नई दिल्ली। तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा को ‘कैश फॉर क्वेरी’ केस में शुक्रवार (8 दिसंबर) को सदन की सदस्यता से निष्काषित कर दिया गया। संसद की आचार समिति ने इस मामले में महुआ को निष्काषित करने की सिफारिश की थी। बता दें कि संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने निष्कासन प्रस्ताव सदन में पेश किया, जिसे ध्वनिमत से पारित किया गया। वहीं, विपक्ष ने महुआ की सांसदी रद्द होने की तुलना लोकतंत्र की हत्या से कर दी है। वहीं महुआ ने खुद को बेकसूर बताया।
वहीं, महुआ ने संसद सदस्यता जाने के बाद कहा कि उनको निष्काषित करने का फैसला ‘कंगारू अदालत’ के जरिए दी जाने वाली फांसी की सजा के जैसे ह। महुआ ने आरोप लगाया कि सरकार ने आचार समिति को विपक्ष को झुकाने वाला हथियार बनाना शुरू कर दिया है। महुआ ने आगे कहा कि उनको उस आचार संहिता का दोषी पाया गया है, जिसका कोई अस्तित्व ही नहीं है।
दरअसल, अब महुआ मोइत्रा के पास कुल मिलाकर पांच विकल्प बचे हुए हैं। लेकिन अभी यह साफ तौर पर नहीं कहा जा सकता है कि यदि वह इन विकल्पों का इस्तेमाल करेंगी, तो उनको राहत मिल ही जाएगी। टीएमसी नेता के पास पहला विकल्प है कि वह फैसले की समीक्षा के लिए संसद से गुजारिश करें।
हालांकि, इस मामले पर विचार करने का आखिरी फैसला सांसद का ही होगा। वहीं मोइत्रा के पास दूसरा विकल्प है कि वह मौलिक अधिकारों और प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन का हवाला देकर सुप्रीम कोर्ट जाएं और कोर्ट के फैसले की उम्मीद करें। उनके पास तीसरा रास्ता है कि वह संसद के निर्णय को स्वीकार करें और आगे बढ़ें। करीब चार महीने बाद एक बार फिर से चुनाव होने वाले हैं। वह इलेक्शन लड़ें और उसे जीतकर फिर से संसद में पहुंचें। यदि वह चाहें तो चौथे ऑप्शन के तौर पर एथिक्स कमेटी के अधिकार क्षेत्र को चैलेंज कर सकती हैं। वह इस बात का हवाला दे सकती हैं कि एथिक्स कमेटी ने पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर उनके खिलाफ निर्णय दिया।
बता दें कि महुआ मोइत्रा पांचवें विकल्प के तौर पर दिल्ली हाईकोर्ट में चल रहे मुकदमे के जरिए राहत की मांग कर सकती हैं। इसके लिए उनको अदालत में साबित करना होगा कि उनके खिलाफ लगाए गए आरोपों की वजह से उनकी छवि खराब हुई है।
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