कोलकाता. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपना विरोधी तेवर बरकरार रखा है. दिल्ली में 15 जून को नीति आयोग की होने वाली बैठक में सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को मौजूद रहना था लेकिन ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर इस बैठक में आने से इनकार कर दिया है. ममता बनर्जी ने पत्र में लिखा है कि नीति आयोग के पास किसी तरह की वित्तीय शक्तियां नहीं हैं. ऐसे में इस बैठक में शामिल होने का कोई औचित्य नहीं है.
गौरतलब है कि इससे पहले पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथग्रहण में भी शामिल होने से इनकार कर दिया था. बीजेपी ने प्रधानमंत्री मोदी के शपथग्रहण में बंगाल में सियासी हिंसा में मारे गए बीजेपी कार्यकर्ताओं के परिवार को भी आमंत्रित किया था. ममता बनर्जी इस बात से बिफर गईं और उन्होंने कहा था- मैं देख रही हूं बीजेपी वाले लगातार बंगाल में 54 लोगों के राजनीतिक हिंसा में मारे जाने का दावा कर रहे हैं. यह बिल्कुल गलत है. ममता बनर्जी ने इसके बाद प्रधानमंत्री के शपथ ग्रहण समारोह में हिस्सा लेने से इनकार कर दिया था.
गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव 2019 खत्म होने के बाद भी पश्चिम बंगाल में बीजेपी और तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के बीच विवाद कम होने का नाम ही नहीं ले रहा है. जय श्रीराम बोलने पर हुए हंगामे के बाद दोनों ही पार्टियों के बीच दफ्तर को लेकर भी मारामारी शुरू हो गई थी. उत्तर 24 परगना जिले में खुद ममता बनर्जी बीजेपी दफ्तर पहुंचीं और दफ्तर में लगा ताला खुलवाया. आरोप है कि यहां ममता बनर्जी ने कमल के निशान को पेंट कर उस पर TMC का निशान बना दिया. तृणमूल कांग्रेस ने दावा किया है कि बीजेपी ने उनके दफ्तर पर कब्जा किया है.
पश्चिम बंगाल में पर्सनल बन गया पॉलीटिकल
पश्चिम बंगाल में वामपंथ का लाल दुर्ग तोड़ने वाली ममता बनर्जी को अब बीजेपी से तगड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है. बीजेपी ने हालिया लोकसभा चुनावों में बंगाल की 40 लोकसभा सीटों में से 18 पर जीत हासिल की थी. 2014 लोकसभा चुनावों में बीजेपी के पास सिर्फ दो सांसद थे. ममता बनर्जी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के बीच कई बार शाब्दिक युद्ध हुआ. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भी ममता बनर्जी ने कहा था कि उन्हें लोकतंत्र का थप्पड़ पड़ेगा. ममता बनर्जी और नरेंद्र मोदी के आपसी संबंध अब बतौर प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री उनके राजनीतिक संबंधों पर अधिक हावी दिख रहा है. यह निश्चित तौर पर एक परिपक्व लोकतंत्र के लिए बेहतर खबर नहीं है.
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