नई दिल्ली. लोकसभा चुनाव 2019 से पहले सुप्रीम कोर्ट में इलेक्टोरल बॉन्ड के मुद्दे पर नरेंद्र मोदी सरकार के हलफनामे से साफ हो गया कि इस मुद्दे पर निर्वाचन आयोग और केंद्र सरकार आमने सामने आ गए हैं. दरअसल चुनाव आयोग ने इलेक्टोरल बॉन्ड के ज़रिए राजनीतिक दलों को चंदा लेने देने के प्रावधान को पारदर्शिता के लिहाज़ से अव्यवहारिक बताया था. वहीं केंद्र सरकार इस नीति को तर्कसंगत और व्यवहार संगत बताने में जी जान से जुटी है.
केंद्र सरकार ने अपने हलफनामे में चुनाव आयोग की चिंताओं को दरकिनार करते हुए कहा है कि राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता के लिए कानून में ये बदलाव चुनाव सुधार की दिशा में बड़ा और क्रांतिकारी कदम है.
नरेंद्र मोदी सरकार ने हलफनामे में कहा है कि पहले नकद चंदा लेन देन में काफी स्याह सफेद करते थे. बेहिसाब धन भी राजनीतिक चंदे के नाम पर इधर उधर कर दिया जाता था, लेकिन अब इस नई व्यवस्था में सब कुछ साफ रहेगा. केंद्र सरकार ने कहा कि पहले राजनीतिक फंडिंग गैरकानूनी ढंग से की जाती थी. इसी का फायदा उठाते हुए लोग अपना काला धन भी चुनावी फंडिंग में इस्तेमाल करते थे.
वहीं चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि केंद्र सरकार ने जो बदलाव किए हैं, वे चुनावी भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने की जगह इसकी पार्दर्शिता पर ही लगाम है. फिलहाल चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की पीठ इस मामले से संबंधित अगली सुनवाई 5 अप्रैल को करेगी.
बता दें कि सिर्फ राजनीतिक दल ही चुनावी बॉन्ड को भुना सकती हैं. ये बॉन्ड 10 हजार, एक लाख, 10 लाख या 1 करोड़ की राशि में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की चुनिंदा ब्रांचों से ही लिया जा सकता है.
इन राजनीतिक पार्टियों के लिए चुनाव आयोग एक अकाउंट भी खुलवाएगा जिसके जरिए चुनावी बॉन्ड की खरीद कर सकें. हालांकि चुनाव में जिन पार्टियों को कम से कम एक प्रतिशत वोट मिला है, सिर्फ वे इसके जरिए चंदा ले सकती हैं.
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