जोशीमठ: उत्तराखंड के जोशीमठ का नज़ारा इस वक़्त बेहद भयावह है. वहाँ दीवारें दरक रहीं हैं और पूरा शहर जमीन में धंस रहा है. आलम ऐसा है कि वहाँ घरों की दीवारों को चीरकर पानी बह रहा है. बदरीनाथ धाम से सिर्फ 50 किलोमीटर दूर स्थित जोशीमठ से कई ऐसी तस्वीरें सामने आई हैं जो पूरे देश को डरा रही हैं. लैंडस्लाइड और दरकती दीवारों के चलते कई इलाकों में लोग बेघर हो रहे हैं और दहशत में जी रहे हैं. घरों की दरारें लोगों को बेख़ौफ़ रहने नहीं दे रही हैं. लोग अपने-अपने घर छोड़कर पलायन कर रहे हैं.
“जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति” के अध्यक्ष अतुल सती ने कहा, ‘हम बीते 14 महीने से अधिकारियों का ध्यान आकर्षित करने की कोशिश में अलगे हैं, लेकिन हमारी बात नहीं सुनी जा रही है.’ जोशीमठ की स्थिति आज उतनी भयावह नहीं होती। अगर पहले से ही हमारी बातों पर ध्यान दिया गया होता। सती ने बताया कि नवंबर 2021 में जमीन धंसने से 14 परिवारों के रहने के लिए अपने घर से बेघर हो गए थे.
आपको बता दें, सती ने कहा कि जोशीमठ के अस्तित्व पर खतरा तब तक बना रहेगा जब तक कि इन परियोजनाओं को पूरी तरह बंद नहीं कर दिया जाता। उन्होंने कहा कि जब तक ऐसा नहीं होता जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति का आंदोलन जारी रहेगा। यही नहीं, इस पूरी घटना के बारे में बद्रीनाथ के पूर्व धर्माधिकारी भुवन चंद्र उनियाल का कहना है कि इन दरार के लिए एनटीपीसी परियोजनाएं जिम्मेदार है. उन्होंने कहा कि जोशीमठ के ठीक नीचे तपोवन-विष्णुगढ़ जलविद्युत परियोजना सुरंग है। इसके निर्माण के लिए बड़े ड्रिलिंग रिग्स का इस्तेमाल किया गया था, जो पिछले दो दशकों से इस क्षेत्र की खुदाई कर रहे हैं और आज के जो हालात है उसके पीछे यही अहम वजह है.
इसके बाद उनियाल ने कहा कि सुरंग को बनाने के लिए हर रोज़ कई टन विस्फोटकों का इस्तेमाल किया जा रहा है. एनटीपीसी की तरफ से बड़ी मात्रा में किए गए विस्फोटकों का इस्तेमाल ही इस वाकये की असली वजह है. यही वजह है जो इस साल तीन जनवरी को जमीन धंसने की रफ्तार एकाएक बढ़ने लगी. साथ ही उन्होंने इस बात पर भी नाराज़गी ज़ाहिर की कि एनटीपीसी ने पहले आश्वासन दिया था कि इस पूरे कार्य से जोशीमठ में घरों को कोई क्षति नहीं पहुंचेगी. लेकिन उसने वादाखिलाफी की और आज मंज़र सबके सामने हैं.
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