न सपा और न ही बीजेपी को समर्थन, 5 प्वाइंट में समझिए राजा भैया की रणनीति

लखनऊ। Raja Bhaiya News: जनसत्ता दल लोकतांत्रिक के नेता और कुंडा से विधायक रघुराज प्रताप सिंह राजा भैया ने मंगलवार शाम ऐलान किया कि वो किसी भी पार्टी को समर्थन नहीं देंगे तथा उनके समर्थक खुद फैसला लेने के लिए स्वतंत्र हैं। उनके इस एलान के बाद पूर्वांचल की राजनीति में खलबली मच गई। दो […]

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न सपा और न ही बीजेपी को समर्थन, 5 प्वाइंट में समझिए राजा भैया की रणनीति

Arpit Shukla

  • May 15, 2024 2:30 pm Asia/KolkataIST, Updated 6 months ago

लखनऊ। Raja Bhaiya News: जनसत्ता दल लोकतांत्रिक के नेता और कुंडा से विधायक रघुराज प्रताप सिंह राजा भैया ने मंगलवार शाम ऐलान किया कि वो किसी भी पार्टी को समर्थन नहीं देंगे तथा उनके समर्थक खुद फैसला लेने के लिए स्वतंत्र हैं। उनके इस एलान के बाद पूर्वांचल की राजनीति में खलबली मच गई। दो महीने पहले राज्यसभा की 10 सीटों के हुए चुनाव में बीजेपी को समर्थन देने वाला राजा भैया का ये रुख लोगों को आश्चर्यचकित कर दिया। आइए जानते हैं उनके इस फैसले के पीछे के पांच कारण-

1- कैंडिडेट के साथ अच्छे संबंध नहीं

कौशांबी सीट से बीजेपी ने विनोद सोनकर तथा सपा ने पूर्व मंत्री इंद्रजीत सरोज के बेटे पुष्पेंद्र सरोज को प्रत्याशी बनाया है। इसी तरह प्रतापगढ़ सीट पर भाजपा से संगम लाल गुप्ता और सपा से एसपी सिंह पटेल मैदान में है। कौशांबी के दोनों उम्मीदवार और प्रतापगढ़ सीट के भाजपा प्रत्याशी संगम लाल के साथ राजा भैया के रिश्ते जगजाहिर हैं। बता दें कि विनोद सोनकर खुलकर राजा भैया का विरोध करते रहे हैं, तो सपा नेता इंद्रजीत सरोज ने भी उनके खिलाफ मोर्चा खोल रखा है।

2- राजनीतिक समीकरण बिगड़ने का खतरा

राजा भैया 3 दशक से लगातार कुंडा विधानसभा सीट से विधायक हैं। वो भाजपा सरकार के हिस्सा रहे हों या फिर सपा, लेकिन वो कभी किसी के सिंबल पर चुनाव में नहीं उतरे। बता दें कि राजा भैया पहले निर्दलीय विधायक चुने जाते रहे हैं, लेकिन 2018 में उन्होंने जनसत्ता दल के नाम से खुद की पार्टी बना ली है। कुंडा से राजा भैया खुद विधायक हैं, तो वहीं उनके करीबी विनोद सरोज बाबागंज से विधायक हैं। यह दोनों ही विधानसभा सीटें कौशांबी लोकसभा सीट में ही आती हैं। इसके अलावा उनके रिश्ते में भाई अक्षय प्रताप सिंह प्रतापगढ़ से ही एमएलसी हैं। इस तरह दोनों ही लोकसभा सीटों पर राजा भैया का प्रभाव है।

3- बीजेपी को नहीं मिलता मुस्लिम वोट

राजा भैया के कौशांबी और प्रतापगढ़ लोकसभा सीट पर भाजपा उम्मीदवार को समर्थन देने के बाद भी मुस्लिमों का वोट नहीं मिलता। प्रतापगढ़ तथा कौशांबी दोनों ही सीट पर मुस्लिम मतदाताओं की ठीक-ठाक संख्या है। राजा भैया को ये बात बखूबी पता है कि मुस्लिम वोटर किसी भी सूरत में भाजपा के साथ नहीं जाना चाहता है। इसी तरह से यादव मतदाताओं की भी स्थिति है। मुस्लिम और यादवों के बीच राजा भैया की पैठ मजबूत है। राजा भैया भले ही भाजपा सरकार के पक्ष में खड़े नजर आते हों, लेकिन चुनावी राजनीति में वो दूरी बनाए हुए हैं।

4- सपा से नजदीकी

हालांकि राजा भैया के लिए ये पहली बार नहीं है। बता दें कि उनकी सियासत की शुरुआत निर्दलीय हुई थी। साल 1993 में राजनीति में आने वाले राजा भैया समाजवादी पार्टी की सरकार में मंत्री रहे। बता दें कि सपा संस्थापक और संरक्षक मुलायम सिंह यादव का राजा भैया को संरक्षण मिलता रहा। बसपा की सरकार में जब उनको जेल भेजा गया तब सपा ने इसका जमकर विरोध किया था। इसके बाद जब साल 2003 में सपा की सरकार आई तो वह फिर से मंत्री बनाए गए।

5- समर्थन के बाद भी हार का डर

राजा भैया बहुत ही स्ट्रैटजी के साथ राजनीति करते रहे हैं। सियासी पंडित भी कह रहे हैं कि लोकसभा चुनाव का राजनीतिक मिजाज किसी एक के पक्ष में नहीं दिख रहा है, न ही भाजपा की हवा है और न ही सपा के पक्ष में किसी तरह का कोई माहौल दिख रहा है। प्रतापगढ़ तथा कौशांबी सीट पर 2014 और 2019 दोनों ही चुनाव में एनडीए ने जीत दर्ज की थी, लेकिन इस बार कांटे की टक्कर मानी जा रही है। ऐसे में राजा भैया बीजेपी उम्मीदवार को समर्थन करते हैं और उसके बाद भी भाजपा नहीं जीत पाती तो उससे उनकी किरकिरी होगी।

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