मुंबई. महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी द्वारा राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने की सिफारिश ने अनुच्छेद 356 के उपयोग पर एक नई बहस छेड़ दी है, जिसमें विशेषज्ञों ने कहा कि उनके पास कोई अन्य विकल्प नहीं था और कांग्रेस ने जोर देकर कहा कि यह एक गलत अवधारणा है. संविधान का अनुच्छेद 356 कहता है कि यदि राष्ट्रपति, राज्य के राज्यपाल से रिपोर्ट प्राप्त करने पर या अन्यथा, संतुष्ट है कि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है, जिसमें राज्य की सरकार के प्रावधानों के अनुसार कार्य नहीं किया जा सकता है तो वह राष्ट्रपति शासन की घोषणा कर सकता है. यदि राज्य निर्वाचित सरकार के बिना रहता है, तो संसद के दोनों सदनों में उद्घोषणा की पुष्टि करने के लिए केंद्र के पास दो महीने का समय या 11 फरवरी तक का समय है. संवैधानिक विशेषज्ञों ने रेखांकित किया कि राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद, अभी भी पार्टियों के लिए दरवाजे खुले हैं- भारतीय जनता पार्टी, शिवसेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) और कांग्रेस-भविष्य में सरकार बनाने के लिए दावे कर सकती हैं.
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश संतोष हेगड़े ने कहा, राज्यपाल को सरकार की स्थिरता के बारे में आश्वस्त होना चाहिए. उन्होंने पहले भाजपा को बुलाने में सही काम किया, फिर राष्ट्रपति को अपनी रिपोर्ट भेजने से पहले शिवसेना ने एनसीपी का अनुसरण किया. कोई भी पक्ष राज्यपाल को यह समझाने में सक्षम नहीं है कि उनका संयोजन लोगों की सरकार चलाने की स्थिति में है. वह कब तक इंतजार कर सकता था? अंतिम विधानसभा 9 नवंबर को पहले ही समाप्त हो गई थी. प्रणब मुखर्जी के राष्ट्रपति पद पर रहते हुए उनके संवैधानिक सलाहकार रहे टीके विश्वनाथन ने कहा, यह राज्यपाल के लिए निर्णय लेने के लिए था. लेकिन उन्हें अपने फैसले को सही ठहराना है.
विशेषज्ञों ने बताया कि 2005 में, संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) के प्रमुख राज्यपाल बूटा सिंह ने राजनीतिक अवैध खरीद के संदेह पर बिहार विधानसभा को भंग करने की सिफारिश की. यूपीए कैबिनेट ने निर्णय को स्वीकार किया और आधी रात को, मास्को में राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के उद्घोषणा के प्रस्ताव को फैक्स कर दिया; कलाम ने इसे मंजूरी दे दी. बाद में, सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल को उनके प्रस्ताव के रूप में दुर्भावनापूर्ण इरादे से खारिज कर फटकार लगाई. कांग्रेस नेता और वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने फैसले की आलोचना की. अनुच्छेद 356 की कल्पना बीआर अंबेडकर ने संविधान सभा में दुर्लभतम मामलों में अंतिम उपाय के रूप में की थी. लेकिन यह राज्यपाल ऐसा लग रहा था कि राष्ट्रपति शासन लगाने के लिए वो दृढ़ संकल्प थे और भाजपा के दावे को विफल करने के बाद वह यांत्रिक रूप से विभिन्न दलों से मिला. सिंघवी ने यह भी तर्क दिया कि भाजपा और शिवसेना की ताल में बहुत अंतर था और इसलिए शिवसेना को लंबा समय दिया जाना चाहिए था.
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