Round Table Conference: नई दिल्ली: नमक यात्रा के कारण ही अंग्रेजो को यह अहसास हुआ था कि अब उनका राज बहुत दिन तक नहीं चल सकेगा और उन्हें भारतीयों को भी सत्ता में हिस्सा देना होगा। इस लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए ब्रिटिश सरकार ने लंदन में गोलमेज सम्मेलन का आयोजन शुरू किया। अंग्रेज […]
नई दिल्ली: नमक यात्रा के कारण ही अंग्रेजो को यह अहसास हुआ था कि अब उनका राज बहुत दिन तक नहीं चल सकेगा और उन्हें भारतीयों को भी सत्ता में हिस्सा देना होगा। इस लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए ब्रिटिश सरकार ने लंदन में गोलमेज सम्मेलन का आयोजन शुरू किया। अंग्रेज सरकार द्वारा भारत में संवैधानिक सुधारों पर चर्चा के लिए दो साल में तीन गोलमेज सम्मेलन आयोजित किये गए थे। ये सम्मलेन मई 1930 में साइमन आयोग द्वारा प्रस्तुत की गई रिपोर्ट के आधार पर संचालित किए गए थे।
पहला गोलमेज सम्मेलन नवम्बर 12 नवम्बर 1930 में आयोजित किया गया जिसमें देश के प्रमुख नेता शामिल नहीं हुए, इसी वजह से बैठक निरर्थक साबित हुई। इसकी अध्यक्षता ब्रिटेन के प्रधानमंत्री रामसे मैकडॉनल्ड ने की। 3 ब्रिटिश राजनीतिक दलों का प्रतिनिधित्व सोलह प्रतिनिधियों द्वारा किया गया। अंग्रेजों द्वारा शासित भारत से 57 राजनीतिक नेताओं और रियासतों से 16 प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
जनवरी 1931 में महात्मा गाँधी को जेल से रिहा किया गया। अगले ही महीने वायसराय के साथ उनकी लंबी बैठक हुई। इन्हीं बैठकों के बाद गांधी-इरविन समझौते पर सहमति बनी, जिसकी शर्तो में सविनय अवज्ञा आंदोलन को वापस लेना, सारे कैदियों की रिहाई और तटीय इलाकों में नमक उत्पादन की अनुमति देना भी शामिल था।
दूसरा गोलमेज सम्मेलन साल 1931 के आखिर में लंदन में आयोजित हुआ और उसमें गाँधी जी कांग्रेस का नेतृत्व कर रहे थे। महात्मा गाँधी का कहना था कि उनकी पार्टी पूरे भारत का प्रतिनिधित्व करती है। इस पर तीन पार्टियों ने चुनौती दी। मुस्लिम लीग का कहना था कि वह मुस्लिम अल्पसंख्यकों के हित में कार्य करती है। तीसरी चुनौती बी आर अंबेडकर का कहना था कि गाँधी जी और कांग्रेस पार्टी निचली जातियों का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं। लंदन में हुआ इस सम्मेलन में किसी प्रकार की कोई नतीजा सामने नहीं आया, इसलिए गाँधी जी को खाली हाथ लौटना पड़ा।
तीसरा और अंतिम सत्र 17 नवम्बर 1932 को प्रारम्भ हुआ। सिर्फ 46 प्रतिनिधियों ने इस सम्मेलन में भाग लिया क्योंकि अधिकतर मुख्य भारतीय राजनीतिक प्रमुख इस सम्मलेन में उपस्थित नहीं थे। ब्रिटेन की लेबर पार्टी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने इस सत्र में भाग लेने से मना कर दिया।
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