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तीन मूर्ति भवन को लेकर नया विवाद, नेहरू मेमोरियल फंड को कैंपस खाली करने का नोटिस

देश के पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू का तीन मूर्ति भवन 16 साल तक आधिकारिक आवास रहा था. हालांकि उनके मौत के बाद इस भवन को लाइब्रेरी और म्यूजियम में तब्दील कर दिया गया था. लेकिन अब संस्कृति मंत्रालय की ओर से तीन मूर्ति भवन को खाली करने का नोटिस भेजा गया है.

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Ministry of Culture sent notice to vacate Former PM Jawaharlal Nehru's Teen Murti Bhavan till September 24
  • September 24, 2018 4:51 pm Asia/KolkataIST, Updated 6 years ago

नई दिल्ली. तीन मूर्ति भवन भारत के पहले पीएम पंडित नेहरू का 16 साल तक आधिकारिक आवास रहा. उनकी मौत के कुछ साल बाद उसे नेहरू म्यूजियम और लाइब्रेरी में तब्दील कर दिया गया, 1984 में उसी कैंपस में एक नेहरू तारामंडल खोल दिया गया. इसी बीच अगस्त 1964 में बने नेहरू मेमोरियल फंड को भी अगस्त 1967 में तीन मूर्ति भवन का एक आवास आवंटित कर दिया गया. तब से अब तक 51 साल हो गए, उसका दफ्तर तीन मूर्ति भवन में ही चला आ रहा है. लेकिन अब संस्कृति मंत्रालय की तरफ से उन्हें 24 सितंबर तक तीन मूर्ति भवन खाली करने का नोटिस मिला है.

पहले समझिए कि जवाहर लाल नेहरू मेमोरियल फंड करता क्या है? इसे कौन चलाता है? इस संस्था की अगुवाई हमेशा से गांधी परिवार के हाथ में ही रही है, उन्हीं के खास लोग और ज्यादातर कांग्रेस नेता ही इसके बोर्ड में होते हैं. ये संस्था कई तरह की फेलोशिप देती है और रिसर्च आदि के लिए स्कॉलरशिप भी देती है. 1994 में सरकार ने सात करोड़ रुपए भी इस संस्था को दिए, जिसके ब्याज से स्कॉलरशिप्स दी जाती हैं.

इसके अलावा इंदिरा गांधी ने इस संस्था को इलाहाबाद वाला घर आनंद भवन भी हवाले कर दिया था, जिसमें म्यूजियम, लाइब्रेरी और प्लानेटोरियम की जिम्मेदारी भी नेहरू मेमोरियल फंड की है. कलेक्टेड वर्क्स ऑफ नेहरू पर भी काम चल रहा, और नेहरू म्यूजियम और लाइब्रेरी में भी मदद करती है. लेकिन नेहरू म्यूजियम और लाइब्रेरी की जिम्मेदारी संस्कृति मंत्रालय की है.

एक तरह से एक निजी ट्रस्ट या संस्था सरकार के साथ मिलकर उसके ही कैंपस से अपनी गतिविधियां चला रही थी. विरोधियों का आरोप है कि ये एक तरह का अवैध कब्जा है तीन मूर्ति भवन की संपत्ति पर, जो विशालकाय तीस एकड़ में बना है, जिसके अंदर म्यूजियम, लाइब्रेरी और नेहरू तारामंडल के अलावा फिरोजशाह तुगलक की शिकारगाह कुशक महन भी है. विरोधियों का ये भी आरोप है कि नेहरू के सलेक्टेड कागजात ही आम आदमी को मिलते हैं, परिवार सारे कागजातों को देखने की इजाजत नहीं देता. जबकि और कई महापुऱुषों को परिवारों ने भी कागजात इस लाइब्रेरी को दिए हैं, वो लोग दखल नहीं देते.

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