पुणे: भीमा-कोरेगांव हिंसा को लेकर हाल में दिल्ली, फरीदाबाद, हैदराबाद, पुणे से हुए 5 एक्टिविस्टों की गिरफ्तारी पर महाराष्ट्र पुलिस ने शुक्रवार को कहा कि पुलिस ने ये गिरफ्तारी पुख्ता सबूतों और माओवादी समूह से लिंक होने के आधार पर की है. एडीजी परमबीर सिंह ने मीडिया से बातचीत में कहा कि जब हमनें सबूतों को इकट्ठा कर लिया और विश्लेषण करें, इसके बाद ही यलगार परिषद और भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में कार्रवाई की और देशभर में छापे मारी कर गिरफ्तार किया.
एडीजी ने मीडिया से बातचीत में कहा कि विपक्षी पार्टियां लगातार आरोप लगा रही हैं कि सामाजिक कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार करने के पीछे पुलिस का एक निश्चित एजेंडा है. जबकि पुलिस अपना काम कर रही है. शुक्रवार को महाराष्ट्र पुलिस ने कहा कि इस मामले में पूरी तफ्तीश करने के बाद बड़ी कॉन्ट्रॉवर्सी सामने आई कि इन एक्टिविस्टों के माओवादियों से संबंध थे व नक्सलिओं के लक्ष्यों को पूरा करवाने भूमिका अदा कर रहे थे.
साथ ही पुलिस ने माओवादियों के कई पत्र सार्वजनिक करते हुए आरोप लगाया कि माओवादी व कुछ लोग मिलकर देश की कानून-व्यवस्था को बिगाड़कर सरकार गिराना चाहता थे. ये समूह मौजूदा सरकार को गिराने के लिए हथियार और ग्रेनेड खरीदना चाहते थे. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार इन पत्रों में अलगाववादियों के साथ मिलकर साजिश करने का भी प्लान था.
गौरतलब है कि पुलिस ने देशभर में छापेमारी कर भीमा-कोरेगांव मामले में पांच वामपंथी विचारकों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं गौतम नवलखा, वरवरा राव, सुधा भारद्वाज, अरुण फरेरा और वरनोन गोंजालवेस की गिरफ्तारी की. यह मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा. विचारकों की गिरफ्तारी को लेकर इतिहासकार रोमिला थापर और चार अन्य कार्यकर्ताओं ने याचिका दायर की. जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने गिरफ्तारी पर रोक लगाकर घर पर नजरबंद करने को कहा.
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