नई दिल्लीः ये उन दिनों की बात है जब जवाहर लाल नेहरू और नेताजी सुभाष चंद्र बोस की काफी जमा करती थी, दोनों ही नौजवान थे, उच्च शिक्षा प्राप्त थे, और दोनों ही समाजवादी नीतियों में भरोसा भी करते थे. कई मामलों मं तो बोस और नेहरू ने मिलकर गांधीजी की इच्छा के विरुद्ध भी जिद करके अपनी बात मनवा ली. ऐसे में जब कोलकाता में 1928 का कांग्रेस अधिवेशन हुआ तो वो अधिवेशन नेहरू और बोस दोनों के लिए बेहद ही खास था. नेहरू परिवार के लिए इसलिए खास था क्योंकि जवाहर लाल नेहरू के पिता मोतीलाल नेहरू को उस कांग्रेस अधिवेशन में अध्यक्ष बनाया जा रहा था. इससे पहले वो 1919 के अमृतसर अधिवेशन के भी अध्यक्ष रहे थे. बोस के लिए ये अधिवेशन इसलिए खास था क्योंकि ये कोलकाता में हो रहा था और उनका घर होने की वजह से बोस को अपनी ताकत दिखाने का अच्छा मौका था.
सुभाष चंद्र बोस ने इसे कर भी दिखाया. दो हजार नौजवानों को सैनिकों के वेश में कदमताल करने की ट्रेनिंग दी और मोतीलाल नेहरू के स्वागत के लिए 24 घोड़ों वाले एक रथ का बंदोबस्त किया. कांग्रेस अधिवेशन से ठीक पहले युवक कांग्रेस का भी अधिवेशन कोलकाता में ही हुआ. सुभाष चंद्र बोस ने काफी जोशीला भाषण दिया, एक तरह वो गांधीजी के अहिंसा के सिद्धांत पर सवाल उठा रहा था. बोस ने कहा, ‘’युवक संगठन उन ध्येय प्रेरित क्रांतिकारी युवाओं का समूह है, जिनके हृदय में वर्तमान व्यवस्था के प्रति उग्र विरोध के धधकते अंगारे खिलते हैं। अंग्रेजों के चंगुल से मुक्त होने पर ही हमारी प्रगति का राजमार्ग खुल सकता है. हमें संघर्ष के लिए कटिबद्ध होना है. आज भारत में दो मठ ऐसे हैं, जो इस संघर्ष के तीव्र नहीं होने देते- एक साबरमती आश्रम तो दूसरा अरविंदपीठम.‘’ साफ था साबरमती आश्रम का नाम लेकर इशारा गांधीजी की तरफ किया गया था.
बोस के भाषण के दौरान ही जतिन दास की अगुवाई में बीस तीस नौजवान सभा कार्यकर्ता भी मंच पर चढ़ गए, उन्ही में से एक भगत सिंह ने पूछा- “लाला लाजपतराय की हत्या का घाव हर नौजवान को साल रहा है, क्या अहिंसा के सिद्धांत से प्रभावित होकर अंग्रेज भारत छोड़ देंगे? एक प्रचंड धक्का तो देना ही होगा”. गांधीजी कोलकाता के पास ही सोदपुर आश्रम में थे, और अधिवेशन में नहीं आना चाहते थे, उनको किसी ने नमक मिर्च लगाकर बोस के भाषण और इस घटना की खबर पहुंचा दी. नाराज गांधीजी अधिवेशन में पहुंच गए.
गांधीजी प्रवेश द्वार पर पहुंचे तो देखा दो हजार नौजवान सैनिक वेश में कदमताल करते आ रहे हैं और उनके पीछे घोड़े पर कमांडर इन चीफ के रूप में नेताजी बोस चले आ रहे हैं. उनके ठीक पीछे अधिवेशन के अध्यक्ष मोतीलाल नेहरू अपनी पत्नी स्वरूपा रानी के साथ एक रथ पर सवार होकर आ रहे थे, उस रथ को 24 घोड़ों पर सवार सैनिक खींच रहे थे. इस लेख के साथ की तस्वीर में आप मोतीलाल नेहरू के पास सैनिक यूनीफॉर्म में खड़े नेताजी बोस को देख भी सकते हैं, ये उसी दिन की तस्वीर है. गांधीजी को देखकर मोतीलाल नेहरू सम्मान में अदब से उतर गए तो बोस ने घोड़े से उतरकर गांधीजी को सैल्यूट किया. बोस कस्तूरबा के सामने प्रणाम मुद्रा में झुके और मां कहकर सम्बोधित किया. कस्तूरबा ने भी फौरन स्नेह से अपना हाथ सीधे बोस के सर पर रख दिया, पर जैसे ही बा की नजर उन दोनों की तरफ कठोर मुद्रा में देखते हुए गांधीजी पर पड़ी तो बा ने फौरन अपना हाथ बोस के सर से वापस खींच लिया.
नाराज गांधीजी का बोस से सीधा सवाल था, ‘ये स्वांग किसलिए?’, उनका इशारा सैनिक वेश में युवाओं की तरफ था, ये परम्परा कांग्रेस की नहीं थी. तो बोस ने जवाब दिया, ‘’बापू, इससे युवकों में अनुशासन व स्वाभिमान की वृत्ति का विकास होता है’’. गांधीजी ने उस वक्त तो अपने गुस्से पर काबू पा लिया था, क्योंकि उनके सामने उस वक्त बड़ा उद्देश्य था कि किसी भी तरह पूर्ण स्वराज का प्रस्ताव इस अधिवेशन में पारित ना हो पाए. कांग्रेसियों ने प्रचारित भी कर दिया था कि अगर ये पारित हुआ तो गांधीजी राजनीति से संन्यास ले सकते हैं। तो सुभाष बोस ने अपने अभियान को थोड़ा धीमा कर दिया और गांधीजी की जीत हुई.
लेकिन अगले साल ही यानी 1929 में पूर्ण स्वराज का प्रस्ताव पारित हो गया था। दरअसल सुभाष चंद्र बोस और जवाहर लाल नेहरू ने तय कर लिया था कि इस साल नहीं तो अगली साल सही और अगली साल तो लाहौर अधिवेशन में कांग्रेस प्रेसीडेंट खुद जवाहर लाल नेहरू थे ही. ये अलग बात है कि बाद में नेहरू गांधीजी के करीब आ गए और बोस गांधीजी के साथ साथ नेहरू से भी दूर होते चले गए.
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