Bihar Cm Nitish Kumar Comments On Upendra Kushwaha: आधार वोट बैंक खिसकने के डर से उपेंद्र कुशवाहा पर आपत्तिजनक टिप्पणी कर रहे नीतीश कुमार: रालोसपा

Bihar Cm Nitish Kumar Comments On Upendra Kushwaha: बिहार के अंदर पिछले तीन दशक से राजनीति के केंद्र में पिछड़े, अतिपिछड़े और दलित रहे हैं. 1994 का साल यहां की सामाजिक धारा की राजनीति का टर्निंग पॉइंट रहा है. नीतीश कुमार इसी टर्निंग पॉइंट की उपज हैं और कुर्मी, कुशवाहा और धानुक इनका आधार वोट बैंक बनकर उभरा. यह लगभग 20-22 फीसदी वोट होता है.

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Bihar Cm Nitish Kumar Comments On Upendra Kushwaha: आधार वोट बैंक खिसकने के डर से उपेंद्र कुशवाहा पर आपत्तिजनक टिप्पणी कर रहे नीतीश कुमार: रालोसपा

Aanchal Pandey

  • November 10, 2018 3:56 pm Asia/KolkataIST, Updated 6 years ago

पटना: जेडीयू पर हमलावर होते हुए रालोसपा ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर उपेन्द्र कुशवाहा को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणी करने का आरोप लगाया है. पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष और प्रवक्ता जीतेन्द्र नाथ ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि बिहार के मुख्यमंत्री अपने आधार वोट के खिसकने की आशंका से हताश हैं और इसी बेचैनी में ये कुशवाहा के बारे में गलत टिप्पणी कर रहे हैं.

गौरतलब है कि पिछले दिनों मुजफ्फरपुर की एक सभा में नीतीश कुमार पर हमलावर रूख अपनाते हुए उपेन्द्र कुशवाहा ने कहा था कि सीट शेयरिंग को लेकर उपेन्द्र कुशवाहा से बातचीत से जुड़े मीडिया के बंधुओं के एक सवाल पर बड़े भाई नीतीश कुमार ने उन्हें नीच कहा था. कुशवाहा के इस बयान से न सिर्फ एनडीए बल्कि बिहार की राजनीति गरमा गई थी.

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बिहार के अंदर पिछले तीन दशक से राजनीति के केंद्र में पिछड़े, अतिपिछड़े और दलित रहे हैं. 1994 का साल यहां की सामाजिक धारा की राजनीति का टर्निंग पॉइंट रहा है. नीतीश कुमार इसी टर्निंग पॉइंट की उपज हैं और कुर्मी, कुशवाहा और धानुक इनका आधार वोट बैंक बनकर उभरा. यह लगभग 20-22 फीसदी वोट होता है.

रालोसपा प्रवक्ता जीतेन्द्र नाथ कहते हैं कि जैसे ही नीतीश कुमार के राज में बहुत स्पष्ट रूप से सत्ता के केंद्र में सत्ता से बाहर कर दिए गए कुनबे की खनक सुनाई पड़ने लगी, तब इनके आधार वोट में बेचैनी दिखाई पड़ने लगी और खुले तौर पर चर्चा होने लगी कि यह सामाजिक न्याय की सत्ता नहीं है. तब सबसे पहले इनके ही आधार वोट के भीतर से कुशवाहा समाज ने उपेन्द्र कुशवाहा के नेतृत्व में अपना रास्ता तय करना शुरू किया. नाथ कहते हैं कि नीतीश कुमार ने अपने आधार वोट से आने वाले दूसरी पंक्ति के नेताओं को पनपने नहीं दिया. ऐसे में उपेन्द्र कुशवाहा का चुनौती बनना इन्हें पच नहीं रहा है.

उपेन्द्र कुशवाहा 2019 की लोकसभा और 2020 की विधानसभा को ध्यान में रखकर न सिर्फ शिक्षा की बेहतरी और न्यायपालिका में आरक्षण जैसे सवाल पर नियमित आंदोलन कर रहे हैं बल्कि सोशल इंजीनियरिंग पर भी जोर दे रहे हैं. पिछले दिनों बी पी मंडल जयंती के बहाने खीर पॉलिटिक्स भी करते दिखाई पड़े. कुशवाहा की सोशल इंजीनियरिंग का सबसे अधिक खामियाजा नीतीश कुमार को उठाना पड़ रहा है. राजनीतिक गलियारों की चर्चा को मानें तो वह न सिर्फ कुशवाहा बल्कि कुर्मी-धानुक वोट बैंक में भी सेंध लगाने की रणनीति पर काम कर रहे हैं. इसी को ध्यान में रखकर पुराने वामपंथी संगठनकर्ता और राजनीतिक तौर पर पिछड़ी उपजाति समस्वर कुर्मी से आने वाले जीतेन्द्र नाथ पर कुशवाहा ने धानुक और कुर्मी को महती जिम्मेदारी सौंपी है.

2 नवम्बर को पटना के श्री कृष्ण मेमोरियल हॉल में धानुक कुर्मी एकता मंच के बैनर तले बड़ा गैर राजनीतिक कार्यक्रम कर चुके मंच के अध्यक्ष और रालोसपा के उपाध्यक्ष जीतेन्द्र नाथ कहते हैं कि धानुक और कुर्मी नीतीश कुमार से निराश है. वे पिछले 15-20 सालों में हाशिये पर धकेल दिए जाने से हताश हैं. सासाराम के इंजीनियर अशोक की हत्या, शेखपुरा में धानुक समाज के साथ हुए बेलौनी कांड और लखीसराय में बलात्कार कांड पर अपने ही समाज से आने वाले मुख्यमंत्री की प्रशासनिक शिथिलता से निराश और हताश हैं.

नीतीश कुमार पर समाज को राजनीतिक तौर पर हाशिये पर धकेलने का आरोप लगाते हुए नाथ कहते हैं कि लालू जी के समय में भी कुर्मी और धानुक से करीब 50 विधायक हुआ करता था, आज बमुश्किल 15 है. नाथ यहीं नहीं रुकते हैं, वो कहते हैं कि अब यह समाज समझने लगा है कि मुख्यमंत्री तो जरूर हमारे समाज से आते हैं लेकिन यह सरकार हमारी नहीं है. फिर प्रशांत किशोर को उत्तराधिकारी बनाकर समाज के भीतर उबाल ला दिया है. नाथ कहते हैं कि समाज के भीतर विद्रोह पनप रहा है। अब करीब 24 फीसदी भागीदारी वाला कुशवाहा, धानुक और कुर्मी समाज उपेन्द्र कुशवाहा को नेता मानकर आगे बढ़ रहा है.

जीतेन्द्र नाथ कहते हैं कि नीतीश कुमार भी इस सच्चाई को स्वीकार कर चुके हैं, तभी वो पहली बार कुशवाहा समाज के कार्यकर्ताओं की बैठक बुलाने को मजबूर होते हैं. उनको आधार वोट बैंक में टूट का डर सता रहा है और इसी बेचैनी में उपेन्द्र कुशवाहा से बातचीत करने को निचले दर्जे का बताने जैसा अपराध कर रहे हैं. लव-कुश समाज इंटैक्ट रहा है, दोनों सदियों से एक परिवार का हिस्सा रहा है. जो इस समाज को सम्मान देगा, यह समाज समुचित तौर पर उधर जायेगा. इसमें उपेन्द्र कुशवाहा राजनीतिक धुरी के तौर पर उभरे हैं.

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