आम भारतीयों से मनमोहन सिंह का पहला परिचय तब हुआ था जब उनके दस्तखत करेंसी नोट पर होते थे। 10 वर्षों तक प्रधानमंत्री के रूप में जनता की सेवा करने से पहले वो RBI गवर्नर, योजना आयोग के उपाध्यक्ष और वित्त मंत्री रहे। उदारीकरण के दौर में देश को गंभीर आर्थिक संकट से उबारा।
नई दिल्ली। डॉक्टर मनमोहन सिंह नहीं रहे लेकिन उनकी स्मृतियां रह गई। भारत को अपने महान सपूत की यादें जेहन में हमेशा ताजा रहेंगी। मुल्क की मुस्तकबिल के लिए उन्होंने कई रिस्की फैसले लिए। सरकार और सत्ता को भी दांव पर लगाने से पीछे नहीं हटे। सहज सरल और नम्र मनमोहन देश के इकलौते ऐसे प्रधानमंत्री थे, जिसका हस्ताक्षर नोटों पर भी था।
आम भारतीयों से मनमोहन सिंह का पहला परिचय तब हुआ था जब उनके दस्तखत करेंसी नोट पर होते थे। 10 वर्षों तक प्रधानमंत्री के रूप में जनता की सेवा करने से पहले वो RBI गवर्नर, योजना आयोग के उपाध्यक्ष और वित्त मंत्री रहे। उदारीकरण के दौर में देश को गंभीर आर्थिक संकट से उबारा। उनके नाम यह विशेष उपलब्धि है कि वो एकमात्र ऐसे प्रधानमंत्री हैं, जिनका हस्ताक्षर भारत के नोटों पर था।
साल 2005 में जब वो प्रधानमंत्री बने गए थे तब भारत सरकार की तरफ से 10 रुपये का नया नोट जारी किया गया। इसपर मनमोहन सिंह ने अपने दस्तखत कर रखे थे। नियमों के मुताबिक उस समय नोटों पर रिजर्व बैंक के गवर्नर का दस्तखत रहता था लेकिन एक विशेष बदलाव के तहत 10 रुपये के नोट पर मनमोहन सिंह के हस्ताक्षर थे। लोग 24 जुलाई 1991 का उनका बजट भाषण भी याद कर रहे हैं जब आर्थिक मंदी के साये में उन्होंने दुनिया को ललकारते हुए कहा था कि पूरा विश्व साफ़-साफ़ सुन ले कि भारत अब जाग चुका है। हम उबरेंगे और जीतेंगे।
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