दागी नेताओ को चुनावों से बाहर करने के मामले पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई. जिसमें केंद्र सरकार ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि इस मामले पर संसद कार्रवाई कर सकती है ना कि कोर्ट. शीर्ष अदालत ने कहा कि गंभीर अपराधों के मामलों में फ़ास्ट ट्रैक के जरिये मामले का जल्द निपटारा करने पर विचार किया जा सकता है.
नई दिल्लीः दागी नेताओं को चुनाव से बाहर करने के मामले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने निपटारे के लिए ऐसे नेताओं के खिलाफ गंभीर अपराधों के मामले की सुनवाई फास्ट ट्रैक के जरिए करने के संकेत दिए. वहीं केंद्र सरकार ने विरोध करते हुए कहा कि इस विषय पर संसद कार्रवाई कर सकती है ना कि कोर्ट. आपको बता दें कि दागी नेताओं को चुनावों से बाहर करने की कवायद पर आज से सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ में सुनवाई शुरू हुई है. सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी कि और कहा जनप्रतिनिधी कानून में बदलाव कर किसी अपराध में दोषी करार होने से पहले किसी उम्मीदार को चुनाव लड़ने से नही रोक सकता. सुप्रीम कोर्ट ने कहा गंभीर अपराधों के मामलों में फ़ास्ट ट्रैक के जरिये मामले का जल्द निपटारा करने पर विचार किया जा सकता है.
पांच जजों की संविधान पीठ उन जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है जिनमें मांग की गई है कि गंभीर अपराधों में कोर्ट में अगर आरोपी पर आरोप तय हो जाए तो ऐसे में आरोपी के दोषी साबित होने तक का इंतजार करने की जरूरत नहीं, बल्कि आरोप तय होते ही ऐसे नेता को चुनाव की उम्मीदवारी की दौड़ से बाहर कर दिया जाना चाहिए. इस मामले में गंभीर अपराध वह बताए गए हैं जिनमें सज़ा 5 साल या इससे ज्यादा हो. सुप्रीम कोर्ट ने मार्च 2016 में यह मामला पांच जजों की संविधान पीठ को विचार के लिए भेजा था. इस मामले में बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय के अलावा पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त जेएम लिंगदोह और एक अन्य एनजीओ की याचिकाएं दायर हैं.
जिसमें कहा गया है कि इस समय देश में 33 फीसद नेता ऐसे हैं जिन पर गंभीर अपराध में कोर्ट आरोप तय कर चुका है। – याचिका में कहा गया है चुनाव लड़ने से संबंधित कानून यानि जनप्रतिनिधी कानून की धारा 8 में संशोधन किया जाना, यह धारा उम्मीदवार को चुनाव लड़ने से अयोग्य ठहराने के लिए है जिसमें यह जोड़ने की मांग है कि गंभीर अपराधों में कोर्ट में आरोप तय हो जाने पर आरोपी को चुनाव लड़़ने से रोका जाए.
इस संदर्भ में कहा गया है कि चुनाव आयोग भी 1998, 2004 और 2016 में इस मांग की सिफारिश कर चुका है. साथ ही लॉ कमीशन की 244वीं रिपोर्ट में यह सिफारिश की गई है. याचिका में ये भी कहा गया है कि कई विशेषज्ञ समितियां जिसमें गोस्वामी समिति, वोहरा समिति, कृष्णामचारी समिति, इंद्रजीत गुप्ता समिति, जस्टिस जीवनरेड्डी कमीशन, जस्टिस वेंकेटचलैया कमीशन, चुनाव आयोग और विधि आयोग राजनीति के अपराधीकरण पर चिंता जता चुके हैं, लेकिन सरकार ने आज तक उनकी सिफारिशें लागू नहीं कीं.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमारी अपनी लक्ष्मणरेखा है, हम कानून की व्याख्या करतें हैं ना कि कानून बनाते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा कि आप कह रहे हैं कि हम कानून बनाएं, ये कैसे संभव है. हमारा भी एक दायरा है.
सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों के संविधान पीठ ने कहा कि राजनीति में अपराधीकरण एक गंभीर मुद्दा है और इसे रोकने के लिए कानून में बदलाव संसद का कर्तव्य है. CJI दीपक मिश्रा ने कहा कि यह राष्ट्रीय सोच है कि राजनीति से अपराधीकरण को हटाने के लिए कदम उठाने चाहिए और इसे विधायिका नजरअंदाज नहीं कर सकती. यह चुनाव में पवित्रता के लिए समाज की जरूरत है.
CJI ने AG के.के. वेणुगोपाल से कहा कि हमें संसद को इन गंभीर हालात के बारे में याद दिलाना होगा. संसद का संविधान के अनुच्छेद 102 में संशोधन करना कर्तव्य है. हम यह इसलिए कह रहे हैं कि हम संविधान की आत्मा के पहरेदार हैं. चीफ जस्टिस ने पुराने फैसले का हवाला देते हुए कहा कि भ्रष्टाचार एक संज्ञा है लेकिन जब यह राजनीतिक क्षेत्र में प्रवेश करता है तो यह एंटीबायोटिक्स के लिए एक क्रिया प्रतिरोधी बन जाता है.
CJI ने आगे कहा कि सवाल यह है कि क्या कोर्ट कोई कानून बना सकता है. के.के. वेणुगोपाल ने कहा कि अब वक्त आ गया है कि संसद उन हालातों की समीक्षा करे लेकिन यह कोर्ट का काम नहीं है बल्कि संसद का काम है. संविधान के अनुच्छेद 21 में जीने के अधिकार के ब्यौरे में यह भी साफ है कि किसी अपराध में दोष सिद्ध होने तक सजा नहीं दी सकती. यहां तो चार्ज फ्रेम होने पर ही सजा देने की बात हो रही है.
मामले की सुनवाई जारी रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह संसद की जिम्मेदारी है कि वो कानून में संशोधन करे. कोर्ट ने इसे जल्दी निपटाने के संकेत दिए हैं. संविधान पीठ ने यह भी संकेत दिया कि संगीन अपराधों में जिन नेताओं के खिलाफ चार्ज फ्रेम हो जाएं उनको चुनाव लड़ने से रोका जाए. साथ ही दागी नेताओं के खिलाफ गंभीर अपराधों में मामले की सुनवाई फास्ट ट्रैक कोर्ट के जरिए कराई जाए.
कुल मिलाकर कहा जाए तो गुरुवार को हुई सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने कई गंभीर टिप्पणियां कीं. सुनवाई के बीच सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि जनप्रतिनिधि कानून में बदलाव किए बिना दोषी करार होने से पहले किसी को भी चुनाव लड़ने से नहीं रोक सकता. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गंभीर अपराधों के मामलों में फास्ट ट्रैक के जरिए मामले के जल्द निपटारे पर विचार किया जा सकता है. सुनवाई 14 अगस्त को जारी रहेगी.
बताते चलें कि सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ में गुरुवार से उस याचिका पर सुनवाई शुरू की जिसमें मांग की गई है कि गंभीर अपराधों में जिसमें सज़ा 5 साल से ज्यादा हो अगर किसी व्यक्ति के खिलाफ आरोप तय होते हैं तो उसके चुनाव लड़ने पर रोक लगाई जाए. अगर कोई सांसद या विधायक है तो उसकी सदस्यता रद्द होनी चाहिए. दरसअल मार्च 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने यह मामला पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ को विचार के लिए भेजा था.
इस मामले में अश्विनी कुमार उपाध्याय के अलावा पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त जे.एम. लिंगदोह और एक अन्य एनजीओ की याचिकाएं भी लंबित हैं. याचिका में कहा गया है कि इस समय देश में 33 फीसदी नेता ऐसे हैं जिन पर गंभीर अपराध में कोर्ट आरोप तय कर चुका है. याचिका में यह भी कहा गया है कि कई विशेषज्ञ समितियां जिसमें गोस्वामी समिति, वोहरा समिति, कृष्णामचारी समिति, इंद्रजीत गुप्ता समिति, जस्टिस जीवनरेड्डी कमीशन, जस्टिस वेंकेटचलैया कमीशन, चुनाव आयोग और विधि आयोग राजनीति के अपराधीकरण पर चिंता जता चुके हैं, लेकिन सरकार ने आज तक उनकी सिफारिशें लागू नहीं कीं.
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