Maharashtra Haryana Assembly Elections Analysis: महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव में एग्जिट पोल के नतीजे और कम मतदान के क्या हैं मायने

Maharashtra Haryana Assembly Elections Analysis, Haryana Maharashtra Vidhansabha Chunav 2019: हरियाणा और महाराष्ट्र विधान चुनाव में मतदान प्रक्रिया समाप्त हो चुकी है और अब 24 अक्टूबर को वोटों की गिनती होगी. टीवी चैनलों द्वारा जारी एग्जिट पोल के नतीजों ने मतगणना से पहले ही भाजपा की दिवाली भी मनवा दी. वहीं कांग्रेस पार्टी एक बार फिर से अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन करने जा रही है.

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Maharashtra Haryana Assembly Elections Analysis: महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव में एग्जिट पोल के नतीजे और कम मतदान के क्या हैं मायने

Aanchal Pandey

  • October 23, 2019 6:02 am Asia/KolkataIST, Updated 5 years ago

नई दिल्ली. Maharashtra Haryana Assembly Elections Analysis: महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव को लेकर 21 अक्टूबर को मतदान कराया गया और फिर खबरिया चैनलों द्वारा जारी एग्जिट पोल के नतीजों ने मतगणना से पहले ही भाजपा की दिवाली भी मनवा दी. एग्जिट पोल की मानें तो कांग्रेस पार्टी एक बार फिर से अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन करने जा रही है. कई राज्यों में उपचुनाव भी कराए गए जिसमें कम मतदान प्रतिशत और वोट बहिष्कार की खबरें सामने आई हैं.

सबसे पहले बात करते हैं एग्जिट पोल की. 288 सदस्यों वाली महाराष्ट्र विधानसभा में इंडिया टुडे-ऐक्सिस का एग्जिट पोल भाजपा-शिवसेना को 166 से 194 सीटें दे रहा है. कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन को 72 से 90 सीटें दी गई हैं. न्यूज 18-आईपीएसओएस ने भाजपा को अकेले ही 142 सीटें दे दी हैं जबकि शिवसेना को 102 सीटें. इस एग्जिट पोल में कांग्रेस को 17 और एनसीपी को 22 सीटों पर समेट दिया गया है. कुछ एग्जिट पोल में महाराष्ट्र में भाजपा को अकेले 144 सीटें मिलने का अनुमान भी लगाया गया है. एबीपी-सी वोटर ने भाजपा-शिवसेना को 204 सीटें, जबकि कांग्रेस-एनसीपी को 69 सीटें दी हैं. इसी तरह टाइम्स नाउ ने भाजपा गठबंधन को 230 सीटें दी हैं, जबकि कांग्रेस गठबंधन को 48 सीटें.

हरियाणा में भाजपा को मिलेंगी 72 सीटें

90 सीटों वाली हरियाणा विधानसभा चुनाव की बात करें तो यहां भी भाजपा की बड़ी जीत दिखाई गई है. एबीपी-सी वोटर ने भाजपा को 72 सीटें मिलने का अनुमान जताया है, जबकि कांग्रेस को महज 8 सीटें. सीएनएन-आईपीएसओएस ने भाजपा को 75 सीटें मिलने का अनुमान लगाया है. टाइम्स नाउ के एग्ज़िट पोल के मुताबिक़ भाजपा को 71 सीटें मिल सकती हैं, वहीं कांग्रेस 11 और अन्य को 8 सीटें मिलने की उम्मीद है. रिपब्लिक टीवी जन की बात के मुताबिक़ भाजपा को 57, कांग्रेस को 17 और अन्य को 16 सीटें मिलेंगी. न्यूज़एक्स के एग्ज़िट पोल में भाजपा को 77 और कांग्रेस को 11 सीटें जबकि अन्य को 2 सीटों से संतोष करना पड़ेगा. टीवी9 भारतवर्ष के एग्ज़िट पोल के मुताबिक़ हरियाणा में भाजपा को 47, कांग्रेस को 23 और अन्य को 20 सीटें मिलेंगी. सीएनएन-न्यूज़18 के एग्ज़िट पोल के मुताबिक़ भाजपा को 75, कांग्रेस को 10 और अन्य को 5 सीटें मिलेंगी.

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दोनों राज्यों में फिर से भाजपा की सरकार

तमाम एग्जिट पोल के मुताबिक, दोनों ही राज्यों में भाजपा और उसके गठबंधन की भारी जीत दिखाई गई है. लेकिन बड़ा सवाल यह है कि ये सभी आंकड़े भाजपा के आला नेताओं द्वारा जीत के दावे में सीटों की संख्या को लेकर किए गए आंकड़े व दावों से मिलते जुलते हैं. आप अगर गौर करें तो 2014 के बाद से जितने चुनाव हुए हैं उनमें अगर बिहार और दिल्ली के विधानसभा चुनाव को छोड़ दें तो बाकी सभी चुनावों में भाजपा नेता अमित शाह के दावे, एग्जिट पोल के आंकड़े और असली जनादेश में काफी समानता देखी गई है. आखिर किसी भी पार्टी का नेता इस बात का अनुमान कैसे लगा सकता है कि हम इतनी सीटें जीतने जा रहे हैं और जब रिजल्ट आता है तो ठीक वही आंकड़ा सामने आता है.

सबसे ताजा मामला 2019 के लोकसभा चुनाव को ही लें. शाह और मोदी समेत कई नेताओं ने नारा दिया- अबकी बार 300 पार और जब एग्जिट पोल के आंकड़े आए तो उसमें भी यही रूझान दिखा और मतगणना के बाद जब असली आंकड़े सामने आए तो सच में भाजपा 303 सीटों पर जीत दर्ज कर इतिहास रच दिया. कहने का मतलब यह कि हालिया ट्रेंड के हिसाब से महाराष्ट्र और हरियाणा में भाजपा व उसके गठबंधन की जीत तय है लेकिन अगर भाजपा नेताओं का अनुमान, एग्जिट पोल के अनुमान और मतगणना के बाद जनादेश के आंकड़ों के एक जैसे हों तो संदेह होना लाजिमी है. यह क्यों और कैसे होता है, अलग बहस का विषय है लेकिन विपक्षी दलों को इस पर चिंतन-मनन करना होगा वरना वो दिन दूर नहीं जब विपक्ष नाम की चीज रह नहीं जाएगी.

महाराष्ट्र में भी हुई कम वोटिंग

अब बात करते हैं कम मतदान और मतदान बहिष्कार की. हरियाणा की बात करें तो इस चुनाव में 66.61 प्रतिशत वोटिंग हुई. पिछले चुनावों की बात करें तो इससे कम वोटिंग प्रतिशत 1968, 1977 और 1991 में दर्ज की गई थी जो क्रमश: 57.26 प्रतिशत, 64.46 प्रतिशत और 65.86 प्रतिशत रहा. 1967 में 72.65, 1972 में 70.46, 1982 में 69.87, 1987 में 71.24, 1996 में 70.54, 2000 में 69.01, 2005 में 71.96, 2009 में 72.29 और 2014 में 76.54 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया था. कहने का मतलब यह कि पिछले चुनाव के मुकाबले इस बार करीब 10 प्रतिशत कम मतदान दर्ज किया गया. जहां तक महाराष्ट्र की बात है तो 2014 में 63.38 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया था जबकि इस बार के चुनाव में करीब 63 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया. इस प्रकार से महाराष्ट्र में भी मतदान प्रतिशत में कमी दर्ज की गई.

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उपचुनाव में भी हुई कम वोटिंग

इससे इतर उत्तर प्रदेश में 11 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव के लिए हुए मतदान में भी कुल 47.05 प्रतिशत वोटिंग हुई. अगर इन सीटों पर 2017 का आंकड़ा देखें तो 60 प्रतिशत वोटिंग दर्ज हुई थी. विधानसभावार देखें तो लखनऊ कैंट में सबसे कम मतदान 28.53 प्रतिशत दर्ज किया गया. गोविंदनगर में 32.60 और रामपुर में 41.46 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया है. इगलास विधानसभा क्षेत्र की बात करें तो यहां 38 प्रतिशत मतदान की खबर है. कुछ इसी तरह के आंकड़े अन्य राज्यों से भी सामने आए हैं. नोटा वोटों के आंकड़ों की जानकारी मतगणना के बाद आएगी जिससे इस बात को समझने में मदद मिलेगी कि मतदान के प्रति लोगों का रूझान कितना कम हुआ है. इससे इतर उत्तर प्रदेश की ही बात करें तो उपचुनाव के दौरान यहां आवारा गोवंश और विकास को लेकर ग्रामीणों में भारी नाराजगी देखी गई. इसके चलते करीब डेढ़ दर्जन गांवों के लोगों ने मतदान का बहिष्कार किया.

सांसदों को घेरकर हुई नारेबाजी 

स्थानीय सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, इलाके के पूर्व विधायक और हाथरस के वर्तमान सांसद राजवीर दिलेर जब गांव मांती वसर् में ग्रामीणों को समझाने पहुंचे तो उनका घेराव कर नारेबाजी की गई. गांव कपूरा खेड़ा में तो भाजपा और योगी-मोदी के खिलाफ भी नारेबाजी की गई. मतदान प्रतिशत में गिरावट, मतदान का बहिष्कार से संबंधित इन तमाम आंकड़ों पर गौर करें तो यह भारतीय लोकतंत्र के लिए खतरनाक संकेत है. सरकार और चुनावी प्रक्रिया को लेकर अगर इसी तरह से लोगों में उदासीनता बढ़ती गई तो इसके गंभीर परिणाम सामने आएंगे. ‘कोई होउ नृप हमें का हानि’ की प्रवृति अगर भारतीय मतदाताओं के मन और मस्तिष्क में घर कर गई तो आप कल्पना नहीं कर सकते हैं कि देश में राजकाज का जो ढांचा हमारे संविधान निर्माताओं ने खड़ा किया था वो सब ढह जाएगा.

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कैसे दूर हो मतदान के प्रति बढ़ती अनास्था

ऐसे ही देश में इस बात को लेकर घमासान मचा है कि भाजपा नीत एनडीए की सरकार में तमाम संवैधानिक संस्थाओं के लिए अस्तित्व का संकट खड़ा हो गया है. इसपर चुनावी प्रक्रिया और मतदान के प्रति घटता रूझान संकट को और बड़ा कर देगा. क्योंकि इसी मतदान के जरिये हम राज्यों और देश में सरकारें चुनते हैं जो देश को चलाती है, देश को बनाती है. इन्हीं सरकारों से हमारा वर्तमान और भविष्य जुड़ा होता है. लिहाजा सत्ताधारी और विपक्षी दलों के नेताओं को इसपर गौर फरमाना होगा, इस दिशा में सोचना होगा कि आखिर मतदान के प्रति बढ़ती अनास्था को कैसे दूर किया जाए.

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