नई दिल्ली। देश में सभी लोग जानना चाहते हैं कि वर्तमान में भारत की पॉपुलेशन क्या है? क्योंकि साल 2011 के बाद अभी तक कोई भी सर्वे नहीं किया गया है. जिससे सटीक आंकड़ों का पता लग सके. इसी बीच नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की एक ताजा रिपोर्ट सामने आई है, जिसमें देश में बच्चे […]
नई दिल्ली। देश में सभी लोग जानना चाहते हैं कि वर्तमान में भारत की पॉपुलेशन क्या है? क्योंकि साल 2011 के बाद अभी तक कोई भी सर्वे नहीं किया गया है. जिससे सटीक आंकड़ों का पता लग सके. इसी बीच नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की एक ताजा रिपोर्ट सामने आई है, जिसमें देश में बच्चे पैदा करने की रफ़्तार को लेकर जानकारी दी गई है। रिपोर्ट के मुताबिक देश में बच्चे पैदा करने की रफ्तार 2.2 प्रतिशत से घटकर 2% रह गई है। बच्चे कम पैदा हो रहे हैं और सभी धर्मों में यह पहले की तुलना में कम हुआ है। वही रिपोर्ट के हिसाब से देश में बेटियों को लेकर भी लोगों की सोच में बदलाव आया है. देश में दो बेटियों वाली 65 फ़ीसदी महिलाएं ऐसी हैं जिन्हें बेटे की कोई ख्वाहिश नहीं है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 5 की ताजा रिपोर्ट में यह बात निकल कर आई है।
NFHS की रिपोर्ट के अनुसार भारत में सभी धर्म में पहले की तुलना में अब बच्चे कम पैदा हो रहे हैं। साल 2015-16 में किए गए चौथे नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे और 2019-21 के पांचवे सर्वे में आधिकारिक आंकड़ों से पता चला है कि उच्च प्रजनन दर वाले समूह में तेजी से गिरावट देखी जा रही है। इस प्रकार मुसलमानों में NFHS-4 और NFHS -5 के बीच 2.62 से 2.36 तक 9.9 प्रतिशत की सबसे तेज गिरावट देखी गई है। वहीं ये अन्य समुदायों की तुलना में अधिक है। 1992-93 में सर्वेक्षणों की शुरुआत के बाद से, भारत में टीएफआर कुल प्रजनन दर 3.4 से 40% से अधिक गिरकर 2.0 हो गया है. साथ ही ये उस लेवल पर पहुंच गया है जो जनसंख्या आंकड़े को स्तर रखें।
NFHS के आंकड़ों से पता चलता है कि मुसलमानों के अलावा अन्य सभी प्रमुख धार्मिक समूह ने अब प्रतिस्थापन स्तर से नीचे का टीएफआर हासिल कर लिया है। वही सर्वे के प्रत्येक चरण में तेजी से गिरावट के बावजूद मुस्लिमों के बीच यह रेट थोड़ा अधिक है। एनएफएचएस के अब तक के पांच सर्वे में मुस्लिम टीएफआर में 46.5 फीसद की गिरावट आई है, हिंदुओं में 41.2 फीसद और ईसाइयों और सिखों के लिए लगभग एक तिहाई की गिरावट आई है।
*Total fertility rate (कुल प्रजनन दर)
रिपोर्ट में ये भी देखने को आया है कि एक ही समुदाय के लिए टीएफआर राज्यों के हिसाब से अलग है. उदाहरण के लिए उत्तर प्रदेश में हिंदुओं का टीएफआर 2.29 है, लेकिन तमिलनाडु में उसी समुदाय का टीएफआर 1.75 है, जो प्रतिस्थापन दर से काफी कम है। इस तरह, यूपी में मुस्लिम टीएफआर 2. 66 है, लेकिन तमिलनाडु में यह 1.93 है जो फिर से प्रतिस्थापन स्तर से नीचे है।
सर्वे में 35% पुरुषों का मानना है कि गर्भनिरोधक अपनाना महिलाओं का काम है। वही 19.6 प्रतिशत पुरुषों का मानना है कि गर्भनिरोधक का उपयोग करने वाली महिलाएं स्वच्छंद हो सकती हैं। सर्वे में देश के 28 राज्यों और 8 केंद्र शासित प्रदेशों के 707 जिलों से करीब 6.37 लाख सैंपल लिए गए. चंडीगढ़ में सबसे अधिक 69% पुरुषों का मानना है कि गर्भनिरोधक अपनाना महिलाओं का काम है और पुरुषों को इस बारे में चिंता करने की जरूरत नहीं है। केरल में सर्वेक्षण में शामिल 44.1 प्रतिशत पुरुषों के अनुसार गर्भनिरोधक का उपयोग करने वाली महिलाएं स्वच्छंद हो सकती हैं. केवल 5 राज्य ऐसे हैं जहां प्रजनन दर 2.1 प्रतिशत है. इनमें- बिहार, मेघालय, उत्तर प्रदेश, झारखंड और मणिपुर शामिल है.
बेटे की ख्वाहिश कम लेकिन घरेलू हिंसा के मामले बढ़े
रिपोर्ट में देखा गया है कि देश में दो बेटियों वाली 65 फ़ीसदी महिलाएं ऐसी हैं जिन्हें बेटी की कोई ख्वाहिश नहीं है. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 5 की ताजा रिपोर्ट में यह बात निकलकर सामने आई है. रिपोर्ट के मुताबिक महिलाओं पर घरेलू हिंसा के मामले बढ़े हैं. देश भर में 79 फ़ीसदी महिलाएं घरेलू हिंसा का शिकार हैं. वहीँ, 79.4% महिलाएं कभी भी अपने पति के जुल्मों की शिकायत नहीं करती।
सेक्सुअल एसॉल्ट के मामले में भी स्थिति खराब है. देश की 99.5 फ़ीसदी महिलाएं ऐसे मामलों में चुप्पी साध लेती हैं. शहरों के मुकाबले गांव में घरेलू हिंसा ज्यादा आम है। सेक्सुअल हिंसा के केस में सर्वे 28 राज्यों 8 केंद्र शासित प्रदेशों के 707 जिलों में किया गया। देश में 59 फ़ीसदी महिलाओं को बाजार, हॉस्पिटल या गांव से बाहर जाने की इजाजत नहीं मिलती। जहां तक रोजगार की बात है तो शादीशुदा 32 फ़ीसदी महिलाएं नौकरी करती हैं।