नई दिल्ली : उप राष्ट्रपति चुनावों को लेकर संसद में वोटिंग की जा रही है. चुनाव में NDA उम्मीदवार जगदीप धनखड़ की जीत तय मानी जा रही है. बता दें, जगदीप धनकड़ का जीवन कई दुखों से भरा रहा. वह कभी भी राजनीति में कदम नहीं रखना चाहते थे. आज हम आपको पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल और उप राष्ट्रपति चुनाव में सत्ताधारी NDA के उम्मीदवार जगदीप धनखड़ के जीवन के कुछ ऐसे पहलुओं को बताने जा रहे हैं जिसे शायद ही आप जानते होंगे.
जयपुर से करीब 200 किमी दूर झुंझुनूं जिले में बसा गाँव किठाना उपराष्ट्रपति पद के NDA दावेदार जगदीप धनखड़ का गांव है. गाँव में रहने वाले जगदीप धनखड़ के सबसे करीबी दोस्त और प्राइमरी तक साथ पढ़े सेना से रिटायर्ड हवलदार हजारीलाल ने मीडिया से बातचीत की. उन्होंने एक चैनल को जगदीप धनखड़ के बचपन की कुछ कहानियों के बारे में बताया.
बुजुर्ग हजारीलाल बताते हैं कि ‘मेरा बचपन का दोस्त है जगदीप, हम दोनों साथ ही पढ़े हैं’. चार भाई बहनों में दूसरे नंबर के बेटे हैं. बड़े भाई कुलदीप धनखड़ और जगदीप से छोटे रणदीप और बहन इंद्रा में खूब प्यार है. आज तक उनके बड़े भाई कुलदीप उन्हें डांट-फटकार देते हैं और जगदीप भी इसे सहज लेते हैं. हजारीलाल बताते हैं कि धनखड़ शुरू से पढ़ाई में बहुत होशियार थे लेकिन इसके साथ-साथ वह खूब मस्ती भी किया करते थे. वह पढ़ाई में इतने लीन रहते थे की उनके हाथ हमेशा सियाही में ही रंगे रहते. इस वजह से टीचर्स भी उन्हें खूब प्यार दिया करते. जब भी बचपन में उन्हें समय मिलता तो वह कपड़े की गेंद बना कर खेला करते. उन्होंने बताया कि वह और धनखड़ दोनों गांव के स्कूल में पढ़े लेकिन बाद में जगदीप धनखड़ चित्तौड़गढ़ के सैनिक स्कूल चले गए.
धनखड़ के जीवन के बारे में बताते हुए हजारीलाल ने उनके जीवन के सबसे खराब दौर का भी ज़िक्र किया. हजारीलाल कहते हैं कि धनखड़ दिल-दिमाग से बेहद मजबूत हैं. उनके दो बच्चे, बेटा दीपक और बेटी कामना थी. दीपक अजमेर के मेयो स्कूल में था. 14 वर्ष की उम्र में साल 1994 में दीपक को ब्रेन हेमरेज हुआ. आनन-फानन में जब उसे दिल्ली ले जाया गया तो वह नहीं बचा. बेटे की मौत ने धनखड़ को तोड़ दिया था. इसके बाद भी वह इससे बाहर निकले और परिवार को संभाला. आज भी उनकी बेटी उनके साथ है.
जगदीप के छोटे भाई और राजस्थान पर्यटन विकास निगम (RTDC) के अध्यक्ष रहे रणदीप ने भी मीडिया से बातचीत की. वह बताते हैं कि छठवीं क्लास के बाद वो चितौड़गढ़ सैनिक स्कूल चले गए थे. इसके बाद उन्होंने महाराजा कॉलेज से ग्रेजुएशन की और इसके बाद लॉ की पढ़ाई पूरी की. जब उन्होंने वकालत शुरू की तो थोड़े ही समय बाद उनका नाम बड़े वकीलों में आने लगा. वह कभी भी राजनीति में नहीं आना चाहते थे उनका कुछ पाॅलिटिशियन से संपर्क था.
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