फर्जी प्रमाण पत्रों के आधार पर नौकरी पाने वाले कर्मचारियों को हटाने के सुप्रीम कोर्ट के 7 महीने पुराने आदेश को लागू करने पर महाराष्ट्र सरकार पसोपेश में है. सूबे में करीब 11,700 कर्मचारी ऐसे हैं, जिन्होंने फर्जी जाति प्रमाण पत्रों के आधार पर सूबे में शेड्यूल्ड ट्राइब्स यानी जनजाति कोटे के तहत नौकरी हासिल की थी.
मुंबई. महाराष्ट्र सरकार फर्जी प्रमाण पत्रों से नौकरी पाने वाले कर्मियों को हटाने के लेकर पसोपेश में है. करीब 7 महीने पहले सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे कर्मचारियों को तुरंत बर्खास्त करने का आदेश दिया था. जिन्होंने फर्जी दस्तावेजों के साथ नौकरी हासिल की है. आंकड़ों के अनुसार महाराष्ट्र में करीब 11700 ऐसे कर्मी है जिन्होंने फर्जी जाति प्रमाण पत्रों के आधार पर एससी-एसटी कोटे से नौकरी हासिल की है. अब सरकार ये नहीं समझ पा रही है कि इतने लोगों के साथ क्या किया जाए.
अब कोर्ट के आदेश के 7 महीने बाद भी महाराष्ट्र सरकार ऐसे कर्मियों को हटाने को लेकर पसोपेश में है. बता दें कि इनमें ऐसे कर्मचारी भी शामिल हैं जोकि क्लर्क के तौर पर भर्ती हुए थे और आज राज्य सरकार में डेप्युटी सेक्रटरी तक के पद पर पहुंच गए हैं. अब इस मामले में महाराष्ट्र सरकार की चौतरफा आलोचना भी हो रही है. महाराष्ट्र प्रशासन को समझ नहीं आ रहा है कि आखिर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को कैसे लागू किया जाए.
आपको बता दें कि जुलाई, 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने दिए अपने एक आदेश में कहा था कि फर्जी जाति प्रमाणपत्रों के आधार पर नौकरी और शैक्षणिक संस्थान में दाखिल पाने वाले लोगों की डिग्री वापस ले ली जानी चाहिए. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे लोगों की नौकरी छीने जाने के अलावा उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई भी की जानी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट का आदेश बिल्कुल स्पष्ट है लेकिन राज्य सरकार इतने ज्यादा कर्मचारियों की नौकरी रद्द करने में सावधानी से विचार कर रही है. सरकार ने कानून और न्यायपालिका विभाग से इस मसले पर उनकी राय मांगी है.
इस मामले में मुख्य सचिव ने कहा कि हम सुप्रीम कोर्ट के फैसले को फॉलो करेंगे. वहीं एक वरिष्ठ अधिकारी ने इस मामले में कहा कि, कानून विभाग और एडवोकेट जनरल दोनों ने ही कहा कि कोर्ट का फैसला इस मामले में बिल्कुल स्पष्ट है. इन कर्मचारियों को बचाने का कोई रास्ता नहीं है.