नई दिल्लीः आज ‘वंदे मातरम्’ गीत के रचयिता बंकिम चंद्र चटर्जी की जयंती है. ऐसे में आपको ‘वंदे मातरम्’ के लिए जान देने वाली 72 साल की एक वृद्धा की कहानी पता चलेगी तो आपकी ही नहीं बल्कि वंदे मातरम् के विरोधियों की आंखों में भी आंसू आ जाएंगे. उनका नाम था मातंगिनी हाजरा. वह एक गरीब किसान की बेटी थी. बचपन में ही पिता ने एक 60 साल के वृद्ध से उनकी शादी करा दी. जब मातंगिनी 18 साल की हुईं तो उनका पति मर गया. तो वो पश्चिम बंगाल के मिदनापुर के तामलुक में ही एक झोपड़ी बनाकर रहने लगीं.
एक दिन 1932 में उनकी झोपड़ी के बाहर से सविनय अवज्ञा आंदोलन का एक जुलूस निकला, तो 62 साल की हजारा भी उसमें शामिल हो गईं. उन्होंने नमक विरोधी कानून भी नमक बनाकर तोड़ा. गिरफ्तार हुई, सजा मिली, कई किलोमीटर तक नंगे पैर चलने की. उसके बाद उन्होंने चौकीदारी कर रोको प्रदर्शन में हिस्सा लिया. काला झंडा लेकर सबसे आगे चलने लगीं. बदले में मिली 6 महीने की जेल. उन्होंने एक चरखा ले लिया और खादी पहनने लगीं. लोग उन्हें ‘गांधी बूढ़ी’ के नाम से पुकारने लगे.
1942 में गांधीजी ने भारत छोड़ो आंदोलन का ऐलान कर दिया और नारा दिया करो या मरो. मातंगिनी हाजरा ने मान लिया था कि अब आजादी का वक्त करीब आ गया है. उन्होंने तामलुक में भारत छोड़ो आंदोलन की कमान संभाल ली, जबकि उनकी उम्र 72 पार कर चुकी थी. तय किया गया कि मिदनापुर के सभी सरकारी दफ्तरों और थानों पर तिरंगा फहराकर अंग्रेजी राज खत्म कर दिया जाए.
29 सितम्बर, 1942 का दिन था. कुल 6000 लोगों का जुलूस था, इसमें ज्यादातर महिलाएं थीं. वो जुलूस तामलुक थाने की तरफ बढ़ने लगा. पुलिस ने चेतावनी दी. लोग पीछे हटने लगे. मातंगिनी बीच से निकलीं और सबके आगे आ गईं. उनके दाएं हाथ में तिरंगा था और उन्होंने पुलिसवालों से कहा, ‘मैं फहराऊंगी तिरंगा, आज कोई मुझे कोई नहीं रोक सकता.’
आगे जो हुआ, अगर भगत सिंह, आजाद और बिस्मिल भी जिंदा होते तो मातंगिनी का साहस देखकर हैरत में पड़ जाते. जानिए पूरी कहानी विष्णु शर्मा के साथ इस वीडियो स्टोरी में…
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