नई दिल्ली. देश में नई शिक्षा नीति के जुलाई में लागू होने की बातें कहीं जा रही हैं. लेकिन नई शिक्षा नीती लागू होने से पहले ही इसके एक सुझाव पर बवाल छिड़ गया है. नई शिक्षा नीति में दक्षिण भारतीय राज्यों को हिंदी सिखाने की योजना है जिसका विरोध तामिलनाडु की डीएमके चीफ एम के स्टालिन सहित कई स्तरों से हो रहा है. ट्विटर पर #HindiisnotThenationalLanguage ट्रेंड कर रहा है. इससे पहले भी केरल से कांग्रेस नेता शशि थरूर ने इस कदम का विरोध करते हुए कहा था कि दक्षिण भारतीय लोग तो हिंदी सीखते हैं लेकिन उत्तर भारत के लोग तामिल या मलयालम नहीं सीखते. हालांकि विवाद बढ़ता देख नरेंद्र मोदी सरकार की तरफ से नए शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल ने कहा है कि सरकार कोई भाषा किसी क्षेत्र पर थोपने नहीं जा रही. यह केवल एक सुझाव है न कि अनिवार्यता.
भारत में भाषा के नाम पर काफी कुछ हो चुका है. 1960 के दशक में तमिलनाडु से ही हिंदी विरोधी आंदोलन की शुरुआत हुई थी. भाषा के आधार पर राज्यों का पुनर्गठन हुआ. ऐसे में नरेंद्र मोदी सरकार भी जानती है कि भाषा के सवाल को अगर सही तरीके से सुलझाया नहीं गया तो एनईपी(न्यू एजुकेशन पॉलिसी) की सफलता पर प्रश्नचिन्ह लग जाएंगे. इसलिए सरकार के कई मंत्रियों ने सोशल मीडिया पर आकर इस मामले की सफाई दी है. देश की नई वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने तामिल में ट्वीट कर सरकार की राय सामने रखी. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने ट्वीट किया, ‘जनता की राय सुनने के बाद ही ड्राफ्ट पॉलिसी लागू होगी. सभी भारतीय भाषाओं को पोषित करने के लिए ही पीएम ने एक भारत श्रेष्ठ भारत योजना लागू की थी. केंद्र तमिल भाषा के सम्मान और विकास के लिए समर्थन देगा.” दिलचस्प बात ये है कि निर्मला सीतारमन ने ये ट्वीट भी तामिल में ही किया.
विरोध के बाद जागी सरकार, किया बदलाव
नए विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी ट्वीट कर सरकार का पक्ष रखा. उन्होंने कहा, “नई शिक्षा नीति जो शिक्षा मंत्री को सौंपा गया है वह केवल एक ड्राफ्ट रिपोर्ट है. जनता से भी राय मंगाई जाएगी. राज्य सरकारों से भी सलाह-मशवरा किया जाएगा. इसके बाद ही ड्राफ्ट रिपोर्ट को अंतिम रूप दिया जाएगा. कोई भाषा जबरन थोपी नहीं जाएगी.” सोमवार को केंद्र सरकार ने नई शिक्षा नीति के ड्राफ्ट में बदलाव किया है. पहले तीन अनिवार्य भाषाओं में एक हिंदी भी थी लेकिन अब बदलाव के बाद हिंदी की अनिवार्यता खत्म कर दी गई है.
तमिलनाडु की सियासत में भाषा पर खूब हुई है राजनीति
दोनों ही मंत्री तमिलनाडु से आते हैं. ऐसे में सरकार ने तमिलनाडु में बिगड़ते माहौल का विपक्षी फायदा न उठा लें इसलिए इस विवाद का पटाक्षेप करने का जिम्मा अपने तामिल मंत्रियों को ही दिया. हालांकि दक्षिण भारत के नेताओं द्वारा इस मसौदे को लेकर विरोध के सुर लगातार बढ़ते जा रहे हैं. पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम और डीएमके नेता एमके स्टालिन के बयानों के बाद अब कर्नाटक के सीएम एचडी कुमारस्वामी और कांग्रेस नेता शशि थरूर हिंदी को दक्षिण भारत पर थोपने के खिलाफ चेतावनी जारी कर रहे हैं.
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