005 को इसकी लीज डील हुई लेकिन उस दौरान जमीन की पैमाइश में लापरवाही के कारण जमीन बढ़ी या घटी हुई आती थी.
सुपरटेक एमराल्ड कोर्ट के मामले में भी ऐसा ही कुछ हुआ. जहां प्लॉट नंबर 4 पर दी गई जमीन के पास ही 6.556.61 वर्गमीटर जमीन का एक टुकड़ा निकल आया था. जिसकी अतिरिक्त लीज डीड 21 जून 2006 को बिल्डर के नाम दे दी गई थी. लेकिन इन दोनों प्लॉट्स को साल 2006 में नक्शा पास होने के बाद एक प्लॉट बना दिया गया. इस प्लॉट पर सुपरटेक ने एमराल्ड कोर्ट प्रोजेक्ट को लॉच कर दिया. ग्राउंड फ्लोर के अलावा इस प्रोजेक्ट में 11 मंजिल के 16 टावर्स बनाने की योजना बनाई गई थी.
नक्शे के मुताबिक आज जहां पर 32 मंजिला एपेक्स और सियाने खड़े हैं. नक़्शे में वहां पर ग्रीन पार्क दिखाया गया था. इसके अलावा यहां पर एक छोटी इमारत बनाने का भी प्रावधान था. यहां तक सब कुछ ठीक था और साल 2008-09 में इस प्रोजेक्ट को कंप्लीशन सर्टिफिकेट भी दे दिया गया.
इसके बाद उत्तरप्रदेश सरकार के एक फैसले से इस प्रोजेक्ट में विवाद ने दखल दिया. साल 2009 के 28 फरवरी के दिन उत्तर प्रदेश शासन ने नए आवंटियों के लिए एफएआर बढ़ाने का फैसला लिया. जिसके साथ ही पुराने आवंटियों को कुल एफएआर का 33 प्रतिशत तक खरीदने का विकल्प दिया गया था. एफएआर बढ़ने का मतलब था कि अब उसी जमीन पर अधिक फलैटस बनाए जा सकते थे. जिससे सुपरटेक ग्रुप को भी बिल्डिंग की ऊंचाई 24 मंजिल और 73 मीटर तक बढ़ाने की अनुमति मिल गई. इसके बाद भी बायर्स ने किसी तरह का विरोध नहीं किया. लेकीन तीसरी बार जब फिर से रिवाइज्ड प्लान में इसकी ऊंचाई 40 और 39 मंजिला करने के साथ ही 121 मीटर तक बढ़ाने के लिए अनुमति मिली तो होम बायर्स का सब्र टूट गया.
बिल्डर से बात करके RWA ने नक्शा दिखाने की मांग की थी. लेकिन बायर्स की मांग के बाद भी बिल्डर ने लोगों को नक्शा नहीं दिखाया. तब RWA ने नोएडा अथॉरिटी से नक्शा देने के लिए कहा. यहां भी घर खरीदारों को मदद नहीं मिल पाई. एपेक्स और सियाने को गिराने की लंबी लड़ाई यहीँ से शामिल हुई जहां खरीददारों को नक्शा दिखाने के लिए मना किया गया. इस लड़ाई में शुरुआत से शामिल रहे निवासी यू बी एस तेवतिया की मानें तो नोएडा अथॉरिटी ने बिल्डर के साथ मिलीभगत करके ही इन टावर्स के निर्माण को मंजूरी दी गई थी.
आरोप है कि नोएडा अथॉरिटी से नक्शा मांगने पर कहा गया कि वो बिल्डर से पूछकर ही नक्शा दिखा सकते हैं. जबकि बिल्डिंग बायलॉज के मुताबिक किसी भी निर्माण की जगह पर नक्शा लगाना अनिवार्य है. बावजूद इसके बायर्स को प्रोजेक्ट का नक्शा नहीं दिखाया गया. विरोध करने के बाद सुपरटेक ने इसे अलग प्रोजेक्ट बताया.
रास्ता दिखाई ना देने पर बायर्स ने साल 2012 में इलाहाबाद हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. कोर्ट ने पुलिस जांच के आदेश दिए जिसमें बायर्स की बात को सही बताया गया. तेवतिया आगे बताते हैं कि जांच रिपोर्ट को भी दबाया गया. इस दौरान बायर्स अथॉरिटी की परिक्रमा करते रहे लेकिन किसी भी तरह नक़्शे के दर्शन नहीं हुए. खानापूर्ति के लिए अथॉरिटी ने बिल्डर को नोटिस भी जारी किया लेकिन कभी भी बिल्डर या अथॉरिटी ने बायर्स को नक्शा नहीं दिखाया.
इन टावर्स को बनाने में नियमों को ताक पर रखा गया है ऐसा बायर्स का आरोप है. सोसायटी के निवासी यूबीएस तेवतिया बताते हैं कि टावर्स की ऊंचाई बढ़ने पर दो टावर के बीच का अंतर भी बढ़ना चाहिए. खुद फायर ऑफिसर ने कहा कि न्यूनतम दूरी 16 मीटर होनी चाहिए ऐसा इसलिए क्योंकि ऊंचे टावर के बराबर में होने से हवा, धूप रुक जाती है साथ ही आग के खतरे को लेकर भी ये दूरी मायने रखती है.
लेकिन एमराल्ड कोर्ट के टावर से एपेक्स या सियाने की दूरी महज 9 मीटर है. हालांकि इस नियम के उल्लंघन पर नोएडा अथॉरिटी ने फायर ऑफिसर को कोई जवाब नहीं दिया. निवासियों का आरोप है कि नए नक्शे में इस बात का कोई ख्याल नहीं रखा गया था. तेवतिया कहते हैं कि बिल्डर ने IIT रुड़की के एक असिस्टेंट प्रोफेसर से निजी मंजूरी पर निर्माण कार्य किया था. जबकि इस तरह के प्रोजेक्ट में IIT की आधिकारिक की मंजूरी ली जाती है जो यहां पर नहीं ली गई.
साल 2012 में ये मामला जब इलाहाबाद हाई कोर्ट में पहुंचा तो जैसे निर्माण कार्य को भी पर लग गए. कोर्ट में मामले की एंट्री तक एपेक्स और सियाने की महज 13 मंजिलें बनी थीं लेकिन डेढ़ साल के अंदर ही सुपरटेक ने 32 स्टोरीज़ का निर्माण कर लिया. निवासियों का कहना है कि निर्माण कार्य के लिए रात दिन यहां काम किया गया था. हालांकि जब 2014 में हाईकोर्ट का निर्देश आया तब 32 मंजिल पर काम रुक गया. यदि ये काम ना रुकता तो ये टावर 40 और 39 मंजिल तक बनाए जाने थे. वहीं अगर ये टावर दूसरे रिवाइज्ड प्लान से 24 मंजिल तक रुक जाता तभी ये पूरा मामला रफा-दफा हो जाता. लेकिन महीनों तक बायर्स और निवासियों खासकर वरिष्ठ नागरिकों की कड़ी मेहनत ने लंबी लड़ाई लड़ी जो अब 28 अगस्त को अंजाम की ओर बढ़ रही है.
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