रिलायंस इंडस्ट्रीज और उसके भागीदार निको और बीपी ग्रूप के खिलाफ तेल-गैस कुओं से गलत ढंग से गैस निकालने को लेकर भारत सरकार के 1.55 अरब डॉलर के भुगतान के दावे को इंटरनेशनल एट्रिब्यूशन ट्रिब्यूनल ने खारिज कर दिया है. तीन सदस्यों वाली न्यायाधिकरण ने रिलायंस और उसके पार्टनर को 83 लाख डॉलर यानी करीब 56 करोड़ रुपए देने का आदेश दिया है.
नई दिल्ली. इंटरनेशनल एट्रिब्यूशन ट्रिब्यूनल ने रिलायंस इंडस्ट्रीज और उसके भागीदारों के खिलाफ तेल-गैस कुओं से गलत ढंग से गैस निकालने को लेकर किए गए भारत सरकार के 1.55 अरब डॉलर के भुगतान के दावे को खारिज किया है. रिलायंस इंडस्ट्रीज ने इस बाबत जानकारी देते हुए कहा है कि बहुमत के आधार पर तीन सदस्यों वाली न्यायाधिकरण ने रिलायंस और अन्य साथियों को 83 लाख डॉलर मुआवजा देने का आदेश दिया है.
कंपनी के मुताबिक, इंटरनेशनल एट्रिब्यूशन ट्रिब्यूनल ने रिलायंस, निको और बीपी ग्रूप के पक्ष में फैसला देते हुए सरकार के भुगतान दावे को खारिज कर दिया. रिलांयस ने बताया कि भारत सरकार को न्यायाधिकरण ने ग्रूप को 83 लाख डॉलर यानी करीब 56 करोड़ रुपए का मुआवजा देने का निर्देश दिया है. सिंगापुर के न्यायधीश लारेंस बो की अध्यक्षता में चल रही कार्रवाई में सरकार की उस मांग को खारिज किया गया जिसमें रिलायंस और उनके भागीदारों पर कनाडा की निको रिर्सोसेज और ब्रिटेन की बीपीएलसी को गलत ढंग ओएनजीसी को आवंटित किए गए ब्लाक से गैस निकालने की वजह से भुगतान करना चाहिए.
एक अंग्रेजी अखबार के अनुसार, फैसला देते समय पैनल ने कहा कि गैस माइग्रेशन मामले में रिलायंस और उसके भागीदार बीपीसीएल, नीको रिसोर्सेज दोषी नहीं है. जिसके साथ ही सरकार की दलील को भी खारिज कर दिया गया. उस दौरान पैनल ने कहा कि अगर गैस ओएनजीसी के फील्ड से निकलकर रिलायंस और उसके पार्टनर के इलाके में आई तो उन्हें गैस को निकालने का पूरा अधिकार है. पैनल ने यह साफ करते हुए कहा कि इस तरह गैस निकालकर उन्होंने गलत ढंग से कोई फायदा नहीं उठाया.
गौरतलब है कि साल 2014 में यह विवाद शुरू हुआ था. दरअसल दिल्ली हाईकोर्ट में उस समय ओएनजीसी ने रिलांयस पर गलत ढंग से उनके ब्लॉक से गैस निकालने का आरोप लगाया था. जिसके बाद इस मामले में दोनों कंपनियों ने अमेरिकी सलाहकार डीएंडएम की नियुक्ति की थी. वहीं ओएनजीसी की याचिका पर हाइकोर्ट ने इस मामले को सरकार से सुलझाने के लिए कहा था.
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