नई दिल्ली: बांग्लादेश हिंसा की आग में चल रहा है, सबसे बड़ा सवाल यह है कि आंदोलन क्यों भड़का. आपको बता दें कि सन 1970 में आम चुनाव के बाद पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान में चुनाव परिणाम के पश्चात असहमति हुई। 25 मार्च 1971 को पाकिस्तान ने ऑपरेशन सर्चलाइट के तहत पूर्वी पाकिस्तान में सैन्य […]
नई दिल्ली: बांग्लादेश हिंसा की आग में चल रहा है, सबसे बड़ा सवाल यह है कि आंदोलन क्यों भड़का. आपको बता दें कि सन 1970 में आम चुनाव के बाद पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान में चुनाव परिणाम के पश्चात असहमति हुई। 25 मार्च 1971 को पाकिस्तान ने ऑपरेशन सर्चलाइट के तहत पूर्वी पाकिस्तान में सैन्य कार्रवाई की, जिसके परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर हिंसा और अत्याचार हुआ। यह घटना बांग्लादेश में ‘ब्लैक फ्राइडे’ के रूप में याद की जाती है। वहीं 26 मार्च 1971 को बांग्लादेश के राष्ट्रपति शेख मुजीबुर्रहमान ने बांग्लादेश की स्वतंत्रता की घोषणा की।
बांग्लादेश की स्वतंत्रा के बाद भी देश में कई आंदोलन हो चुके हैं. चलिए जानते है कुछ महतवपूर्ण आंदोलनों के बारे में:
1990 का सत्ता-विरोधी आंदोलन बांग्लादेश में एक प्रमुख लोकतांत्रिक आंदोलन था। यह आंदोलन तब शुरू हुआ जब पूर्व राष्ट्रपति हुसैन मोहम्मद एर्शाद की तानाशाही सरकार के खिलाफ व्यापक असंतोष फैल गया। छात्रों, नागरिकों, और विपक्षी दलों ने विरोध प्रदर्शन और आम हड़तालें कीं, जो एर्शाद के शासन की समाप्ति की मांग कर रही थीं। 6 दिसंबर 1990 को, बढ़ते दबाव के सामने एर्शाद ने इस्तीफा दे दिया। इस आंदोलन ने बांग्लादेश में लोकतंत्र की बहाली की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और नए चुनावों के लिए रास्ता खोला, जिससे लोकतांत्रिक शासन की स्थापना हुई।
5 फरवरी 2013 को बांग्लादेश के शाहबाग में एक बड़ा आंदोलन शुरू हुआ। इस आंदोलन के दौरान प्रदर्शनकारियों ने युद्ध अपराधी अब्दुल कादर मोल्ला को फांसी की सजा देने की मांग की। मोल्ला को बांग्लादेश के अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण द्वारा 1971 के मुक्ति युद्ध के दौरान पश्चिमी पाकिस्तान का समर्थन करने और कई बंगाली राष्ट्रवादियों की हत्या में दोषी ठहराया गया था। पहले उसे आजीवन कारावास की सजा दी गई थी। हालांकि प्रदर्शनकारी उसकी सजा से संतुष्ट नहीं थे। आंदोलन में कट्टरपंथी इस्लामी समूह जमात-ए-इस्लामी पर प्रतिबंध लगाने की मांग भी उठी। ब्लॉगर अहमद राजीब हैदर की हत्या और सईदी की फांसी की सजा ने इस आंदोलन को और भी तेज कर दिया।
12 दिसंबर 2013 को अब्दुल कादर मोल्ला को फांसी दी गई. इस आंदोलन के पश्चात बांग्लादेश की न्यायिक प्रणाली में सुधारों की ओर ध्यान आकर्षित हो सका, खासकर उन मामलों में जो युद्ध अपराधों और मानवाधिकारों से जुड़े थे।
2018 का बांग्लादेश कोटा सुधार आंदोलन एक प्रमुख छात्र आंदोलन था, जो सरकारी नौकरियों में आरक्षण (कोटा) प्रणाली में सुधार की मांग को लेकर छात्र अधिकार संघ परिषद द्वारा सबसे पहले 17 फरवरी 2018 को शाहबाग और ढाका विश्वविद्यालय परिसर में शुरू हुआ और अंततः 8 अप्रैल 2018 तक पूरे देश में फैल गया। इस आंदोलन की मुख्य मांग थी कि सरकारी नौकरियों में स्वतंत्रता सेनानियों के परिजनों, महिलाओं, जातीय अल्पसंख्यकों और शारीरिक रूप से अक्षम लोगों के लिए निर्धारित कोटा को घटाया जाए और मेरिट आधारित भर्ती प्रणाली लागू की जाए। प्रधानमंत्री शेख हसीना ने अप्रैल 2018 में घोषणा की कि सरकारी नौकरियों में कोटा प्रणाली को खत्म किया जाएगा।
उच्च न्यायालय द्वारा जून 2024 में सरकारी नौकरियों के लिए आरक्षण प्रणाली को फिर से बहाल कर दिया। कोर्ट द्वारा आरक्षण व्यवस्था को खत्म करने के फैसले को भी गैर कानूनी बताया गया। इसके तहत कोर्ट के आदेश के बाद देश में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए। बांग्लादेश में लगातार विरोध प्रदर्शन जारी है। वहीं प्रधानमंत्री शेक हसीना ने विरोध प्रदर्शन के बीच अपने पद से इस्तीफा दे दिया है।
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