नई दिल्ली: केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने आज यानी बुधवार (20 दिसंबर) को लोकसभा में 3 नए क्रिमिनल बिल पर चर्चा की. इन 3 नए विधेयकों के साथ देश की आपराधिक न्याय प्रणाली से जुड़े 150 साल पुराने कानूनों में बड़ा बदलाव व संशोधन किया जा रहा है. संसद के शीतकालीन सत्र में अमित […]
नई दिल्ली: केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने आज यानी बुधवार (20 दिसंबर) को लोकसभा में 3 नए क्रिमिनल बिल पर चर्चा की. इन 3 नए विधेयकों के साथ देश की आपराधिक न्याय प्रणाली से जुड़े 150 साल पुराने कानूनों में बड़ा बदलाव व संशोधन किया जा रहा है. संसद के शीतकालीन सत्र में अमित शाह ने इन तीनों बिल (New Rape Law) पर अपनी बात रखी. उन्होंने बताया कि कैसे यह बिल भारत की कानून व्यवस्था को बदल देंगे.
भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) कानून- भारतीय न्याय संहिता 2023
दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC)- भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023
भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872- भारतीय साक्ष्य विधेयक 2023
गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि इस नए कानून में मॉब लिंचिंग और बलात्कार (New Rape Law) करने पर अब आरोपी को फांसी होगी. रेप और यौन उत्पीड़न से संबंधित कानूनों में कई जरूरी बदलाव प्रस्तावित किए गए हैं. इस नए बिल में महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों को समर्पित एक पूरा नया अध्याय जोड़ा गया है. इसके साथ ही यौन उत्पीड़न के पीड़ितों की पहचान की सुरक्षा के लिए भी नया प्रावधान किया गया है.
नए बिल में रेप (New Rape Law) के लिए न्यूनतम सजा सात साल से बढ़ाकर दस साल कर दी गई है. इसमें नाबालिगों से बलात्कार के खिलाफ अलग कानून बनाए गए हैं. इसके तहत 16 साल से कम उम्र की लड़की से बलात्कार पर अधिकतम आजीवन कारावास की सजा होगी, जबकि 12 साल से कम उम्र की नाबालिग से बलात्कार पर मौत की सजा हो सकती है. इसके अलावा नाबालिग से सामूहिक दुष्कर्म के मामले में भी मौत की सजा दी जा सकती है. इसके साथ ही इस बिल में किसी महिला को धोखा देकर उसके साथ यौन संबंध बनाने को अपराध बनाने का प्रस्ताव किया गया है.
लोकसभा में ये बिल पेश कर गृह मंत्री अमित शाह काफी गौरवांकित महसूस कर रहे थे. उन्होंने इस बात पर भी जोड़ दिया कि उनकी सरकार में महिलाओं के लिए ही ज्यादा से ज्यादा काम किया जा रहा है. इन कानूनों में महिलाओं के खिलाफ हो रहे अपराधों के लिए सजा बढ़ाई गई है पर मैरिटल रेप को लेकर कोई नया प्रावधान नहीं बना. बलात्कार पर इतनी बातें हो रही हैं, पर अपने ही घर में महिलाओं के साथ हो रहे अत्याचार पर कोई बात नहीं हुई.
नए कानून (New Rape Law) के तहत इतने बदलाव होने के बावजूद भी मैरिटल रेप एक अपवाद बना हुआ है. बता दें कि आर्टिकल-63 के अपवाद 2 में कहा गया है कि किसी व्यक्ति द्वारा अपनी ही पत्नी, जो 18 साल से कम उम्र की न हो, के साथ यौन संबंध या यौन कृत्य बलात्कार नहीं है. वैवाहिक बलात्कार को आज भी भारतीय कानून एक अपराध मानने से बच रहा है. जब एक पति अपनी पत्नी की सहमति के बिना उसका यौन उत्पीड़न करता है तो यह भारतीय दंड व्यवस्था के तहत अपराध नहीं माना जाता है.
मैरिटल रेप को अपराध न घोषित करने के पीछे का सरकार यह कारण बताती है कि इस कानून से शादियां टूटने लगेंगी. उनका मानना है कि वैवाहिक बलात्कार को अपराध बना देने से झूठे आरोपों को बढ़ावा मिलेगा और संभावित रूप से परिवार नष्ट हो जाएंगे. एक तरह से देखें तो सरकार का यह तर्क पूरी तरह से गलत भी नहीं है. कई बार झूठे दहेज केस में जैसे आदमियों को फंसा दिया जाता है, वैसे ही इस केस में झूठे आरोप लगाकर फंसाया जा सकता है. मगर इन सारी चीजों से उन महिलाओं का नुकसान हो रहा है, जो सच में मैरिटल रेप की शिकार हैं. इसे अपराध न घोषित कर सरकार वैवाहिक बलात्कार को और बढ़ावा दे रही है. यह महिलाओं के मौलिक अधिकार का भी उल्लंघन है, जो सभी भारतीयों को स्वतंत्रता, समानता और सम्मान का हक देता है.
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