मुंबई। सुप्रीम कोर्ट ने आज शिवसेना के शिंदे-उद्धव गुट विवाद को लेकर अपना फैसला सुनाया। इस दौरान कोर्ट ने तत्कालीन राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के फैसले को गलत और असंवैधानिक बताया। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि किसी पार्टी के अंदर पैदा हुए असंतोष के आधार पर फ्लोर टेस्ट नहीं करवाना चाहिए। इसके साथ ही अदालत ने कहा कि अगर उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा नहीं देते तो उन्हें राहत दी जा सकती थी। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की है। उद्धव ने मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से इस्तीफा मांगा है।
उद्धव ठाकरे ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में आगे कहा कि तत्कालीन महाराष्ट्र के राज्यपाल बीएस कोश्यारी का फ्लोर टेस्ट का फैसला बिल्कुल गलत था और कोर्ट उनकी सरकार को बहाल नहीं कर सकता क्योंकि उन्होंने इस्तीफा दे दिया था और फ्लोर टेस्ट का सामना नहीं किया था। उद्धव ने कहा कि उन्होंने (अब शिंदे गुट के विधायक) मेरी पार्टी और मेरे पिता की विरासत को धोखा दिया है। सीएम के रूप में मेरा इस्तीफा तब कानूनी रूप से गलत हो सकता था, लेकिन मैंने इसे नैतिक आधार पर दिया।
बता दें कि महाराष्ट्र के शिवसेना विवाद को लेकर आज सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया। फैसले के बाद शिंदे गुट ने राहत की सांस ली है। दरअसल, सर्वोच्च न्यायालय ने उद्धव गुट द्वारा 16 बागी विधायकों को अयोग्य घोषित करने की मांग पर फैसला सुनाने से इंकार कर दिया है। इस दौरान कोर्ट ने कहा कि अगर उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा नहीं देते तो उन्हें राहत दी जा सकती थी। इसके बाद अब महाराष्ट्र में शिंदे सरकार जारी खतरा टल गया है। राज्य में शिंदे गुट और बीजेपी सरकार बनी रहेगी।
सर्वोच्च न्यायालय ने आज अपने फैसले में स्पीकर राहुल नार्वेकर की भूमिका पर भी सवाल उठाया। न्यायालय ने कहा कि शिंदे गुट के नेता भरत गोगावले को व्हिप नियुक्त करना गलता था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि व्हिप को पार्टी से अलग करना लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं होगा। पार्टी ही जनता के बीच जाकर वोट मांगती है। ऐसे में सिर्फ विधायक तय नहीं कर सकते कि व्हिप कौन होगा। कोर्ट ने कहा कि उद्धव ठाकरे को पार्टी की विधायक दल की बैठक में नेता माना गया था। लेकिन 3 जुलाई को स्पीकर ने शिवसेना के नए व्हिप को मान्यता दे दी। इस तरह दो नेता और व्हिप हो गए। स्पीकर को स्वतंत्र जांच कर फैसला लेना चाहिए थे।
सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि वह विधायकों की अयोग्यता पर फैसला नहीं लेगा। विधानसभा स्पीकर को इस मामले में जल्द फैसला लेने के लिए कहा गया है। अदालत ने कहा कि उद्धव ठाकरे ने फ्लोर टेस्ट का सामना किए बिना ही इस्तीफा दे दिया था। ऐसे में हम उद्धव ठाकरे को दोबारा बहाल नहीं कर सकते हैं। इसके साथ ही कोर्ट ने पूरे मामले को बड़ी बेंच के पास भेज दिया। बता दें कि शिंदे बनाम उद्धव मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने पांच जजों की संविधान पीठ ने 16 मार्च से 9 दिनों तक दलीलें सुनी थी। इस बेंच में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एमआर शाह, कृष्ण मुरारी, हिमा कोहली और पीएस नरसिम्हा शामिल हैं।
बता दें कि बीते साल शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे और अन्य विधायकों की बगावत के कारण महाराष्ट्र की महा विकास अघाड़ी सरकार गिर गई थी। 2019 से शिवसेना-कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की गठबंधन की सरकार चला रहे मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को बगावत के बाद इस्तीफा देना पड़ा था। इसके बाद तत्कालीन राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई थी। जिसे लेकर सुप्रीम कोर्ट ने उद्धव गुट की ओर याचिका दायर की गई थी। उद्धव गुट ने पार्टी से बगावत करने वाले 16 विधायकों को अयोग्य घोषित करने की मांग की थी। इसी मांग पर आज सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संविधान पीठ ने अपना फैसला सुनाया है।
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