India Bangladesh Water Sharing Agreement: भारत-बांग्लादेश के बीच 1996 की गंगा जल संधि के नवीनीकरण और तीस्ता जल बंटवारे पर बातचीत शुरू हो गई है. इस बातचीत पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कड़ा विरोध जताया है.
ममता बनर्जी ने पीएम मोदी को चिट्ठी लिखकर अपनी नाराजगी जाहिर की. सीएम ने कहा कि राज्य सरकार की भागीदारी के बिना बांग्लादेश से तीस्ता जल बंटवारे पर कोई बातचीत नहीं होनी चाहिए. अगर तीस्ता नदी का पानी बांग्लादेश के साथ साझा किया जाएगा तो इससे उत्तर बंगाल के लाखों लोग गंभीर रूप से प्रभावित होंगे. ममता बनर्जी ने लेटर में लिखा कि राज्य सरकार से बिना पूछे किसी भी तरह की एकतरफा बातचीत हमें मंजूर नहीं. बता दें आपको कि बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना 21 जून को दो दिनों के लिए भारत आई थी. इस दौरान उन्होंने पीएम मोदी के साथ कई मुद्दों पर चर्चा की जिसमें प्रधानमंत्री ने द्विपक्षीय बैठक में तीस्ता नदी के जल संरक्षण, प्रबंधन और 1996 की गंगा जल संधि के नवीनीकरण पर भी बातचीत की थी.
ममता बनर्जी ने PM मोदी को भेजे पत्र में लिखा, ‘मुझे पता चला है कि भारत सरकार भारत-बांग्लादेश फरक्का संधि (1996) को रिन्यूअल करने जा रही है जो कि 2026 में समाप्त होने वाली है. सीएम ने कहा, ‘मैं इसपर अपनी कड़ी नाराजगी जाहिर करना चाहती हूं कि तीस्ता जल बंटवारे और फरक्का संधि पर कोई भी चर्चा बंगाल राज्य सरकार की भागीदारी के बिना बांग्लादेश के साथ नहीं की जानी चाहिए. उन्होंने आगे कहा कि पश्चिम बंगाल के लोगों का हित सबसे पहले है इसके साथ किसी भी कीमत पर समझौता नहीं.
ममता के आरोपों पर केंद्र सरकार ने जवाब दिया और बताया कि तीस्ता जल बंटवारे और फरक्का संधि को लेकर बांग्लादेश के साथ केंद्र की बातचीत के बारे में पश्चिम बंगाल सरकार को सूचना दी गई थी. सरकारी सूत्रों के अनुसार, केंद्र ने 24 जुलाई 2023 को बंगाल सरकार को पत्र लिखा था, जिसमें फरक्का में जल बंटवारे पर 1996 की संधि की आंतरिक समीक्षा को लेकर कमेटी के लिए बंगाल सरकार को अपने एक अधिकारी को नॉमिनेट करने के लिए कहा गया था. 25 अगस्त 2023 को बंगाल सरकार ने कमेटी के लिए राज्य के चीफ इंजीनियर (डिजाइन और अनुसंधान), सिंचाई और जलमार्ग को नॉमिनेट करने की सूचना दी थी और 5 अप्रैल 2024 को बंगाल सरकार के जॉइंट सेक्रेटरी (कार्य, सिंचाई और जलमार्ग विभाग) ने फरक्का बैराज से आने वाले 30 सालों के लिए पानी छोड़ने की मांग की थी.
भारत और बांग्लादेश के बीच सन् 1996 में गंगा जल संधि हुआ. 1996 में हुए जल संधि का मकसद दोनों देशों के बीच तनाव होने से रोकना था. उस समय के तत्कालीन भारतीय प्रधांनमत्री एचडी देवेगौड़ा और शेख हसीना ने इस समझौते पर साइन किए थे. पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में फरक्का बैराज है. फरक्का बांध में जनवरी से लेकर मई तक पानी का बहाव कम रहता है. इस समझौते का मकसद बांध में पानी का बहाव सुनिश्चित करना था. इस समझौते के अनुसार दोनों देशों के बीच अगर पानी की उपलब्धता 75,000 क्यूसेक बढ़ती है तो भारत के पास 40,000 क्यूसेक पानी लेने का अधिकार होगा. अगर फरक्का बांध में 70,000 क्यूसेक से पानी कम होता है तो फिर बहाव को दोनों देशों के बीच बांटा दिया जाएगा. अगर बहाव 70,000 से 75,000 क्यूसेक तक ही रहता है तो फिर बांग्लादेश को 35,000 क्यूसेक पानी दिया जाएगा.
तीस्ता नदी के पानी पर विवाद देश के बंटवारा के समय से ही चल रहा है. तीस्ता के पानी के लिए ही ऑल इंडिया मुस्लिम लीग ने साल 1947 में सर रेडक्लिफ की अगुवाई में गठित सीमा आयोग से दार्जिलिंग व जलपाईगुड़ी को तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में शामिल करने की मांग उठाई थी, लेकिन उस समय कांग्रेस और हिंदू महासभा ने इसपर कड़ा विरोध किया था.
इस विरोध को देखते हुए सीमा आयोग ने तीस्ता का अधिकतर हिस्सा भारत को दे दिया था. उसके बाद ये मामला ठंढा हो गया, लेकिन बता दे कि साल 1971 के युद्ध के दौरान पाकिस्तान से आजाद होकर बांग्लादेश का गठन हुआ. बांग्लादेश के गठन के बाद पानी के बंटवारे का मामला दोबारा उभर कर सामने आया. उसके बाद साल 1972 में इसके लिए भारत-बांग्लादेश ने संयुक्त नदी आयोग का गठन किया और वर्ष 1996 में गंगा के पानी पर हुए समझौते के बाद तीस्ता के पानी के बंटवारे की मांग ने जोर पकड़ लिया. उसी समय से ये मुद्दा लगातार विवादों में है. शुरुआती दौर में दोनों देशों का ध्यान सिर्फ गंगा, फरक्का बांध, मेघना और ब्रह्मपुत्र नदियों के पानी के बंटवारे पर ही केंद्रित था. 1996 में गंगा के पानी पर हुए समझौते के बाद से तीस्ता के पानी के बंटवारे की मांग ने जोर पकड़ लिया. इससे पहले 1983 में तीस्ता के पानी पर बंटवारे पर तदर्थ समझौता हुआ था. तदर्थ समझौते के तहत बांग्लादेश को 36 फीसदी और भारत को 39 फीसदी पानी के इस्तेमाल का हक मिला. बाकी बचा हुआ 25 फीसदी पानी का बंटवारा नहीं किया गया.
गंगा समझौते के बाद दूसरी नदियों के लिए विशेषज्ञों की एक समिति गठित की गई. इस समिति ने तीस्ता को महत्व देते हुए साल 2000 में इस पर समझौते का एक प्रारूप पेश किया. इसके बाद साल 2010 में दोनों देशों ने समझौते के अंतिम प्रारूप को मंजूरी दे दी. 2011 में जब कांग्रेस की मनमोहन सरकार थी तब भारत, तीस्ता नदी जल समझौता पर दस्तखत करने के लिए तैयार हो गया था, लेकिन ममता बनर्जी के विरोध के कारण मनमोहन सरकार ने अपने कदम पीछे कर लिया था. साल 2014 में नरेंद्र मोदी के PM के बनने के एक साल बाद पीएम मोदी बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ बांग्लादेश गए थे. इस दौरान दोनों नेताओं ने बांग्लादेश को तीस्ता के बंटवारे पर सहमति का यकीन दिलाया था, लेकिन 9 साल बीतने के बाद भी अब तक तीस्ता जल समझौते का कोई समाधान नहीं निकल पाया है.
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