सिद्धारमैया Vs येदियुरप्पा: कर्नाटक चुनाव में लिंगायतों को अल्पसंख्यक दर्जे का कांग्रेस और भाजपा पर क्या होगा असर

कर्नाटक में लिंगयतों की आबादी 17 से 18 फीसदी है. आंध्रप्रदेश, तेलंगाना और तमिलनाडु के कई शहरों में इनका खास प्रभाव है. सिर्फ कर्नाटक में ही कुल 100 विधानसभाओं में लिंगायतों का ही वर्चस्व है. पहले 80 की दशक में लिंगायत जनता दल नेता रामकृष्ण हेगड़े को समर्थन देते थे. रामकृष्ण हेगड़े जब जेडीयू में आए तो उनका समर्थन भाजपा को भी मिला

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सिद्धारमैया Vs येदियुरप्पा: कर्नाटक चुनाव में लिंगायतों को अल्पसंख्यक दर्जे का कांग्रेस और भाजपा पर क्या होगा असर

Aanchal Pandey

  • March 22, 2018 6:42 pm Asia/KolkataIST, Updated 7 years ago

नई दिल्ली. लिंगायतों को अलग धर्म देने के लिए कांग्रेस उतावली क्यों और बीजेपी परेशान क्यों? इसको समझने के लिए आपको जानना पड़ेगा कि लिंगायतों की आबादी कर्नाटक में 17 से 18 फीसदी है, आसपास के तेलंगाना, आंध्रप्रदेश और तमिलनाडु के कई शहरों में इनका प्रभाव है. अकेले कर्नाटक में ही 100 विधानसभाओं में लिंगायतों का वर्चस्व है. 80 के दशक में वो जनता दल नेता रामकृष्ण हेगड़े को समर्थन देते थे, वो जेडीयू में आए तो वो समर्थन बीजेपी को भी मिला था. लेकिन बाद में लिंगायत समुदाय के ही वीरेन्द्र पाटिल को मिलने लगा. लेकिन जिस तरह किसी बात को लेकर राजीव गांधी ने एयरपोर्ट पर ही वीरेन्द्र पाटिल को चीफ मिनिस्टर की कुर्सी से हटा दिया, लिंगायत कांग्रेस से नाराज हो गए थे. 2008 में उन्होंने लिंगायत समुदाय के ही बीजेपी नेता येदियेरुप्पा को समर्थन देना शुरू कर दिया. लेकिन जब करप्शन के आरोपों को लेकर बीजेपी ने येदियुरप्पा को हटा दिया, तो 2013 में उन्होंने नाराज होकर कांग्रेस को वोट किया और सिद्धारमैया आज मुख्यमंत्री हैं.

कर्नाटक की एक और समस्या है, एक और बड़ी जाति का वहां वर्चस्व है, जिसे वोकालिंगा कहते हैं. उत्तर कर्नाटक में उनकी बहुतायत है. पहले कर्नाटक सीएम वोकालिंगा ही थे, लेकिन लिंगायतों के ताकतवर नेता एस निंजालिंगप्पा ने उनकी जगह ले ली और फिर 38 साल तक कोई वोक्कालिगा सीएम नहीं बन पाया. एस निंजालिंगप्पा वही नेता थे, जो एक बार कांग्रेस अध्यक्ष बने तो इंदिरा गांधी को पार्टी से ही निकाल दिया था. वीरेन्द्र पाटिल के बाद वोक्कालिगा सीएम बने देवेगौड़ा, जो बाद में पीएम की कुर्सी तक पहुंच गए. लेकिन येदियुरप्पा इस बार फिर मजबूर स्थिति में दिख रहे हैं.

ऐसे में सिद्धारमैया को पता है कि अब बीजेपी के नेता फिर से येदियुरप्पा हैं तो उनकी दाल आसानी से गलने वाली नहीं. तो उन्होंने ये ब्रहमास्त्र निकाला कि सालों पुरानी इनकी अलग धर्म की मांग पूरी कर दी जाए. हालांकि यूपीए टू में ये मांग खारिज की जा चुकी है, वैसे भी कर्नाटक की सिफारिश से तो कुछ होने वाला है भी नहीं, चूंकि फैसला तो केन्द्र को लेना है. बीजेपी के लिए मुश्किल है, अगर मोदी सरकार इस सिफारिश को मंजूर नहीं करती है तो कर्नाटक में लिंगायतों के बीच गलत मैसेज जाएगा, जो इस बार येदियुरप्पा को फिर से लाने की तैयारी कर रहे थे. कर्नाटक सरकार ने नागमोहन समिति की सिफारिशों को स्टेट माइनॉरिटी कमीशन ऐक्ट की धारा 2डी के तहत मंजूर कर लिया. अब इसकी अंतिम मंजूरी के लिए केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेजा जाएगा.

वैसे भी संघ और बीजेपी चूंकि मुसलमानों के वोटों की चिंता नहीं करती और ना ही आस तो हिंदू वोटों को वो एकजुट रखना चाहती है. ऐसे में लिंगायतों का अलग धर्म बनाना उनकी सोच के खिलाफ है, ऐसे में दोनों ने ही इस कदम की आलोचना की है. ये अलग बात है कि लिंगायतों में भी जाति व्यवस्था अब चरम पर है. मरहूम डॉक्टर एमएम कलबुर्गी लिंगायत थे और उन्होंने समाज में जाति व्यवस्था का विरोध करने के लिए पुरजोर अभियान चलाया था.  लिंगायत समाज में स्वामी जी (पुरोहित वर्ग) की स्थिति वैसी ही हो गई जैसी बासवन्ना के समय ब्राह्मणों की थी. 

फिर भी चूंकि लिंगायतों की सालों पुरानी मांग पूरी करने का वायदा कांग्रेस सरकार ने कर दिया है, इसलिए बीजेपी के लिए मुश्किल हो सकती है. ये अलग बात है कि राज्य सरकार के हाथ में बस सिफारिश करना है, ये बात कांग्रेस को भी पता है. ऐसे में गेंद अब बीजेपी की केन्द्र सरकार के हाथ में है कि वो क्या फैसला लेती है. येदियुरप्पा के लिए भी मुश्किल की घड़ी है, बडी मुश्किल से उनको दोबारा अपनी खोई ताकत और हैसियत का मौका मिलता दिख रहा था, जिसमें कांग्रेस ने फच्चर लगा दिया है. सो आने वाले दिन क्रर्नाटक की राजनीति में खासे दिलचस्प हो सकते हैं.

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