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मनमोहन सिंह ने मुसलमानों के डर से नहीं लिया 26 /11 का बदला!

नई दिल्ली: भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह, जो वैश्वीकरण के दौर में भारतीय अर्थव्यवस्था के निर्माता माने जाते हैं, उनका निधन 26 दिसंबर को दिल्ली के AIIMS अस्पताल में हुआ। उनके 10 साल के कार्यकाल में एक ऐसी घटना घटी, जो आज भी लोगों के मन में ताजा है 26/11 का ताज होटल हमला। यह हमला भारत के लिए एक गहरी चोट था और उस समय की सरकार, जिसमें डॉ. मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे पर कड़ी आलोचना की गई थी।

मुस्लिम-विरोधी भावना बढ़ सकती है

इस हमले के बाद मनमोहन सिंह के नेतृत्व पर सवाल उठे थे. इस पर एक विवादास्पद दावा भी किया गया था । अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपनी किताब A Promised Land में 2008 के मुंबई आतंकवादी हमलों के बाद भारतीय प्रधानमंत्री के पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई से बचने को लेकर एक हैरान करने वाला खुलासा किया है। ओबामा के मुताबिक, मनमोहन सिंह ने इस बारे में कार्रवाई करने से इसलिए परहेज किया था क्योंकि उन्हें डर था कि इससे भारत में मुस्लिम-विरोधी भावनाएं बढ़ सकती हैं, जिससे भारतीय जनता पार्टी (BJP) को राजनीतिक लाभ हो सकता है। ओबामा ने लिखा, “उन्हें (मनमोहन सिंह को) चिंता थी कि बीजेपी के प्रभाव से मुस्लिम-विरोधी भावना बढ़ सकती है।”

भारत के साथ विश्वासघात 26/11 साक्ष्य पर पुनर्विचार

इसके अलावा, लेखक इलियास डेविडसन की किताब भारत के साथ विश्वासघात: 26/11 के साक्ष्य पर पुनर्विचार में भी 26/11 के हमलों को लेकर एक विवादित दावा किया गया है। डेविडसन के अनुसार, मनमोहन सिंह ने 26/11 के हमलों का बदला इस कारण से नहीं लिया क्योंकि ऐसा करने से एक खास समुदाय नाराज हो सकता था। डेविडसन का यह आरोप है कि प्रधानमंत्री के रूप में मनमोहन सिंह ने राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों में राजनीतिक संवेदनशीलता को ज्यादा महत्व दिया और आतंकवाद के खिलाफ कड़ी कार्रवाई से बचने की कोशिश की, ताकि किसी खास समुदाय में असंतोष न फैले।

डेविडसन की किताब में यह भी कहा गया है कि भारत ने 26/11 के हमलों का उचित प्रतिकार नहीं किया, जबकि यह हमले भारतीय नागरिकों पर किए गए थे और पूरे देश के लिए एक गंभीर संकट थे। उनका मानना है कि मनमोहन सिंह की सरकार ने आतंकवाद के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने से परहेज किया, क्योंकि वे मुस्लिम समुदाय को नाराज नहीं करना चाहते थे।

यह किताब कांग्रेस और मनमोहन सिंह के कार्यकाल पर आलोचनात्मक दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है, जिसमें कहा गया है कि उनकी सरकार आतंकवाद के खिलाफ ठोस कदम उठाने में नाकाम रही। हालांकि, इस किताब पर भी सवाल उठाए गए हैं क्योंकि यह एक ऐतिहासिक घटना को एकतरफा नजरिए से पेश करती है।

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Sharma Harsh

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