हज सब्सिडी खत्म होने के बाद खतरे में कई राज्य सरकारों की तीर्थयात्रा योजनाएं

नई दिल्लीः ये मई 2012 की बात है, सुप्रीम कोर्ट में दो जजों की बेंच के सामने अहम मुद्दा था, जज थे आफताब आलम और रंजना पी देसाई. केस के फैसले में दो लाइन अहम थीं,  “We direct the central government to progressively reduce the amount of subsidy so as to completely eliminate it within a period of 10 years from today”. बाकी सरकारों का तो पता नहीं लेकिन मोदी सरकार ने इस हज सब्सिडी को एक झटके में खत्म कर दिया. बीजेपी ही नहीं तमाम मुस्लिम चेहरों ने भी इस कदम का स्वागत किया है, लेकिन अब बड़ा सवाल ये उठ रहा है कि क्या हज सब्सिडी की तर्ज पर क्या कई राज्यों की ऐसी योजनाएं भी बंद हो जाएंगी, जो सभी धर्मों के सीनियर सिटीजंस को मुफ्त तीर्थयात्रा करवाती आ रही हैं. अकेले शिवराज सिंह ही ऐसी तीर्थयात्राओं पर अब तक करीब पांच लाख तीर्थयात्रियों को ये मुफ्त सुविधा दे चुके हैं.

हालांकि हज सब्सिडी को लेकर कई मुस्लिम उलेमा ये कह चुके थे कि कुरान में भी इस तरह की राज्य समर्थित यात्रा का समर्थन नहीं किया गया है. कुरान की 97वीं आयत के सूरा 3 अल ए इमरान के मुताबिक अगर कोई मुस्लिम खुद अपने पैसे से हज यात्रा करने में समर्थ नहीं है तो उसे हज यात्रा नहीं करनी चाहिए. इसका साफ मतलब है कि हज किसी और के पैसे से की जाए तो वो हराम है. सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने फैसले में कुरान में लिखी इस बात का उल्लेख किया, वाबजूद इसके पिछले 65 साल से भी ज्यादा समय से देश में हजारों यात्रियों को करोड़ों रुपए की सब्सिडी दी जा रही है. उस पर केन्द्र सरकार का एक बड़ा प्रतिनिधिमंडल मुफ्त हज यात्रा पर हर साल जाता है. इससे भी सुप्रीम कोर्ट नाराज थी.

ये अलग बात है कि कुछ बातें कोर्ट की भी जानकारी में नहीं लाई गईं, देश भर में बनीं तमाम राज्यों की हज कमेटियां, हज मंत्री और हज भेजने वाले दलाल जो साल में करोड़ों की सब्सिडी की रकम आपस में बंदरबांट करते हैं, उसके चलते तमाम भ्रष्टाचार भी होता आया है. जिसके चलते सोशल मीडिया पर आम मुस्लिम तबका इस फैसले का बड़ा विरोध करता भी नहीं दिख रहा है. लेकिन चिंता हो गई है उन लोगों को जो हज की तर्ज पर कई राज्यों में तीर्थयात्रा के नाम पर बांटी जा रही सब्सिडी के खेल से जुड़े हैं.

ऐसे ही सबसे बड़ी और चर्चित योजना है शिवराज सिंह सरकार की, जो 2012 से अब तक करीब पांच लाख यात्रियों को तीर्थयात्रा पर भेज चुकी है. सरकार ने शुरू में 17 तीर्थस्थानों की लिस्ट बनाई जिसमें मुसलमानों के लिए अजमेर शरीफ, बौद्धों के लिए गया, सिखों के लिए अमृतसर, जैनों के लिए श्रवणबेलगोला और सम्मेद शिखर, ईसाइयों के लिए वेलांगडी चर्च नागापट्टिनम (तमिलनाडु) के साथ साथ हिंदुओं के कई तीर्थस्थलों मसलन वैष्णो देवी, अमरनाथ, तिरुपति, काशी, बद्रीनाथ, केदारनाथ, द्वारका पुरी, जगन्नाथ पुरी, हरिद्वार, शिरड़ी और रामेश्वरम की तीर्थयात्राओं का विकल्प दिया था. 60 साल से अधिक के लोग और 65 साल से अधिक के वृद्ध सहायकों के साथ ये यात्राएं फ्री में करते हैं, उनका रुकना, आना-जाना और खाना सरकार की तरफ से होता है.

2015 में पांचों धर्मों के एक एक तीर्थस्थल इसमें और जोड़ दिए गए, जिसमें सबसे प्रमुख भगवान राम का जन्मस्थान अयोध्या भी शामिल था. वैसे एमपी सरकार देश से बाहर के तीर्थस्थानों के लिए भी नकद सहायता देती है, पहले तीस हजार थी, जो बाद में पचास हजार की रकम कर दी गई, इनमें पाकिस्तान के ननकाना साहिब और हिंगलाज माता मंदिर के लिए, कम्बोडिया में अंकोरवाट मंदिर के लिए, श्रीलंका में अशोक वाटिका और सीता मंदिर के लिए और मानसरोवर यात्रा के लिए है ही.

हिंदुओं को केन्द्र सरकार सीधे कोई सब्सिडी उनके खाते में नहीं देती लेकिन मानसरोवर यात्रा पर सिक्योरिटी और हैल्थ कैम्प्स के नाम पर ख्रर्चा होता है. इसी तरह कुम्भ मेलों के आयोजन में भी केन्द्र सरकार बड़ा खर्च करती है. 2014 में जिस कुम्भ मेले का बड़ा क्रेडिट यूपी सरकार के मंत्री आजम खांस ने लिया था, उस पर यूपी सरकार का खर्च महज 11 करोड़ था, लेकिन केन्द्र का खर्च उससे 100 गुना यानी 1150 करोड़ का था. उसी तरह जहां भी किसी भी धर्म का ब़ड़ा आयोजन होता है, केन्द्र या राज्य सरकारें आयोजन, इंतजाम, सिक्योरिटी, तीर्थयात्रियों के लिए तमाम सुविधाएं के नाम पर बड़ा खर्च करती हैं. जिस पर सवाल उठाना आसान नहीं है क्योंकि ना तो ऐसे आयोजन रोके जा सकते हैं और ना ही उनके इंतजाम या व्यवस्था से सरकारों का हटना ही ठीक होगा.

दिक्कत सीधी सब्सिडी या वोटर्स को लुभाने के लिए उस टैक्सपेयर के पैसे को देने की है, जोकि जरूरतमंद के हाथों में ना जाकर भ्रष्टाचार के गड्ढे से होता हुआ नेताओं, अधिकारियों या दलालों की जेबों में चला जाता है. हज सब्सिडी की ही तरह राज्य सरकारों की तीर्थयात्रा योजनाएं भी इसका एक श्रोत हो सकती हैं. हालांकि शिवराज सरकार में विपक्षी कांग्रेस भी इस योजना का सीधे विरोध करने से डरती और बचती है क्योंकि जनता इस योजना से खुश है, इसलिए वो केवल योजना के लागू करने में हुई अनियमितताओं का ही विरोध करती आई है. पिछली बार जब शिवराज ने ऐलान किया था कि मंत्री को भी तीर्थयात्रियों के साथ ट्रेन में भेजा जाएगा तो कांग्रेस ने य़े कहकर विरोध किया कि 10 दिन मंत्री बाहर रहेगा तो काम का नुकसान होगा.

हज यात्रा के चलते कई राज्यों को अपने राज्य के मानसरोवर यात्रियों को सब्सिडी देना शुरू कर दिया था, जिनमें छत्तीसगढ़, गुजरात, दिल्ली, कर्नाटक, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश और उत्तराखंड की सरकारें जो एक से डेढ लाख प्रति यात्री ये सब्सिडी बांट रही हैं, दिलचस्प है कि इनमें कांग्रेस और बीजेपी समेत डीएमके जैसी पार्टी भी हैं. यानी कोई भी पार्टी विरोध नहीं करेगी. जम्मू कश्मीर सरकार भी अमरनाथ श्राइनबोर्ड सरकारी मदद से ही चलाती है. हालांकि अगर किसी राज्य में कोई धर्मस्थल या तीर्थयात्रा होती है, तो उसका फायदा कई तरह से सरकार को भी होता ही है, टूरिज्म, होटल और कई तरह की इंडस्ट्री बढ़ती हैं, जिससे सरकार को लाभ मिलता है. धार्मिक आस्था के अलावा ये भी ब़ड़ी वजहें हैं कि सरकारें कभी इस तरह के आयोजनों में पीछे नहीं हटतीं. ऐसे में क्या और कोई सरकार हज सब्सिडी खत्म करने जैसा ब़ड़ा फैसला ले पाएगी, अभी कह पाना मुश्किल ही लगता है.

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Aanchal Pandey

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