नई दिल्ली. तालिबान ने आंदोलन के दिवंगत संस्थापक मुल्ला उमर के सहयोगी मुल्ला हसन अखुंद को मंगलवार को अफगानिस्तान की नई कार्यवाहक सरकार का प्रमुख नियुक्त किया। इसने आंदोलन के राजनीतिक कार्यालय के प्रमुख मुल्ला अबुल गनी बरादर को भी अखुंद का डिप्टी नियुक्त किया। अफगानिस्तान में तालिबान ने वैश्विक आतंकी मुल्ला हसन अखुंद को […]
नई दिल्ली. तालिबान ने आंदोलन के दिवंगत संस्थापक मुल्ला उमर के सहयोगी मुल्ला हसन अखुंद को मंगलवार को अफगानिस्तान की नई कार्यवाहक सरकार का प्रमुख नियुक्त किया। इसने आंदोलन के राजनीतिक कार्यालय के प्रमुख मुल्ला अबुल गनी बरादर को भी अखुंद का डिप्टी नियुक्त किया।
अफगानिस्तान में तालिबान ने वैश्विक आतंकी मुल्ला हसन अखुंद को इस्लामिक अमीरात का प्रधानमंत्री नियुक्त किया है। इसके साथ ही अमेरिका के मोस्ट वॉन्टेड आतंकी को तालिबान सरकार में अफगानिस्तान का गृह मंत्री बनाया गया है। तालिबान सरकार में नंबर एक और दो पद पर वैश्विक आतंकियों की नियुक्ति से दुनिया में तहलका मचा हुआ है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि इन दोनों प्रतिबंधित आतंकियों के प्रमुख पदों पर रहते हुए कोई भी देश तालिबान सरकार को मान्यता कैसे दे सकता है।
मुल्ला हसन वर्तमान में तालिबान के शक्तिशाली निर्णय लेने वाले निकाय- रहबारी शूरा या नेतृत्व परिषद के प्रमुख हैं- जो शीर्ष नेता के अनुमोदन के अधीन समूह के सभी मामलों को चलाने वाले सरकारी मंत्रिमंडल की तरह कार्य करता है।
मूल रूप से कंधार के रहने वाले हसन सशस्त्र आंदोलन के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। उन्होंने रहबारी शूरा के प्रमुख के रूप में 20 साल तक काम किया और तालिबान के सर्वोच्च नेता मौलवी हैबतुल्ला अखुंदजादा के करीब रहे। उन्होंने 1996 से 2001 तक अफगानिस्तान में तालिबान की पिछली सरकार के दौरान विदेश मंत्री और उप प्रधान मंत्री के रूप में भी काम किया था।
तालिबान ने बार-बार अफगानों और विदेशों को आश्वस्त करने की कोशिश की है कि वे दो दशक पहले अपने अंतिम शासन की क्रूरता पर वापस नहीं लौटेंगे, जो क्रूर दंड और सार्वजनिक जीवन से महिलाओं और लड़कियों को प्रतिबंधित करने से चिह्नित है।
दुनिया में ऐसा पहली बार हुआ है, जब दो या दो से अधिक वैश्विक आतंकी किसी सरकार में सबसे ऊंचे ओहदे पर बैठे हुए हैं। ऐसे में बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि जिन-जिन देशों ने इन आतंकियों पर प्रतिबंध लगाए हुए हैं, वे आखिरकार तालिबान सरकार को मान्यता कैसे देंगे। अगर ये देश नियमों तो ताक पर रखकर मान्यता देते हैं तो इसे आतंकवाद के साथ समझौता माना जाएगा। दूसरी तरफ ऐसी मिसाल कायम होगी कि आतंकी होने के बावजूद सरकार का प्रमुख बनने पर सभी अपराध माफ हो जाते हैं।