नई दिल्ली. मराठा शासक छत्रपति शिवाजी को मुगलों से जंग के लिए आज भी याद किया जाता है, उन्हें उनके अदम्य साहस के लिए जाना जाता है. शिवाजी ने ही हिंद स्वराज्य की स्थापना की थी और औरगंजेब को कड़ी चुनौती देते हुए उत्तर भारत तक ही सीमित रहने को मजबूर कर दिया था. लेकिन […]
नई दिल्ली. मराठा शासक छत्रपति शिवाजी को मुगलों से जंग के लिए आज भी याद किया जाता है, उन्हें उनके अदम्य साहस के लिए जाना जाता है. शिवाजी ने ही हिंद स्वराज्य की स्थापना की थी और औरगंजेब को कड़ी चुनौती देते हुए उत्तर भारत तक ही सीमित रहने को मजबूर कर दिया था. लेकिन इसके अलावा भी भारत के सैन्य और राजनीतिक इतिहास में शिवजी के कई ऐसे योगदान हैं जो अविस्मरणीय हैं.
इन्हीं में से एक बड़ा काम यह था कि उन्होंने अपने दौर में देश को समुद्री ताकत बनाने की नींव रखी थी, अब उनकी छाप नौसेना के ध्वज पर भी नज़र आएगी, जो अंग्रेजों के प्रतीक चिह्म सेंट जॉर्ज क्रॉस की जगह लेगा. इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि आज तक देश की नौसेना के झंडे पर गुलामी की छाप थी लेकिन अब गुलामी से मुक्ति मिल गई है और महाराज छत्रपति शिवाजी से प्रेरित ध्वज नौसेना को मिला है.
महाराज छत्रपति शिवाजी ने 1650 के आखिरी दौर में नौसेना का गठन किया था उस समय उन्होंने यह महसूस किया था कि भारत की समुद्री सीमा की क्या अहमियत हो सकती है, जो आज के दौर में 7,000 किलोमीटर लंबी है. चोल साम्राज्य के बाद ज्यादातर शासकों ने भारत की समुद्री ताकत को नजरअंदाज किया था 17वीं शताब्दी में पुर्तगाली और अंग्रेज समुद्र के रास्ते ही भारत में घुसे थे.
शिवाजी ने भी डच और पुर्तगालियों को देखते हुए अपनी नौसेना बनाई थी, दिलचस्प बात तो ये है कि उन्होंने विदेशियों से ही बड़ी नावों और जहाजों को बनाने की तकनीक सीखी थी. कहा जाता है कि शिवाजी जब मजबूत दौर में थे, तब उन्होंने न सिर्फ समुद्री सीमाओं को मजबूत किया था बल्कि 60 जहाज और 10,000 नौसैनिकों की भी तैनाती कर रखी थी, शिवाजी ने 1674 में राज संभाला था, लेकिन वह उससे करीब एक दशक पहले से ही नौसेना की फ्लीट तैयार करने में जुटे हुए थे.
छत्रपति शिवाजी ने विदेशियों से काफी कुछ समझने की कोशिश की थी कि जैसे उन्होंने विदेशियों से ही समझा था कि कैसे समुद्री ताकत को बढ़ाया जाए. लेकिन उनके प्रयास इतने मजबूत थे कि उन्होंने मुगलों को भी पछाड़ दिया था, उन्हें शिवाजी का इतना खौफ था कि उन्हें लगता था कि कहीं जल परिवहन का इस्तेमाल करते हुए शिवाजी इतने मजबूत न हो जाएं कि उनके क्षेत्र में आ जाएं और उन्हें चुनौती देने लेंगे, शिवाजी ने 1664 में सूरत के बंदरगाह को जीत लिया था, जो उस दौर में मुगल कप्तान इनायत खान द्वारा चलाया जा रहा था, बस इसके बाद मुगलों को लगा कि मालाबार कोस्ट पर डच और कोंकण में पुर्तगाली अपना एकाधिकार जमाने की कोशिश कर रहे हैं.
शिवाजी ने भले ही नौसेना का गठन किया था, लेकिन उस सेना का स्वरुप अलग था वो आज के जैसा नहीं था. उनकी सेना में एक एडमिरल रैंक का अधिकारी था, लेकिन उसमें हाइरेरकी सिस्टम नहीं था, शिवाजी की नौसेना में दो मुस्लिमों को भी टॉप रैंक तैनात किया गया था. इन अधिकारियों के नाम थे दौलत खान और दरया सारंग वेंतजी।
अब जो नौसेना का नया ध्वज पीएम मोदी की ओर से अनावरण किया गया है, उसके ऊपरी कैंटन पर राष्ट्रीय ध्वज बना है. राष्ट्रीय प्रतीक के साथ एक नीला अष्टकोणीय आकार भी है, यह नौसेना के आदर्श वाक्य के साथ ढाल पर लगाया जाता है, बता दें नौसेना ने नए ध्वज को प्रदर्शित करते हुए वीडियो में कहा, ‘जुड़वां सुनहरी सीमाओं के साथ अष्टकोणीय आकार महान भारतीय सम्राट छत्रपति शिवाजी महाराज की मुहर से प्रेरणा लेता है, जिनके दूरदर्शी समुद्री दृष्टिकोण ने एक विश्वसनीय नौसैनिक बेड़े की स्थापना की, ये उन्हीं का दृष्टिकोण था जो आज हमारी इतनी विशाल नौसेना खड़ी है.’