नई दिल्ली: हर मां के लिए मदर्स डे एक खास दिन होता है. मां के मातृत्व और सम्मान देने के लिए 8 मई को सेलिब्रेट किया जाता है। इस दिन अपनी मां को खुश करने के लिए कई तरह के आइडिया अपनाते हैं. ऐसे तो हर बच्चे के लिए उसकी मां खास होती है। मां […]
नई दिल्ली: हर मां के लिए मदर्स डे एक खास दिन होता है. मां के मातृत्व और सम्मान देने के लिए 8 मई को सेलिब्रेट किया जाता है। इस दिन अपनी मां को खुश करने के लिए कई तरह के आइडिया अपनाते हैं. ऐसे तो हर बच्चे के लिए उसकी मां खास होती है। मां के लिए भी सभी बच्चे समान होते है लेकिन कई ऐसी महिलाएं हैं जो अपने बच्चों को ही नहीं बल्कि सभी बच्चों को प्यार और स्नेह देतीं हैं। महाराष्ट्र की सिंधुताई सपकाल का नाम तो जरुर सुना ही होगा। जो हालातों की वजह से खुद के बच्चे को पाल नहीं सकी लेकिन एक समय ऐसा भी आया, जब उन्होंने बस अड्डे, फुटपाथ और रेलवे स्टेशन पर मिलने वाले हर बच्चे को मां का प्यार एवं स्नेह दिया। वही इन्होंने 1400 बच्चों को गोद लिया और उनको पालने के लिए भीख तक मांगी। मदर्स डे के मौके पर आज हम एक खूबसूरत मां के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्होंने इंसानों के अच्छे जीवन और वातावरन की सुरक्षा के लिए अपना जीवन पेड़ पौधों को अर्पित कर दिया व जिसके बाद “मदर ऑफ ट्री” के नाम से मशहूर हो गईं।
कर्नाटक के रमनगारा जिले में रहने वाली ‘सालुमारदा थिममक्का’ एक बुजुर्ग महिला हैं। रिपोर्ट के अनुसार सालुमारदा थिममक्का का जन्म 1910-1912 के बीच बताया जाता है। जानकारी के मुताबिक इस समय सालुमारदा की उम्र लगभग 110 साल है। सालुमारदा चर्चा में तब आई जब उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया। इनका पूरा जीवन पेड़ पौधों के नाम समर्पित रहा। इन्हीं वजह से सालुमारदा थिममक्का को “मदर ऑफ ट्री” अर्थात् पेड़ों की मां के नाम से भी जाना जाता है।
इसकी एक खास वजह है कि इन्होंने अपने जीवन में 8000 से भी ज्यादा पौधारोपण किए हैं। सालुमारदा के लगाए गए पेड़ अब विशाल वृक्ष बन गए हैं, जिनकी उम्र लगभग 70 साल से अधिक हो गई हैं। बताया जाता है कि सालुमारदा ने अपने स्वर्गीय पति के साथ मिलकर घर के पास बने हाईवे पर हजारोेें से अधिक पेड़ लगाए थे। इन सभी पेड़ों की देखभाल के लिए हफ्ते में दो बार पति-पत्नी मिट्टी के बर्तन में पानी भर के हाईवे पर ले जाते और पेड़ों की अच्छे से सिंचाई करते थे। इतना ही नही सड़कों के चौड़ीकरण को लेकर पेड़ों की कटाई को रोकने के लिए सरकार की योजना के खिलाफ सालुमारदा ने आवाज भी उठाई थी। सालुमारदा पेड़ पौधों को अपने बच्चों की तरह पाल पोस रही हैं। सभी पेड़ों को देखभाल के साथ वह मां की तरह स्नेह भी देती हैं व समय-समय पर गले भी लगाती हैं।
साल 2017 में सालुमारदा को पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। सालुमारदा की उम्र उस समय 107 साल थी। यह सम्मान उनको पेड़ों के प्रति स्नेह को देखकर मातृत्व प्रेम के लिए दिया गया था। उन्हें दुनिया का सबसे वृद्ध पर्यावरण कर्ता माना जा सकता है। इन्हें 2020 में कर्नाटक सेंट्रल यूनिवर्सिटी से डॉक्टरेट की उपाधि भी मिल चुकी है। ऐसे में अगर उन्हें पेड़ों की मां कहा जाए तो यह कहना गलत है क्या आप बताइए……