Mayawati BSP Akhilesh SP Alliance Breaking: 2019 लोकसभा चुनावों में मोदी का विजयरथ रोकने का दावा कर रहे सपा-बसपा महागठबंधन में चुनाव परिणाम के बाद टूट का खतरा मंडरा रहा है. आज लखनऊ में बीएसपी की बैठक हुई. सूत्रों के अनुसार इस बैठक में मौजूद नेताओं ने कहा कि सपा के साथ गठबंधन करने से पार्टी को कोई फायदा नहीं हुआ है. ऐसे में आगे यह महागठबंधन कायम रहेगा या नहीं इसका फैसला पार्टी सुप्रीमो मायावती पर छोड़ दिया गया है.
लखनऊ. लोकसभा चुनाव 2019 में जिस सपा-बसपा महागठबंधन पर नरेंद्र मोदी के विजयरथ को रोकने की जिम्मेदारी थी, चुनाव के बाद अब उस महागठबंधन पर ही टूट का खतरा मंडरा रहा है. सोमवार को लखनऊ में बहुजन समाज पार्टी के नेताओं के साथ बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने बैठक की. सूत्रों के हवाले से खबर आ रही है कि बीएसपी के कई नेताओं ने कहा कि गठबंधन से पार्टी को कोई फायदा नहीं हुआ. भविष्य में सपा के साथ गठबंधन जारी रखना है या नहीं इसका फैसला मायवती पर छोड़ दिया गया है. ताजा खबर है कि मायावती ने राज्य की 11 विधानसभा सीटों के उप-चुनाव में बीएसपी के अकेले लड़ने का फैसला कर लिया है जिसका औपचारिक ऐलान और गठबंधन के टूटने की घोषणा बाकी है. दिलचस्प बात यह है कि पिछले लोकसभा चुनावों में जहां बीएसपी खाता तक नहीं खोल पाई थी वहीं इस चुनाव में उसे 10 लोकसभा सीटों पर जीत मिली. इसके बावजूद महागठबंधन पर टूट का खतरा मंडराने लगा है.
कभी एक दूसरे के सियासी विरोधी रहे मायावती और मुलायम सिंह की पार्टियां नरेंद्र मोदी को केंद्र में दोबारा काबिज होने से रोकने के लिए एक हो गए. कई राजनीतिक पंडितों की राय थी कि देश की 80 लोकसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश में महागठबंधन शानदार प्रदर्शन करेगा. जातियों के गणित से लेकर वोटबैंक तक का हिसाब लगा लिया गया था. लेकिन चुनाव परिणामों ने सारा गणित पलट दिया. नरेंद्र मोदी की अगुवाई में बीजेपी ने 80 में से 62 सीटें जीतीं. मायावती की बसपा को 10 लोकसभा सीटों पर जीत मिली वहीं अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी केवल पांच सीटों पर कामयाबी दर्ज कर पाई. ऐसे में बसपा का यह कहना कि उसे गठबंधन से नुकसान हुआ गले नहीं उतरता.
सपा-बसपा गठबंधन से अखिलेश यादव को नुकसान और मायावती को फायदा
2014 लोकसभा चुनावों में सपा और बसपा के बीच गठबंधन नहीं था. तब सपा को 22.33 फीसदी वोट मिले थे और 5 लोकसभा सीटों पर कामयाबी मिली थी. 2019 के चुनावों में सपा का वोट प्रतिशत घटकर 17.96 फीसदी हो गया. सीटें इस बार भी 5 ही रहीं. इस लिहाज से सपा को कुल वोट प्रतिशत में नुकसान झेलना पड़ा. अब मायावती के बीएसपी की बात कर लेते हैं. बसपा को 2014 लोकसभा चुनावों में 19.77 फीसदी वोट मिले थे लेकिन एक भी लोकसभा सीट पर पार्टी का खाता भी नहीं खुल पाया था. वहीं 2019 में जब मायावती ने गठबंधन का हिस्सा होते हुए चुनाव लड़ा तो उनके वोट प्रतिशत तो लगभग उतना ही रहा, 19.26 लेकिन 10 लोकसभा सीटों का इजाफा हो गया. बसपा ने 2019 लोकसभा चुनावों में 10 लोकसभा सीटें जीतीं. जाहिर है मायावती की पार्टी को चुनाव परिणाम के लिहाज से देखें तो 10 गुना फायदा हुआ है. बीजेपी को 2014 के चुनाव में 42.63 परसेंट वोट के साथ 71 सीटें मिली थीं जबकि 2019 के चुनाव में उसे 7 परसेंट ज्यादा 49.56 परसेंट वोट और 62 सीटें मिली हैं. वोट बढ़ा पर सीटें घट गईं. कांग्रेस को 2014 में 7.53 परसेंट वोट और 2 सीट मिली थी जबकि 2019 में 6.31 परसेंट वोट और एक सीट मिली है. अमेठी से राहुल गांधी भी हार गए और सिर्फ सोनिया गांधी रायबरेली जीत पाईं.
ये तो होना ही था….
सपा-बसपा का गठबंधन होना ही अपने आप में आश्चर्य की बात थी. हालांकि सवाल दोनों पार्टियों के वजूद पर आ गया था. एक वक्त था जब यूपी की सत्ता सपा या बसपा के पास ही रहती थी. बीजेपी और कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टियां तीसरे और चौथे नंबर की रेस में रहती थीं. लेकिन 2014 में नरेंद्र मोदी की लहर में उत्तर प्रदेश में बीजेपी ने बंपर कामयाबी दर्ज की. उसके बाद हुए विधानसभा चुनावों में भी बीजेपी ने भारी बहुमत से सरकार बनाई. ऐसे में सपा और बसपा को अपने राजनीतिक भविष्य की चिंता सताने लगी. नरेंद्र मोदी को दोबारा प्रधानमंत्री बनने से रोकने के लिए सपा और बसपा ने अपनी सालों पुरानी दुश्मनी भुलाकर महागठबंधन कर लिया. चुनाव प्रचार के दौरान अखिलेश की पत्नी डिंपल यादव ने मायावती से पांव छूकर आशीर्वाद लिया था लेकिन जब मुलायम सिंह मंच पर आए तो मायवती के भतीजे आकाश ने उन्हें नमस्कार तक नहीं किया. सपा समर्थकों में इस बात से काफी नाराजगी भी देखी गई.
शिवपाल यादव ने यादव वोट बीजेपी के पाले में गिरवाए:मायावती
मायावती ने भी अखिलेश के चाचा शिवपाल यादव पर यादव वोट बीजेपी को दिलाने के आरोप लगाए. शिवपाल यादव सपा से बागी हो चुके हैं और उन्होंने अपनी पार्टी बनाई है. चुनाव अभियान के दौरान भी शिवपाल यादव ने मायावती के खिलाफ कई बार बेहूदे बयान भी दिए. अब जब नरेंद्र मोदी दोबारा प्रधानमंत्री बन चुके हैं और अगले पांच सालों तक केंद्र में एक स्थिर और मजबूत बहुमत की सरकार है. ऐसे में बसपा को उत्तर प्रदेश में अपने राजनीतिक भविष्य की चिंता सता रही है. दोनों पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और मायावती विधानसभा चुनावों में अलग-अलग लड़ेंगें. फिलहाल स्थितियां तो कुछ यहीं इशारा कर रही हैं.